HI/751014 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद जोहानसबर्ग में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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: यम यम वापी स्मरण भावं
: यम यम वापी स्मरण भावं

Latest revision as of 06:05, 25 January 2021

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"मेरी मृत्यु के समय फिर, जैसे कि मुझे अपनी परिस्थितियां याद आती है,
यम यम वापी स्मरण भावं
त्यजति अन्ते कलेवरम्
(भ.गी ०८.०६)

सूक्ष्म शरीर मन, बुद्धि और अहंकार जो अविनाशी है। स्थूल शरीर पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि जो नाशवान है। तब सूक्ष्म शरीर मुझे दूसरे स्थूल शरीर में ले जाता है। ठीक उसी तरह जैसे गंध; वायु गंध बहा ले जाती है। यदि यह किसी अच्छे गुलाब के बगीचे से होकर बह रही है, तो वायु गुलाब के गंध को बहा ले जाती है। इसी प्रकार, मृत्यु के समय, इस जीवन की मेरी गतिविधियाँ, एक अन्य स्थूल शरीर बनाने के लिए सूक्ष्म शरीर द्वारा ले जाइ जाएगी। तो स्थूल शरीर इस 8,400,000 में से कोई एक हो सकता है। शरीर के 8,400,000 रूप हैं। और प्रकृति के नियमों के अनुसार, मुझे उनमें से एक में प्रवेश करना होगा। इसलिए आपको अनेक प्रकार की जीवात्मा मिलेंगी। तो भक्ति-योग का अर्थ है विभिन्न शरीरों के उलझन से राहत पाना। उसी को भक्ति-योग कहते हैं।”

751014 - प्रवचन - जोहानसबर्ग