HI/Prabhupada 0483 - कैसे तुम कृष्ण के बारे में सोच सकते हो जब तक तुम कृष्ण के लिए प्रेम का विकास नहीं करते: Difference between revisions
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तो अगर तुम कृष्ण के बारे में सोच तो, यही प्रक्रिया है, कृष्ण भावनामृत । फिर मयी अासक्त-मना: पार्थ योगम युंजन मद-अाश्रय:([[ | तो अगर तुम कृष्ण के बारे में सोच तो, यही प्रक्रिया है, कृष्ण भावनामृत । फिर मयी अासक्त-मना: पार्थ योगम युंजन मद-अाश्रय: ([[HI/BG 7.1|भ.गी. ७.१]]), अगर तुम इस योग प्रणाली का अभ्यास करते हो, कृष्ण भावनामृत, कैसे ? मद-अाश्रय:, मद-अाश्रय: मतलब है "जो मेरे साथ संपर्क में है उसकी शरण लो ।" मद-अाश्रय:, मद-अाश्रय: मतलब है सीधे उनके साथ संपर्क में । सीधे तुम उनके साथ संपर्क में हो जैसे ही तुम उनके बारे में सोचते हो, उनका रूप । लेकिन जब तक तुम एक आध्यात्मिक गुरु की शरण नहीं लेते हो जो उनके बारे में जानता है, तुम एक लंबे समय के लिए ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते हो, यह अस्थायी हो सकता है । | ||
इसलिए तुम्हे सुनना होगा उस व्यक्ति से जो कृष्ण के बारे में जानता है । तब श्री कृष्ण पर तुम्हारे मन की एकाग्रता जारी रहेगी । तुम्हे उनकी दिशा के अनुसार हर कार्य करना होगा । तुम्हारा जीवन इस तरह से ढाला जाना चाहिए आध्यात्मिक गुरु के निर्देशन में । तो तुम पूरी तरह से इस योग प्रणाली को जारी रख सकते हो । यह योग प्रणाली क्या है? यही योग प्रणाली विस्तार से बताई गयी है भगवद गीता में, छठे अध्याय, अाखरी श्लोक में । योगीनाम अपि सर्वेशाम् मद-गतेनान्तरात्मना ([[HI/BG 6.47|भ.गी. ६.४७]]) "जो हमेशा मेरे बारे में सोच रहा है, "मद-गत," वह प्रथम श्रेणी का योगी है ।" | |||
कई स्थानों में यह कहा गया है, प्रेमान्जन-च्छुरित । तुम कृष्ण के बारे में कैसे सोच सकते हो जब तक तुम कृष्ण के लिए प्यार का विकास नहीं करते ? जैसे राधारानी की तरह । राधारानी, वह आ गई हैं । वे शादीशुदा थीं, और घरेलू जीवन था, लेकिन वह कृष्ण को पास आई हैं उनकी पूजा करने के लिए । इसी तरह, हमें अपने मन में हमेशा कृष्ण को जगह देनी चाहिए, उनके बारे में सोचना चाहिए । तो यही प्रक्रिया, मयी अासक्त-मना: पार्थ योगम युंजन मद-अाश्रय:, "मेरे, मेरे प्रतिनिधि के संरक्षण के तहत, जब तुम समझते हो समग्रम, पूरी तरह से, तो तुम्हारा जीवन सफल होगा ।" | |||
असंशयम: "किसी भी शक के बिना ।" एसा नहीं है कि तुम्हारे आध्यात्मिक गुरु ने कहा है कि "कृष्ण पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान है | " नहीं । अगर तुम्हे कोई भी संदेह है, सवाल करो, समझने की कोशिश करो । यह एक तथ्य है कि वे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हैं, निस्संदेह । लेकिन अगर तुम्हे कुछ संदेह है तुम यह स्पष्ट कर सकते हो । असंशयम । इस तरह से तुम अभ्यास करते हो, इस योग प्रणाली का, कृष्ण भावनामृत का, जो सब योग प्रणालियों में सर्वोच्च है, असंशयम समग्रम माम यथा ज्ञास्यसी ([[HI/BG 7.1|भ.गी. ७.१]]), तो तुम कृष्ण को, या पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान को, समझोगे, पूरी तरह से, किसी भी शक के बिना, और तुम्हारा जीवन सफल हो जाएगा । धन्यवाद । (भक्त दण्डवत प्रणाम करते हैं) | |||
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Latest revision as of 17:42, 1 October 2020
Lecture -- Seattle, October 18, 1968 तो अगर तुम कृष्ण के बारे में सोच तो, यही प्रक्रिया है, कृष्ण भावनामृत । फिर मयी अासक्त-मना: पार्थ योगम युंजन मद-अाश्रय: (भ.गी. ७.१), अगर तुम इस योग प्रणाली का अभ्यास करते हो, कृष्ण भावनामृत, कैसे ? मद-अाश्रय:, मद-अाश्रय: मतलब है "जो मेरे साथ संपर्क में है उसकी शरण लो ।" मद-अाश्रय:, मद-अाश्रय: मतलब है सीधे उनके साथ संपर्क में । सीधे तुम उनके साथ संपर्क में हो जैसे ही तुम उनके बारे में सोचते हो, उनका रूप । लेकिन जब तक तुम एक आध्यात्मिक गुरु की शरण नहीं लेते हो जो उनके बारे में जानता है, तुम एक लंबे समय के लिए ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते हो, यह अस्थायी हो सकता है ।
इसलिए तुम्हे सुनना होगा उस व्यक्ति से जो कृष्ण के बारे में जानता है । तब श्री कृष्ण पर तुम्हारे मन की एकाग्रता जारी रहेगी । तुम्हे उनकी दिशा के अनुसार हर कार्य करना होगा । तुम्हारा जीवन इस तरह से ढाला जाना चाहिए आध्यात्मिक गुरु के निर्देशन में । तो तुम पूरी तरह से इस योग प्रणाली को जारी रख सकते हो । यह योग प्रणाली क्या है? यही योग प्रणाली विस्तार से बताई गयी है भगवद गीता में, छठे अध्याय, अाखरी श्लोक में । योगीनाम अपि सर्वेशाम् मद-गतेनान्तरात्मना (भ.गी. ६.४७) "जो हमेशा मेरे बारे में सोच रहा है, "मद-गत," वह प्रथम श्रेणी का योगी है ।"
कई स्थानों में यह कहा गया है, प्रेमान्जन-च्छुरित । तुम कृष्ण के बारे में कैसे सोच सकते हो जब तक तुम कृष्ण के लिए प्यार का विकास नहीं करते ? जैसे राधारानी की तरह । राधारानी, वह आ गई हैं । वे शादीशुदा थीं, और घरेलू जीवन था, लेकिन वह कृष्ण को पास आई हैं उनकी पूजा करने के लिए । इसी तरह, हमें अपने मन में हमेशा कृष्ण को जगह देनी चाहिए, उनके बारे में सोचना चाहिए । तो यही प्रक्रिया, मयी अासक्त-मना: पार्थ योगम युंजन मद-अाश्रय:, "मेरे, मेरे प्रतिनिधि के संरक्षण के तहत, जब तुम समझते हो समग्रम, पूरी तरह से, तो तुम्हारा जीवन सफल होगा ।"
असंशयम: "किसी भी शक के बिना ।" एसा नहीं है कि तुम्हारे आध्यात्मिक गुरु ने कहा है कि "कृष्ण पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान है | " नहीं । अगर तुम्हे कोई भी संदेह है, सवाल करो, समझने की कोशिश करो । यह एक तथ्य है कि वे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हैं, निस्संदेह । लेकिन अगर तुम्हे कुछ संदेह है तुम यह स्पष्ट कर सकते हो । असंशयम । इस तरह से तुम अभ्यास करते हो, इस योग प्रणाली का, कृष्ण भावनामृत का, जो सब योग प्रणालियों में सर्वोच्च है, असंशयम समग्रम माम यथा ज्ञास्यसी (भ.गी. ७.१), तो तुम कृष्ण को, या पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान को, समझोगे, पूरी तरह से, किसी भी शक के बिना, और तुम्हारा जीवन सफल हो जाएगा । धन्यवाद । (भक्त दण्डवत प्रणाम करते हैं)