HI/700210 - जयद्वैत को लिखित पत्र, लॉस एंजिलस: Difference between revisions

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त्रिदंडी गोस्वामी
त्रिदंडी गोस्वामी
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संस्थापक-आचार्य: <br/>
संस्थापक-आचार्य: <br/>
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ <br/>
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ <br/>
1975 सो ला सिएनेगा बुलेवर्ड बुलेवार्ड <br>
1975 सो ला सिएनेगा बुलेवर्ड<br>
लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया 90034
लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया 90034
10 फरवरी, 1970
मेरे प्रिय जयद्वैत,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मैं तुम्हारे 5 फरवरी, 1970 के पत्र के लिए तुम्हारा बहुत धन्यवाद करता हूँ। मुझे यह जानकर बहुत प्रोत्साहन मिला है कि तुम एक अच्छे और अन्वेषणकारी सम्पादक हो। कृष्ण तुमपर कृपा करें।
जहां तक व्यभिचारी लक्षणों की बात है, फिलहाल छूटे हुए दो विषयों को बताना संभव न होगा क्योंकि इसके संदर्भ की पुस्तकें लंदन में रह गई हैं। इसलिए इन मामूली त्रुटियों के पीछे और विलम्ब किए बिना तुम उस विषय को “आदि” लिखकर समाप्त कर सकते हो या अपनी समझबूझ के अनुसार कर सकते हो क्योंकि कृष्ण तुम्हें तुम्हारे अन्तःकरण से निर्देश देंगे। मैं तुमपर निर्भर कर सकता हूँ।
दूसरी बात यह है कि मैं “कृष्ण” पुस्तक के लिए एक छोटी पुस्तिका तैयार करना चाहता हूँ जिसमें कुछ महत्वपूर्ण चित्रों के साथ संक्षिप्त में विवरण हो। क्या तुम सत्स्वरूप के साथ परामर्श करके यह तैयार कर सकते हो? इसकी बहुत जल्दी आवश्यकता है। मुखपृष्ठ पर निम्नलिखित शब्द लगा दो:
सर्वाधिक धनवान, बलशाली, प्रसिद्ध एवं सुन्दर परम भगवान कृष्ण, जो किसी भी प्रकार के भौतिक मोह से मुक्त हैं, अब पुस्तक रूप मे प्राप्य हैं(400 पठनीय पृष्ठ एवं 52 रंगीन सचित्र), प्रथम श्रेणी जिल्द सहित एवं, काष्ठमुक्त पृष्ठों पर मुद्रित। जिन्होंने ”हरे कृष्ण मंत्र” एवं ”गोविन्दम्” रिकॉर्ड सुने हों वे अवश्य यह विशिष्ट पुस्तक पाने का सुयोग प्राप्त करें और अपने घर पर इसे बहुमूल्य खज़ाने की तरह रखें।
”कृष्ण भावनामृत” आंदोलन के मूलभूत सिद्धान्तों को समझने का प्रयास करें।
मैं पहले ही गर्गमुनि से कह चुका हूँ कि ब्रह्मानन्द से बात कर ले और पुनः तुम्हें लिखित में देता हूँ कि “कृष्ण” पुस्तक, पाण्डुलिपि और चित्र, हर हाल में 15 फरवरी को दाई निप्पॉन को जमा करवा दिये जाएं।
आशा करता हूं कि यह तुम्हे अच्छे स्वास्थ्य मे प्राप्त हो।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,<br/>
''(हस्ताक्षरित)''<br/>
ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी

Revision as of 09:55, 7 March 2019

Letter to Jayadvaita


त्रिदंडी गोस्वामी

ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी

संस्थापक-आचार्य:
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ
1975 सो ला सिएनेगा बुलेवर्ड
लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया 90034

10 फरवरी, 1970


मेरे प्रिय जयद्वैत,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मैं तुम्हारे 5 फरवरी, 1970 के पत्र के लिए तुम्हारा बहुत धन्यवाद करता हूँ। मुझे यह जानकर बहुत प्रोत्साहन मिला है कि तुम एक अच्छे और अन्वेषणकारी सम्पादक हो। कृष्ण तुमपर कृपा करें।

जहां तक व्यभिचारी लक्षणों की बात है, फिलहाल छूटे हुए दो विषयों को बताना संभव न होगा क्योंकि इसके संदर्भ की पुस्तकें लंदन में रह गई हैं। इसलिए इन मामूली त्रुटियों के पीछे और विलम्ब किए बिना तुम उस विषय को “आदि” लिखकर समाप्त कर सकते हो या अपनी समझबूझ के अनुसार कर सकते हो क्योंकि कृष्ण तुम्हें तुम्हारे अन्तःकरण से निर्देश देंगे। मैं तुमपर निर्भर कर सकता हूँ। दूसरी बात यह है कि मैं “कृष्ण” पुस्तक के लिए एक छोटी पुस्तिका तैयार करना चाहता हूँ जिसमें कुछ महत्वपूर्ण चित्रों के साथ संक्षिप्त में विवरण हो। क्या तुम सत्स्वरूप के साथ परामर्श करके यह तैयार कर सकते हो? इसकी बहुत जल्दी आवश्यकता है। मुखपृष्ठ पर निम्नलिखित शब्द लगा दो:

सर्वाधिक धनवान, बलशाली, प्रसिद्ध एवं सुन्दर परम भगवान कृष्ण, जो किसी भी प्रकार के भौतिक मोह से मुक्त हैं, अब पुस्तक रूप मे प्राप्य हैं(400 पठनीय पृष्ठ एवं 52 रंगीन सचित्र), प्रथम श्रेणी जिल्द सहित एवं, काष्ठमुक्त पृष्ठों पर मुद्रित। जिन्होंने ”हरे कृष्ण मंत्र” एवं ”गोविन्दम्” रिकॉर्ड सुने हों वे अवश्य यह विशिष्ट पुस्तक पाने का सुयोग प्राप्त करें और अपने घर पर इसे बहुमूल्य खज़ाने की तरह रखें। ”कृष्ण भावनामृत” आंदोलन के मूलभूत सिद्धान्तों को समझने का प्रयास करें।

मैं पहले ही गर्गमुनि से कह चुका हूँ कि ब्रह्मानन्द से बात कर ले और पुनः तुम्हें लिखित में देता हूँ कि “कृष्ण” पुस्तक, पाण्डुलिपि और चित्र, हर हाल में 15 फरवरी को दाई निप्पॉन को जमा करवा दिये जाएं।

आशा करता हूं कि यह तुम्हे अच्छे स्वास्थ्य मे प्राप्त हो।

सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,

(हस्ताक्षरित)

ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी