HI/681108 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/681108BS-LOS_ANGELES_ND_01.mp3</mp3player>|"यहाँ हम देखते हैं आत्मा, चेतना, विकास के विभिन्न स्तर। यह (विकास के अनुरूप) बनाते हैं जीवन की विभिन्न दशा। और वे जीवन की विभिन्न दशाएं विविधताएं हैं, ८,४००,०००  (निरंतर) विकास शील। विकास शील मायने विभिन्न प्रकार के शरीर। ठीक जैसे यह शिशु। अभी इस शिशु के पास खास प्रकार का शरीर है। (उसकी) चेतना उस शरीर के अनुरूप है। यह शिशु जब एक युवती की तरह वयस्क हो जाएगी, इसकी चेतना भिन्न होगी- वही शिशु। तो यह जीवात्मा इस भौतिक शरीर में बंदी है, और शरीर के अनुरूप, इसकी चेतना भिन्न है। यह समझना बहुत आसान है।  इस शिशु का उदाहरण लीजिये। वही शिशु, वही आत्मा, चूँकि यह अभी अलग प्रकार के शरीर में रह रही है, इसकी चेतना माता की अपेक्षा अलग है, क्योंकि इसकी माता के पास अलग प्रकार का शरीर है और शिशु के पास अलग प्रकार का शरीर है।"|Vanisource:681108 - Lecture BS 5.29 - Los Angeles|681108 - प्रवचन BS 5.29 - लॉस एंजेलेस}}
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Latest revision as of 00:29, 5 February 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"यहाँ हम देखते हैं आत्मा, चेतना, विकास के विभिन्न स्तर। यह (विकास के अनुरूप) बनाते हैं जीवन की विभिन्न दशा। और वे जीवन की विभिन्न दशाएं विविधताएं हैं, ८,४००,००० (निरंतर) विकास शील। विकास शील मायने विभिन्न प्रकार के शरीर। ठीक जैसे यह शिशु। अभी इस शिशु के पास खास प्रकार का शरीर है। (उसकी) चेतना उस शरीर के अनुरूप है। यह शिशु जब एक युवती की तरह वयस्क हो जाएगी, इसकी चेतना भिन्न होगी- वही शिशु। तो यह जीवात्मा इस भौतिक शरीर में बंदी है, और शरीर के अनुरूप, इसकी चेतना भिन्न है। यह समझना बहुत आसान है। इस शिशु का उदाहरण लीजिये। वही शिशु, वही आत्मा, चूँकि यह अभी अलग प्रकार के शरीर में रह रही है, इसकी चेतना माता की अपेक्षा अलग है, क्योंकि इसकी माता के पास अलग प्रकार का शरीर है और शिशु के पास अलग प्रकार का शरीर है।"
681108 - प्रवचन BS 5.29 - लॉस एंजेलेस