HI/660302 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
आधुनिक संस्कृति वास्तव में... बच रही है, वास्तविक दुखों से बच रही है। वे अस्थायी दुखों में जुटी हुए हैं। किन्तु वैदिक पद्धति, वैदिक ज्ञान है। वे सभी दुःख का निवारण करने के लिए है.., अच्छे के लिए, दुःख आते हैं। आप देखो तो? यह मनुष्य जीवन इसी के लिए प्राप्त हुआ है, सभी दुखों का अंत करने। निःसंदेह, हम सभी प्रकार के दुखों का अंत करने का प्रयास कर रहे हैं। हमारा व्यवसाय, हमारी उपजीविका, हमारी शिक्षा, हमारे ज्ञान की प्रगति - यह सभी का अभिप्राय दुखों का अंत करना है। परन्तु यह दुख अस्थायी है। लेकिन हमें अपने भले के लिए इन दुखों का अंत करना है। दुःख - इस प्रकार के ज्ञान को दिव्य ज्ञान कहा जाता है । |
660302 - प्रवचन - भ.गी. २.७-११ - न्यूयार्क |