HI/661002 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/661002BG-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|"जब कहीं पर प्रकाश होता है तो वह प्रकाश अथवा चमक कृष्ण ही हैं। वास्तविक चमकीलापन ब्रह्मज्योति है। वह अध्यात्मिक जगत में है। भौतिक नभ ढका हुआ है; अत: स्वभाविक रूप से भौतिक नभ धुँधला है। अभी, रात्रि के समय हम भौतिक जगत् का वास्तविक रूप में अनुभव कर सकते हैं—यह अंधकार है। बनावटी रूप में यह सूर्य, चन्द्रमा अथवा बिजली से प्रकाशित होता है। अन्यथा, यहाँ अंधकार ही है। अत: यह प्रकाश या चमक भगवान् स्वयं हैं।"|Vanisource:661002 - Lecture BG 07.08-14 - New York|661002 - Lecture BG 07.08-14 - New York}}
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Latest revision as of 11:29, 28 July 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"जब कहीं पर प्रकाश होता है, तो वह प्रकाश अथवा रोशनी भी कृष्ण ही हैं। वास्तविक प्रभा या चमक ब्रह्मज्योति है। वह अध्यात्मिक जगत में है। भौतिक आकाश ढका हुआ है; अत: भौतिक आकाश का स्वभाव अंधकार है। अभी, रात्रि के समय हम भौतिक जगत् का वास्तविक रूप को अनुभव कर रहे हैं — वह है अंधकार। कृत्रिम रूप में वह सूर्य, चन्द्रमा अथवा बिजली से प्रकाशित होता है। अन्यथा, वह अंधकार ही है। इसलिए प्रकाश या रोशनी स्वयं भगवान् हैं।"
661002 - प्रवचन भ.गी. ७.८-१४ - न्यूयार्क