HI/681014b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सिएटल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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Latest revision as of 06:11, 13 January 2021

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"जब तक तुम अपनी इन्द्रियों को तृप्त करने की चेष्टा करोगे, वह तुम्हारा सांसारिक जीवन है। और जैसे ही तुम स्वयं को कृष्ण की इन्द्रियों को तृप्त करने के लिए मोड़ते हो, वह तुम्हारा आध्यात्मिक जीवन है। यह बहुत सरल चीज़ है। बजाय (इन्द्रियों को) तृप्त करने के... हृषीकेन ह्रषिकेश-सेवनम (Vanisource:CC Madhya 19।170।CC Madhya 19।170)। वह भक्ति है। तुम्हारे पास इन्द्रियां हैं। तुम्हेँ तृप्त करना है। इन्द्रियों, इन्द्रियों से तुम्हेँ तृप्त करना है। या (तो) तुम स्वयं को संतुष्ट करो...किन्तु तुम्हेँ पता नहीं है। बद्ध जीव को नहीं ज्ञात होता कि कृष्ण कि इन्द्रियों तो संतुष्ट करने से, उसकी इन्द्रियां स्वतः तृप्त हो जाएँगी। वही दृष्टान्त: ठीक उसी प्रकार (जैसे) जड़ में जल डालना...या ये अंगुलियां, मेरे शरीर का भाग और अंश, भोजन दे रही हैं यहाँ पेट को, स्वतः अंगुलियां तृप्त हो जाएँगी। यह रहस्य हम चूक रहे हैं। हम सोच रहे हैं हम अपनी इन्द्रियों को तृप्त करके सुखी हो जायेंगे। कृष्ण भावना मायने अपनी इन्द्रियों को तृप्त करने का प्रयास मत करो, तुम कृष्ण की इन्द्रियों तो संतुष्ट करने का प्रयास करो; स्वतः तुम्हारी इन्द्रियां तृप्त हो जाएँगी। यह कृष्ण भावना-भविता का रहस्य है। "
681014 - प्रवचन BG 02.19-25 - सिएटल