HI/Prabhupada 0037 - जो कृष्ण को जानता है, वह गुरू है: Difference between revisions

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तो हम कैसे भगवान की ऊर्जा समझ सकते हैं, उनकी रचनात्मक ऊर्जा को समझ सकते हैं, भगवान की शक्ति क्या है, और वह कैसे सब कुछ कर रहै हैं - यह भी एक महान विज्ञान है। इसे श्री कृष्ण विज्ञान कहा जाता है। कृष्ण-तत्व-ज्ञान। येइ कृष्ण-तत्व वेट्टा, सेइ गुरु हय (सी सी मध्य ८।१२८) चैतन्य महाप्रभु बताते हैं कि कौन गुरु है। गुरू का मतलब येइ कृष्ण-तत्व वेट्टा, सेइ गुरु हय: "कोइ भी जो कृष्ण को जानता है , वह गुरु है।" गुरू निर्मित नहीं किया जा सकता। जो भी जहाँ तक संभव हो कृष्ण के बारे में जानता है .... हम पता नहि कर सकते हैं। हम कृष्ण को शत प्रतिशत नहीं जान सकते हैं। यह संभव नहीं है। कृष्ण की ऊर्जा तो बहु हैं। परास्य शक्तिर विचिधैव श्रूयते (सI सी मध्य १३।६५ अभिप्राय) एक ऊर्जा एक तरह से काम कर रहा है, एक और ऊर्जा एक और तरह से काम कर रहा है। लेकिन वे सब कृष्ण की ऊर्जा हैं। परास्य शक्तिर विचिधैव श्रूयते। मयाध्यक्शेन प्रकृतिहि सूयते स चराचरम् (भ गी ९।१०) प्रकृति ... हम इस फूल को प्रकृति से बाहर आते देख रहे हैं, और केवल फूल ही नही, इतनी सारी चीजें बाहर आ रही हैं - बीज के माध्यम से। गुलाब का बीज, गुलाब का पेड़ अाएगा। बेल बीज, बेल का पेड़ अाएगा। तो यह कैसे हो रहा है? एक ही जमीन, वही पानी, और बीज भी उसी की तरह दिखता है, लेकिन यह अलग ढंग से बाहर आ रहा है। यह कैसे संभव है? परास्य शक्तिर विचिधैव श्रूयते स्वाभाविकी ज्ञान। आम आदमी या तथाकथित वैज्ञानिक, वे कहते हैं, "यह प्रकृति का उत्पादन है।" लेकिन प्रकृति क्या है उनहे पता नहीं है। प्राकृतिक गतिविधियों की निगरानी कौन रहा है, भौतिक प्रकृति, यह कैसे काम कर रहा है। यह भगवद गीता में कहा गया है, मयाध्क्शेन ( भ गी ९।१०) कृष्ण कहते हैं "मेरा अधीक्षण तहत प्रकृति काम कर रही है।" यही सच्चाई है। प्रकृति, पदार्थ ... पदार्थ स्वतः एक साथ गठबंधन नहीं कर सकते हैं। यह गगनचुंबी इमारतें, वे पदार्थों से बनाया जाता है। लेकिन यह पदार्थ स्वत: गगनचुंबी इमारत बनने के लिए नहीं आए हैं। यह संभव नहीं है। वहाँ एक छोटि, छोटि आत्मा, इंजीनियर या वास्तुकार, है जो पदिर्थ को लेता है और उसे सजाता है और एक गगनचुंबी इमारत बनाता है। यह हमारा अनुभव है। इसलिए हम कैसे कह सकते हैं कि यह पदार्थ स्वचालित रूप से काम कर रहा है? पदार्थ स्वत: काम नहीं करता है। उसे आवश्यकता है उच्च मस्तिष्क, उच्च हेरफेर कि, इसलिए उच्च आदेश की आवश्यकता है। जैसे इस भौतिक संसार में उच्चतम आदेश है, सूरज, सूरज का संचलन, गर्मी ऊर्जा, सूरज की रोशनी ऊर्जा। तो यह कैसे उपयोग किया जा रहा है? शास्त्र में कहा गया है: यस्याज्ञाय ब्रम्हति सम्भ्रत काल चक्रो गोविदम् अादि पुरुशम् अहम् भजामि यह सूर्य ग्रह भी इस ग्रह की तरह एक ग्रह है। जैसे इस ग्रह में कई अध्यक्ष हो सकते हैं, लेकिन पूर्व में एक अध्यक्ष ही था, तो इसी तरह, प्रत्येक ग्रह में एक अध्यक्ष है। सूर्य ग्रह में, हमें भगवद गीता से ज्ञान प्राप्त होता है। कृष्ण कहते हैं, इमम् विवसवते योगम् प्रोक्तवान् अहम् अव्ययम् (भ गी ४।१) "मैनें सबसे पहले भगवद गीता का यह विज्ञान विवस्वान को बातया था।" विवस्वान का मतलब है सूरज ग्लोब के अध्यक्ष, और उनके बेटे मनु हं।. यहि समय है। यह समय चल रहा है। इसे वैवस्वत मनु अवधि कहा जाता है। वैवस्वत का मतलब है विवस्वान से, विवस्वान के बेटे। उसे वैवस्वत मनु कहा जाता है।
तो हम कैसे भगवान की शक्ति को समझ सकते हैं, कैसे हम उनकी रचनात्मक शक्ति को समझ सकते हैं, अौर भगवान की शक्ति क्या है, और वे कैसे सब कुछ कर रहे हैं - यह भी एक महान विज्ञान है । इसे कृष्ण विज्ञान कहा जाता है ।  कृष्ण-तत्व-ज्ञान । येइ कृष्ण-तत्व वेत्ता, सेइ गुरु हय ([[Vanisource:CC Madhya 8.128|चैतन्य चरितामृत मध्य ८.१२८]]) चैतन्य महाप्रभु बताते हैं कि कौन गुरु है । गुरू का अर्थ है येइ कृष्ण-तत्व वेत्ता, सेइ गुरु हय: "कोइ भी जो कृष्ण को जानता है , वह गुरु है ।" गुरू निर्मित नहीं किया जा सकता । जो भी जहाँ तक संभव हो कृष्ण के बारे में जानता है .... हम जान नहीं सकते हैं ।  हम कृष्ण को शत प्रतिशत नहीं जान सकते हैं । यह संभव नहीं है । कृष्ण की शक्ति तो बहुविध हैं । परास्य शक्तिर विविधैव श्रूयते ([[Vanisource:CC Madhya 13.65|चैतन्य चरितामृत मध्य १३.६५, तात्पर्य]]) एक शक्ति एक तरह से काम कर रही है, एक और शक्ति एक और तरह से काम कर रही है । लेकिन वे सब कृष्ण की शक्तियॉ हैं ।
 
परास्य शक्तिर विविधैव श्रूयते ।  मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते स चराचरम् ([[HI/BG 9.10|भ गी ९.१०]]) प्रकृति ... हम इस फूल को प्रकृति से आते देख रहे हैं, और केवल फूल ही नही, इतनी सारी चीजें आ रही हैं - बीज के माध्यम से । गुलाब का बीज, गुलाब का पेड़ अाएगा ।  बेल बीज, बेल का पेड़ अाएगा । तो यह कैसे हो रहा है ? वही ज़मीन, वही जल, और बीज भी एक समान दिखता है, लेकिन यह अलग ढंग से बाहर आ रहा है ।  यह कैसे संभव है ? यही कहलाता है परास्य शक्तिर विविधैव श्रूयते स्वाभाविकी ज्ञान । आम आदमी या तथाकथित वैज्ञानिक, वे कहते हैं, "यह प्रकृति का उत्पादन है ।" लेकिन प्रकृति क्या है उन्हे पता नहीं है, प्राकृतिक गतिविधियों की निगरानी कौन रहा है, भौतिक प्रकृति, यह कैसे काम कर रही है ।
 
यह भगवद्-गीता में कहा गया है, मयाध्यक्षेण ([[HI/BG 9.10|भ गी ९.१०]]) कृष्ण कहते हैं "मेरे अध्यक्षता के तहत प्रकृति काम कर रही है ।" यही सच्चाई है । प्रकृति, पदार्थ ... पदार्थ स्वतः एक साथ जुड़ नहीं सकते हैं । यह गगनचुंबी इमारतें, वे पदार्थों से बनाए जाते हैं, लेकिन यह पदार्थ स्वत: गगनचुंबी इमारत बनने के लिए नहीं आए हैं । यह संभव नहीं है । वहाँ एक छोटि, छोटि आत्मा, इंजीनियर या वास्तुकार, है जो पदार्थ को लेता है और उसे सजाता है और एक गगनचुंबी इमारत बनाता है । यह हमारा अनुभव है । इसलिए हम कैसे कह सकते हैं कि यह पदार्थ स्वचालित रूप से काम कर रहा है ? पदार्थ स्वत: काम नहीं करता है । उसे आवश्यकता है उच्च मस्तिष्क, उच्च हेरफेर कि, इसलिए उच्च आदेश की जैसे इस भौतिक संसार में उच्चतम आदेश है, सूरज, सूरज का संचलन, ऊष्मा शक्ति, सूरज की प्रकाश शक्ति ।
 
तो यह कैसे उपयोग किया जा रहा है ?  
यह शास्त्र में कहा गया है: यस्याज्ञया भ्रमति सम्भ्रत काल चक्रो गोविदं अादि पुरुषं तं अहं भजामि (ब्रह्मसंहिता ५.५२) । यह सूर्य लोक भी इस लोक की तरह एक लोक है । जैसे इस लोक में कई अध्यक्ष हो सकते हैं, लेकिन पूर्व में एक अध्यक्ष ही था, तो इसी तरह, प्रत्येक लोक में एक अध्यक्ष है । सूर्य लोक में, हमें भगवद्-गीता से ज्ञान प्राप्त होता है । कृष्ण कहते हैं, इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवान् अहम् अव्ययम्: ([[HI/BG 4.1|भ गी ४.१]]) "मैनें सबसे पहले भगवद्-गीता का यह विज्ञान विवस्वान को बातया था ।" विवस्वान का अर्थ है सूर्य लोक के अध्यक्ष, और उनके बेटे मनु हैं । यही समय है । यह समय अभी चल रहा है । इसे वैवस्वत मनु अवधि कहा जाता है । वैवस्वत का अर्थ है विवस्वान से, विवस्वान के बेटे । उन्हे वैवस्वत मनु कहा जाता है ।
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Latest revision as of 17:04, 9 April 2021



Lecture on BG 7.1 -- Hong Kong, January 25, 1975

तो हम कैसे भगवान की शक्ति को समझ सकते हैं, कैसे हम उनकी रचनात्मक शक्ति को समझ सकते हैं, अौर भगवान की शक्ति क्या है, और वे कैसे सब कुछ कर रहे हैं - यह भी एक महान विज्ञान है । इसे कृष्ण विज्ञान कहा जाता है । कृष्ण-तत्व-ज्ञान । येइ कृष्ण-तत्व वेत्ता, सेइ गुरु हय (चैतन्य चरितामृत मध्य ८.१२८) । चैतन्य महाप्रभु बताते हैं कि कौन गुरु है । गुरू का अर्थ है येइ कृष्ण-तत्व वेत्ता, सेइ गुरु हय: "कोइ भी जो कृष्ण को जानता है , वह गुरु है ।" गुरू निर्मित नहीं किया जा सकता । जो भी जहाँ तक संभव हो कृष्ण के बारे में जानता है .... हम जान नहीं सकते हैं । हम कृष्ण को शत प्रतिशत नहीं जान सकते हैं । यह संभव नहीं है । कृष्ण की शक्ति तो बहुविध हैं । परास्य शक्तिर विविधैव श्रूयते (चैतन्य चरितामृत मध्य १३.६५, तात्पर्य) । एक शक्ति एक तरह से काम कर रही है, एक और शक्ति एक और तरह से काम कर रही है । लेकिन वे सब कृष्ण की शक्तियॉ हैं ।

परास्य शक्तिर विविधैव श्रूयते । मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते स चराचरम् (भ गी ९.१०) । प्रकृति ... हम इस फूल को प्रकृति से आते देख रहे हैं, और केवल फूल ही नही, इतनी सारी चीजें आ रही हैं - बीज के माध्यम से । गुलाब का बीज, गुलाब का पेड़ अाएगा । बेल बीज, बेल का पेड़ अाएगा । तो यह कैसे हो रहा है ? वही ज़मीन, वही जल, और बीज भी एक समान दिखता है, लेकिन यह अलग ढंग से बाहर आ रहा है । यह कैसे संभव है ? यही कहलाता है परास्य शक्तिर विविधैव श्रूयते स्वाभाविकी ज्ञान । आम आदमी या तथाकथित वैज्ञानिक, वे कहते हैं, "यह प्रकृति का उत्पादन है ।" लेकिन प्रकृति क्या है उन्हे पता नहीं है, प्राकृतिक गतिविधियों की निगरानी कौन रहा है, भौतिक प्रकृति, यह कैसे काम कर रही है ।

यह भगवद्-गीता में कहा गया है, मयाध्यक्षेण (भ गी ९.१०) । कृष्ण कहते हैं "मेरे अध्यक्षता के तहत प्रकृति काम कर रही है ।" यही सच्चाई है । प्रकृति, पदार्थ ... पदार्थ स्वतः एक साथ जुड़ नहीं सकते हैं । यह गगनचुंबी इमारतें, वे पदार्थों से बनाए जाते हैं, लेकिन यह पदार्थ स्वत: गगनचुंबी इमारत बनने के लिए नहीं आए हैं । यह संभव नहीं है । वहाँ एक छोटि, छोटि आत्मा, इंजीनियर या वास्तुकार, है जो पदार्थ को लेता है और उसे सजाता है और एक गगनचुंबी इमारत बनाता है । यह हमारा अनुभव है । इसलिए हम कैसे कह सकते हैं कि यह पदार्थ स्वचालित रूप से काम कर रहा है ? पदार्थ स्वत: काम नहीं करता है । उसे आवश्यकता है उच्च मस्तिष्क, उच्च हेरफेर कि, इसलिए उच्च आदेश की । जैसे इस भौतिक संसार में उच्चतम आदेश है, सूरज, सूरज का संचलन, ऊष्मा शक्ति, सूरज की प्रकाश शक्ति ।

तो यह कैसे उपयोग किया जा रहा है ? यह शास्त्र में कहा गया है: यस्याज्ञया भ्रमति सम्भ्रत काल चक्रो गोविदं अादि पुरुषं तं अहं भजामि (ब्रह्मसंहिता ५.५२) । यह सूर्य लोक भी इस लोक की तरह एक लोक है । जैसे इस लोक में कई अध्यक्ष हो सकते हैं, लेकिन पूर्व में एक अध्यक्ष ही था, तो इसी तरह, प्रत्येक लोक में एक अध्यक्ष है । सूर्य लोक में, हमें भगवद्-गीता से ज्ञान प्राप्त होता है । कृष्ण कहते हैं, इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवान् अहम् अव्ययम्: (भ गी ४.१) "मैनें सबसे पहले भगवद्-गीता का यह विज्ञान विवस्वान को बातया था ।" विवस्वान का अर्थ है सूर्य लोक के अध्यक्ष, और उनके बेटे मनु हैं । यही समय है । यह समय अभी चल रहा है । इसे वैवस्वत मनु अवधि कहा जाता है । वैवस्वत का अर्थ है विवस्वान से, विवस्वान के बेटे । उन्हे वैवस्वत मनु कहा जाता है ।