HI/720306 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद कलकत्ता में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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:bhārata-bhūmite haila manuṣya-janma yāra
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/720229 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मायापुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|720229|HI/720308 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद कलकत्ता में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|720308}}
:janma sārthaka kari' kara para-upakāra
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It is the duty of the Indians to learn all this Vedic literature, make his life successful in Kṛṣṇa consciousness and preach the gospel throughout the whole world. That is India's duty."|Vanisource:720306 - Lecture SB 07.09.08-9 - Calcutta|720306 - प्रवचन SB 07.09.08-9 - कलकत्ता}}

Latest revision as of 16:27, 9 November 2021

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"भारत की इतनी अफसोसजनक स्थिति है कि लोग इस वैदिक साहित्य की परवाह नहीं करते हैं। यह उनकी पैतृक धरोहर तथा जन्मसिद्ध अधिकार है। चैतन्य महाप्रभु कहते हैं: 'भारत-भूमिते हयला मनुष्य-जनम जार जनम सार्थक करि कर पर - उपकार'( चै.च. आदि ९.४१)। भारतीयों का यह कर्तव्य है कि वेदो के सभी साहित्य को जानें, अपने जीवन को कृष्ण भावनामृत में सफल करें और पूरे विश्व में सु समाचार का प्रचार करें। यही भारत का कर्तव्य है।"
प्रवचन श्रीमद भगवतम् ०७.०९.०८-०९ - कलकत्ता