HI/660419 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

No edit summary
 
(No difference)

Latest revision as of 05:04, 22 February 2022

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
हम, वर्तमान स्तिथि में, इस भौतिक स्थिति में, अपनी योजनाएँ बनाते रहते हैं, और विफ़ल भी होते हैं, क्योंकि मन का यही कार्य है कि, वह कुछ सृजन करता है और फिर उसे अस्वीकारता है। मन अक्सर सोचता रहता है, "हां, मुझे यह कार्य करना है,'अच्छा होगा यदि मैं यह कार्य न करूँ" और वह निर्णय ले लेता है। इसे संक्ल्प और विकल्प कहते हैं, निर्णय लेना और पुन: उसे अस्वीकारना। यह इस भौतिक स्तर के हमारी अस्थायी अवस्था के कारण होता है। परन्तु जब हम परम भगवान के अनुसार कार्य करने का निर्णय लेते हैं तब, उस स्तर पर, कोई द्वंद्व नहीं रहता है जैसे, 'में वो कार्य करू' या 'ना करू'। नहीं। बस केवल यह विचार आता है कि,'मुझे यह कार्य करना हैं', क्योंकि यह परम भगवान द्वारा स्वीकृत है। समस्त भगवद् गीता, जीवन के इस सिद्धांत पर आधारित है।
660419 - प्रवचन भ.गी. २.५५-५६ - न्यूयार्क