HI/680323 - रायराम को लिखित पत्र, सैंन फ्रांसिस्को: Difference between revisions

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त्रिदंडी गोस्वामी <br/>
त्रिदंडी गोस्वामी <br/>

Latest revision as of 06:23, 24 April 2022

Letter to Rayaram


त्रिदंडी गोस्वामी

ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी
आचार्य:अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ


शिविर:इस्कॉन राधा कृष्ण मंदिर
518 फ्रेड्रिक स्ट्रीट
सैन फ्रांसिस्को,कैल 94117

16 मार्च, 1967


मेरे प्रिय रायराम,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा 20 मार्च, 1968 का पत्र मिला है और मैं उसके लिए तुम्हें बहुत धन्यवाद देता हूँ। मैं यह जानकर प्रसन्न हूँ कि तुमने चैतन्य महाप्रभू का शिक्षामृत समाप्त कर ली है और यह सब बहुत उत्साहित करने वाला सिद्ध हो रहा है। गीता एवं टी एल सी ब्रह्मानन्द ने बहुत अच्छे से कीं हैं, अब उसे बिक्री की व्यवस्था बनानी है और इसका श्रेय उसकी प्रतीक्षा कर रहा है।

तुम्हें बीटीजी को अपने प्राणधन की तरह देखना चाहिए। बीटीजी के लिए तुम्हारा कार्य सर्वप्रथम एवं सर्वाधिक महत्तवपूर्ण है। यदि तुम्हें और चीज़ों के लिए समय प्राप्त नहीं होता तो भी कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन मैं देखना चाहता हूँ कि तुम बीटीजी को लाइफ मैग़ज़ीन या इलस्ट्रेटिड वीकली ऑफ़ इंडिया की तरह सफल बना दो। मैं इस पत्रिका की उन्नति के लिए बहुत ही महत्तवाकांक्षी हूँ और तुम स्वयं से निर्णय ले सकते हो कि यह कैसे किया जाए। तुम्हें पूरी स्वतंत्रता के साथ कार्य करने की खुली छूट है। जहां तक बीटीजी में राजनैतिक मामलों की चर्चा की बात है, तो यह बहुत अच्छा सुझाव नहीं है। पर यदि तुम राजनैतिक मामलों को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत कर सकते हो, जैसे कि मैंने शुरुआती बीटीजी में भारत के राजनैतिक विभाजनों और उनके परिणामस्वरूप उत्पन्न हुए विनाश के विषय में लेख लिखे थे। इसके लिए पूरी परिस्थिति को बहुत विस्तृत रूप से समझना ज़रूरी है और यदि तुम ऐसा कर सकते हो तो यह एक महान सेवा होगी। इसीलिए मैं एक मिलीजुली संपादकीय समिति चाहता था। दुर्भाग्यवश सबकुछ तुम्हें स्वयं ही करना होगा। मुझे लगता है कि इस कार्य के लिए तुम्हें दूसरों के सहयोग को निमंत्रण देना होगा जो तुम्हारी सहायता कर सकते हैं। बहरहाल, बीटीजी को जितना हो सके, बेहतर किया जाना चाहिए, चूंकि यह हमारे संघ की रीढ की हड्डी है। इस पर विचार करो और जितना अच्छे से अच्छा हो सके वैसा करो। यदि आवश्यक हो तो तुम बाकी की गतिविधियां बन्द भी कर सकते हो। लेकिन लोगों को तुम्हारे सुन्दर वक्तव्य पसंद आते हैं और मैं आशा करता हूँ कि तुम कक्षाओं में अपने भाषण दे रहे हो। फिलहाल तुम श्रीमद् भागवतम् के बारे में सोचना बंद कर सकते हो और जब मैं न्यू यॉर्क में तुमसे मिलुंगा तब हम आगे की योजना कर सकते हैं। यह बहुत अच्छी बात है कि तुम भगवान चैतन्य के जीवन पर एक पुस्तक तैयार कर रहे हो। और यदि तुम ईशोपनिषद् भी छपवा सको तो यह बहुत अच्छा रहेगा। उसका कुछ अंश शुरुआती बीटीजी में है और बाकी की पांडुलिपि मौजूद है। जहां तक ब्रह्म संहिता की बात है तो फिलहाल मैं उसपर कार्य नहीं कर रहा हूँ। पर मैंने उस पर विचार किया है। मैं बाद में इस पर कार्य करुंगा।

जहां तक बीटीजी की बात है, यदि गौरसुन्दर इस मामले में सहायता नहीं कर सकता तो तुम फिलहाल उन अन्य कलाकारों से मदद ले सकते हो जो जदुरानी के साथ मिलजुल कर काम करते आ रहे हैं। तुम उन्हें सलाह दे सकते हो और मुझे विश्वास है कि वे कार्य करने में सक्षम रहेंगे।

आशा करता हूँ कि तुम बिलकुल अच्छे से हो।

सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,

(हस्ताक्षरित)