HI/710328 - मणिबंध को लिखित पत्र, बॉम्बे: Difference between revisions

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His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


28 मार्च, 1971


मेरे प्रिय मणिबंध,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा बिना दिनांक का पत्र मिल गया है और मैंने इसे पढ़ा है। हां, इन विवाहों में परेशानी यही है कि हमारे ब्रह्मचारी, बिना आजीविका के स्रोत के ही, अपना विवाह करवा रहे हैं। इसी कारण से वे अलग रहने के कमरे नहीं ले रहें हैं और अन्य भी कई चीज़ें हैं जिनको वे अनदेखा कर रहे हैं। और इसीलिए पत्नी असंतुष्ट हो जाती हैं।

तो तुम्हारी पत्नी चली गई है और तुम महसूस कर रहे हो कि यह सब कृष्ण की ही कृपा है। यह नज़रिया अच्छा है। तो यदि तुम ऐसा सोचते हो और ब्रह्मचारी जीवन की सराहना कर पा रहे हो, तो अपनी पत्नी के बारे में भूल जाओ और स्वयं को पूरी तरह से आध्यात्मिक गतिविधियों में संलग्न कर लो व पूर्णरूपेण कृष्णभावनाभावित हो जाओ। अन्यथा, यदि तुम उसे वापम प्राप्त करने की मंशा रखते हो, तो तुम्हें एक नौकरी करनी ही होगी जिससे तुम उसका निर्वाह कर सको। इसके बाद उसे वापस लाने का प्रयास करो। तुम कुछ भी करो, वह तो ठीक है, परन्तु उसे कृष्णभावनामृत में करो।

तुम्हारे नाम के सही शब्द हैं ‘मणिबंध’। मणिबंध का अर्थ है रत्नों से आभूषित।

आशा है कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त हो।

सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,

ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी

एसीबीएस/एडीबी