HI/710817 - हंसदूत को लिखित पत्र, लंदन: Difference between revisions

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Letter to Hansadutta


17 अगस्त 1971

मेरे प्रिय हंसदुत्त,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मेरे 14 अगस्त, 1971 के पत्र के संदर्भ में मुझे श्यामसुन्दर से पता चला है कि तुमने एम्स्टरडेम के हमारे सारे संकीर्तन भक्तों को सिगरेट के कारखाने में काम पर लगा दिया है। मेरी समझ में नहीं आता कि, मुझसे या अन्य किसी जी बी सी सदस्य से पूछे बिना, ऐसा करने की तुम्हारी मजाल कैसे हुई। एम्स्टरडेम संकीर्तन मंडली के संचय के मामले में सुचारु रूप से चल रहा है; उन्हें सिगरेट कारखाने में काम करने क्यों जाना चाहिए? अपने पिछले पत्र में भी तुमने मुझे समझाने का प्रयास किया था कि सभी को काम पर जाना चाहिए। यह हमारा सिद्धान्त नहीं है। हमारा सिद्धान्त है किसी कर्मी के अधीन या एक कर्मी की तरह काम न करना। हम शूद्र नहीं हैं। शूद्रों को किसी के अधीन काम करना चाहिए, न कि ब्राह्मणों को। यदि तुम इस सिद्धान्त को नहीं जानते तो अब जान लेना चाहिए। मन्दिर में रहने वाले हमारे सारे लोग मूलतः ब्राह्मण हैं। अथवा क्यों उन्हें जनेऊ अर्पित किया जा रहा है?

हमें मामूली आय पर जीना चाहिए, जो कुछ भी ङमें हमारी पत्रिकाएं बेचकर प्राप्त होता है। लेकिन भीषण आवश्यकता की परिस्थिति में, जब और कोई रास्ता न मिले, तब हम अस्थायी रूप से कोई नौकरी कर सकते हैं। पर एक सिद्धान्त के तौर पर हमें संकीर्तन के लिए जाना चाहिए, न कि काम पर, और फिर जो कुछ भी हमें कृष्ण दें हमें सिद्धान्त के आधार पर स्वीकार करना चाहिए। तुम हमारे संघ के एक वरिष्ठ सदस्य हो। तुम्हें ये सब बातें ज्ञात होनी चाहिएं थीं। बहरहाल, उन्हें पुनः संकीर्तन पर वापिस भेज दो। एम्स्टरडेम के सभी भक्त संकीर्तन में रत रहने चाहिएं, न कि सिगरेट के कार खाने में।

आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त हो।

सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,

(हस्ताक्षरित)

ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी

एसीबीएस/एडीबी

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