HI/681201b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/681201IN-LOS_ANGELES_ND_02.mp3</mp3player>|"प्रश्न तो होना ही चाहिए। इस भगवद गीता में कहा गया है, तद् विद्धि स्तुतिप्रयतेन विप्राणां सेवय ([[HI/BG 4.34|बीजी ४.३४]]) हमारा संबंध एक आध्यात्मिक गुरु से सब कुछ जानना है, लेकिन आपको पता होना चाहिए कि तीन चीजों के साथ। वह क्या है? सबसे पहले आपको आत्मसमर्पण करना चाहिए। आपको आध्यात्मिक गुरु को अपने से बड़ा मानना ​​चाहिए। अन्यथा एक आध्यात्मिक गुरु को स्वीकार करने का क्या फायदा? स्तुति । स्तुति का अर्थ है आत्मसमर्पण करना; और परिप्रश्ना, और पूछताछ; और सेवा, और सेवा। दो पक्ष होने चाहिए, सेवा और समर्पण, और बीच में प्रश्न होना चाहिए। अन्यथा कोई सवाल और जवाब नहीं है। दो चीजें होनी चाहिए: सेवा और समर्पण। फिर सवाल का जवाब अच्छा है।"|Vanisource:681201 - Lecture Initiation and Ten Offenses - Los Angeles|व्याख्यान दीक्षा और दस अपराध - लॉस एंजेलेस}}
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/681201IN-LOS_ANGELES_ND_02.mp3</mp3player>|"प्रश्न तो होना ही चाहिए। इस भगवद गीता में कहा गया है, तद् विद्धि स्तुतिप्रयतेन विप्राणां सेवय (बीजी ४.३४) हमारा संबंध एक आध्यात्मिक गुरु से सब कुछ जानना है, परंतु आपको तीन चीजों का पता होना चाहिए। वह क्या है? सबसे पहले आपको आत्मसमर्पण करना चाहिए। आपको आध्यात्मिक गुरु को अपने से बड़ा मानना ​​चाहिए। अन्यथा एक आध्यात्मिक गुरु को स्वीकार करने का क्या फायदा? स्तुति। स्तुति का अर्थ है आत्मसमर्पण करना; तथा परिप्रश्न, पूछताछ; इसके अतिरिक्त सेवा। दो पक्ष होने चाहिए, सेवा और समर्पण, तथा मध्य में प्रश्न होना चाहिए। अन्यथा कोई प्रश्न-उत्तर नहीं। दो चीजें होनी चाहिए: सेवा तथा समर्पण। तत्पश्चात प्रश्न एवं उनके उत्तर।"|Vanisource:681201 - Lecture Initiation and Ten Offenses - Los Angeles|व्याख्यान दीक्षा और दस अपराध - लॉस एंजेलेस}}

Latest revision as of 00:57, 17 July 2022

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"प्रश्न तो होना ही चाहिए। इस भगवद गीता में कहा गया है, तद् विद्धि स्तुतिप्रयतेन विप्राणां सेवय (बीजी ४.३४) हमारा संबंध एक आध्यात्मिक गुरु से सब कुछ जानना है, परंतु आपको तीन चीजों का पता होना चाहिए। वह क्या है? सबसे पहले आपको आत्मसमर्पण करना चाहिए। आपको आध्यात्मिक गुरु को अपने से बड़ा मानना ​​चाहिए। अन्यथा एक आध्यात्मिक गुरु को स्वीकार करने का क्या फायदा? स्तुति। स्तुति का अर्थ है आत्मसमर्पण करना; तथा परिप्रश्न, पूछताछ; इसके अतिरिक्त सेवा। दो पक्ष होने चाहिए, सेवा और समर्पण, तथा मध्य में प्रश्न होना चाहिए। अन्यथा कोई प्रश्न-उत्तर नहीं। दो चीजें होनी चाहिए: सेवा तथा समर्पण। तत्पश्चात प्रश्न एवं उनके उत्तर।"
व्याख्यान दीक्षा और दस अपराध - लॉस एंजेलेस