Template:HI/Hindi Main Page - Vanipedia's Manifesto
↓ अधिक पढ़ने के लिए नीचे स्क्रॉल करें...   
परिचयश्रीला प्रभुपाद ने उनकी शिक्षाओं पर बहुत अधिक महत्व दिया, इस प्रकार वाणिपीडिया श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं के प्रति विशेष रूप से समर्पित है; जिसमें पुस्तकें, रिकॉर्ड किए गए व्याख्यान और वार्तालाप, पत्र आदि शामिल हैं। पूरा होने पर वाणिपीडिया दुनिया का प्रथम वाणी-मंदिर कहलायेगा। यह एक पवित्र स्थान होगा जहां प्रामाणिक आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्राप्त करने वाले लाखों श्रद्धालु श्रीला प्रभुपाद की शानदार शिक्षाओं से उत्तर और प्रेरणा ग्रहण करेंगे। जितना संभव हो सका है वाणिपीडिया को उतनी भाषाओं में एक विश्वकोश प्रारूप में प्रस्तुत किया गया है। वाणिपीडिया के लक्ष्यों का विवरण
 
 
 
 सहयोग के कार्यवाणिपीडिया जैसा एकमात्र ज्ञानकोश का निर्माण करना केवल हजारों श्रद्धालुओं के सामूहिक सहयोगात्मक प्रयास द्वारा संभव है जो कि श्रीला प्रभुपाद के उपदेशों का परिश्रमपूर्वक संकलन और अनुवाद करते हैं। हम कम से कम १६ भाषाओं में श्रीला प्रभुपाद की सभी पुस्तकों, व्याख्यानों, वार्तालापों और पत्रों के अनुवाद को पूरा करना चाहते हैं और उसके अतिरिक्त नवंबर २०२७ तक वाणिपीडिया को कम से कम १०८ भाषाओं के कुछ प्रतिनिधित्व स्तर तक पहुंचाना चाहते हैं। अक्टूबर २०१७ तक पूर्ण बाइबिल को ६७० भाषाओं में अनुवादित किया गया है, न्यू टेस्टामेंट का १५२१ भाषाओं में अनुवाद किया गया है और बाइबल के भागों या कहानियों को ११२१ अन्य भाषाओं में अनुवादित किया गया है। इन आंकड़ों से पता चलता है कि श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं में पर्याप्त वृद्धि होने के दौरान हमारा उद्देश्य उन प्रयासों की तुलना में बिल्कुल भी महत्वाकांक्षी नहीं है, जो की ईसाई लोग अपनी शिक्षाओं को विश्व स्तर पर फैलाने के लिए कर रहे हैं। हम सभी भक्तों को आमंत्रित करते हैं कि वे सभी मानवता के हित के लिए इंटरनेट तथा वेब पर श्रीला प्रभुपाद की बहुभाषी वाणी-उपस्थिति को प्रकट करने और बनाने के इस नेक प्रयास में शामिल हों। आह्वान१९६५ में श्रीला प्रभुपाद अमेरिका में बिन बुलाए पहुंचे। भले ही १९७७ में उनकी शानदार वापु उपस्थिति के दिन समाप्त हो गए हों, लेकिन वह अभी भी अपनी वाणी में उपस्थित हैं और यही उपस्थिति का अब हमें आह्वान करना चाहिए। वह हमारे समक्ष तभी उपस्थित रहेंगे जब हम उन्हें होने अंतरमन से पुकारेंगे और उनके प्रकट होने की भीख मांगेंगे। हमारे बीच उन्हें रखने की हमारी तीव्र इच्छा वह कुंजी है जिसके माध्यम से हम श्रीला प्रभुपाद का हमारे समक्ष प्राकट्यय संभव है। पूर्ण अभिव्यक्तिहम हमारे सामने श्रीला प्रभुपाद की आंशिक उपस्थिति नहीं चाहते हैं। हम उनकी पूर्ण वाणी-उपस्थिति चाहते हैं। उनके सभी रिकॉर्ड किए गए उपदेशों को पूरी तरह से संकलित किया जाना चाहिए और कई भाषाओं में अनुवादित किया जाना चाहिए। इस ग्रह के लोगों की भावी पीढ़ियों के लिए हमारी एकमात्र पेशकश है - श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं का पूर्ण आश्रय। वाणी-उपस्थितिश्रीला प्रभुपाद की पूर्ण वाणी-उपस्थिति दो चरणों में दिखाई देगी। पहला - और आसान चरण - सभी भाषाओं में श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं का संकलन और अनुवाद करना है। दूसरा - और अधिक कठिन चरण - सैकड़ों लोगों को पूरी तरह से उनकी शिक्षाओं के आश्रय लेने में सहयोग देना। अध्ययन करने के विभिन्न तरीके
 
 दस लाख आचार्य
 
 – श्रीचैतन्य-चरितामृत पर श्रील प्रभुपाद का व्याख्यान, ६ अप्रैल १९७५ टिप्पणीश्रीला प्रभुपाद का यह दृष्टि कथन स्वयं के लिए बोलता है - लोगों के लिए कृष्णभावनामृत को आसानी से समझने की सही योजना। दस लाख सशक्त शिक्षा-शिष्यों ने विनम्रतापूर्वक हमारे संस्थापक-आचार्य श्रीला प्रभुपाद के निर्देशों को जीया है और हमेशा पूर्णता और परिपक्वता के लिए प्रयास किया है। श्रीला प्रभुपाद स्पष्ट रूप से कहते हैं कि "ऐसी संगठन का निर्माण करो"। इस दृष्टि को पूरा करने के लिए वाणिपीडिया उत्साहपूर्वक इस कार्य में संलग्न है। कृष्णभावनामृत का विज्ञानभगवद गीता के नौवें अध्याय में कृष्णभावनामृत के इस विज्ञान को सभी ज्ञानों का राजा, सभी गोपनीय चीजों का राजा और पारलौकिक बोध का सर्वोच्च विज्ञान कहा जाता है। कृष्णभावनामृत एक पारलौकिक विज्ञान है जो एक ईमानदार भक्त को प्रकट किया जा सकता है जो भगवान की सेवा करने के लिए तैयार है। कृष्णभावनामृत शुष्क तर्कों से या शैक्षणिक योग्यता से प्राप्त नहीं होती है। कृष्णभावनामृत एक विश्वास नहीं है, जैसे कि हिंदू, ईसाई, बौद्ध या इस्लाम धर्म, लेकिन यह एक विज्ञान है। यदि कोई श्रीला प्रभुपाद की पुस्तकों को ध्यान से पढ़ता है, तो उन्हें कृष्णभावनामृत के सर्वोच्च विज्ञान का एहसास होगा और सभी लोगों के वास्तविक कल्याणकारी लाभ हेतु समान रूप से कृष्णभावनामृत फैलाने के लिए अधिक प्रेरित भी होंगे। भगवान चैतन्य का संकीर्तन आंदोलनभगवान श्री चैतन्य महाप्रभु संकीर्तन आंदोलन के जनक और उद्घाटनकर्ता हैं। जो व्यक्ति संकीर्तन आंदोलन के लिए, अपने जीवन, धन, बुद्धि तथा शब्दों को परे रखकर भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु की आराधना करता है, प्रभु ना केवल उसको पहचान जाते हैं बल्कि उसकी आराधना को अपने आशीर्वाद से संपन्न करते हैं। अन्य सभी को मूर्ख कहा जा सकता है, क्यूंकि उन सभी बलिदानों में से वह बलिदान सबसे यशस्वी है जिसमे व्यक्ति अपनी ऊर्जा का प्रयोग संकीर्तन आंदोलन के लिए करता है। संपूर्ण कृष्णभावनामृत आंदोलन, श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा उद्घाटन किए गए संकीर्तन आंदोलन के सिद्धांतों पर आधारित है। इसलिए जो संकीर्तन आंदोलन के माध्यम से ईश्वर के सर्वोच्च व्यक्तित्व को समझने की कोशिश करता है वह सब कुछ पूरी तरह से जान जाता है। वह सुमेधा हो जाता है, एक पर्याप्त बुद्धि वाला व्यक्ति। मानव समाज का पुनः आध्यात्मिकरणवर्तमान समय में मानव समाज, गुमनामी के अंधेरे में नहीं है। समाज ने पूरे विश्व में भौतिक सुख, शिक्षा और आर्थिक विकास के क्षेत्र में तेजी से प्रगति की है। लेकिन बड़े पैमाने पर सामाजिक निकाय में कहीं न कहीं एक झुंझलाहट है, और इसलिए कम महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी बड़े पैमाने पर झगड़े होते हैं। एक सुराग की जरूरत है, कि कैसे मानवता एक सामान्य कारण से जुड़कर शांति, मित्रता और समृद्धि में एक जुट हो जाए। श्रीमद-भागवतम इस जरूरत को पूरा करता है, क्योंकि यह संपूर्ण मानव समाज के पुन: आध्यात्मिकरण के लिए एक सांस्कृतिक प्रस्तुति है। सामान्य आबादी सामान्य रूप से आधुनिक राजनेताओं और लोगों के नेताओं के हाथों में उपकरण हैं। यदि केवल नेताओं का हृदय परिवर्तन होता है, तो निश्चित रूप से दुनिया के वातावरण में मौलिक परिवर्तन होगा। वास्तविक शिक्षा का उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार, आत्मा के आध्यात्मिक मूल्यों की प्राप्ति होना चाहिए। सभी को दुनिया की सभी गतिविधियों को आध्यात्मिक बनाने में मदद करनी चाहिए। इस तरह की गतिविधियों से, प्रदर्शन करने वाले और प्रदिर्शित किए गए कार्य दोनों आध्यात्मिकता के साथ अधिभारित हो जाते हैं और प्रकृति की विधा को पार कर जाते हैं। वाणीपीडिया का मिशन वक्तव्य
 
 
 
 
 
 
 वाणीपीडिया के निर्माण के लिए हमें क्या प्रेरित कर रहा है?
 
 
 
 
 
 
 
 इस प्रकार, हम श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं के भीतर पाए जाने वाले पूर्ण ज्ञान और वास्तविकताओं के व्यापक वितरण और उसकी उचित समझ की सुविधा के लिए वास्तव में एक गतिशील मंच बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, इसलिए उन पर खुशी से काम किया जा सकता है। यह बस इतना आसान है। वह एकमात्र चीज़ जो हमें वाणीपीडिया के पूर्ण समापन से रोक रही है वो है समय; और वह भक्तगण जो इस कार्य को पूर्ण करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, उनकी वाणी-सेवा के वो सारे बहुमूल्य पावन घंटे जो अभी देने शेष हैं। मैं, आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूं, मेरी विनम्र सेवा की सराहना करने के लिए, जिसे मैं अपने गुरु महाराज द्वारा दिए गए कर्तव्य के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूं। मैं अपने सभी शिष्यों से सहकारिता से काम करने का अनुरोध करता हूं और मुझे यकीन है कि हमारा मिशन बिना किसी संदेह के आगे बढ़ेगा। – श्रीला प्रभुपाद का तमाला कृष्णा दास (जी बी सी) को पत्र - १४ अगस्त, १९७१ श्रीला प्रभुपाद के तीन प्राकृतिक पदश्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं के चरण कमलों पर आश्रय की संस्कृति तभी महसूस की जा सकती है, जब श्रीला प्रभुपाद के ये तीन पद उनके सभी अनुयायियों के दिलों में जागृत हों। श्रीला प्रभुपाद हमारे पूर्व-प्रतिष्ठित शिक्षा-गुरु हैं।
 
 
 
 
 
 श्रीला प्रभुपाद इस्कॉन के संस्थापक-आचार्य हैं।
 
 
 श्रीला प्रभुपाद विश्व के आचार्य हैं।
 
 
 श्रीला प्रभुपाद के प्राकृतिक पद को स्थापित करना महत्वपूर्ण है।
 
 
 
 
 
 
 टिपण्णीहमारा मानना है कि श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं का हमारे भीतर परिपोषण और उनके बारे में हमारे ज्ञान को बढ़ाने के उद्देश्य से इन बाधाओं को आसानी से एकीकृत, संरचित शैक्षिक और प्रशिक्षण कार्यक्रमों की शुरुआत से दूर किया जा सकता है। यह तभी सफल होगा जब श्रीला प्रभुपाद की वाणी में गहराई से निहित संस्कृति को बनाने के लिए एक गंभीर नेतृत्व की प्रतिबद्धता से ईंधन मिलेगा। इस प्रकार श्रीला प्रभुपाद का स्वाभाविक पद इस प्रकार स्वतः बन जाएगा, और भक्तों की सभी पीढ़ियों के लिए स्पष्ट रहेगा। भक्त उनके अंग हैं, इस्कॉन उनका शरीर है, और वाणी उनकी आत्मा है
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 टिपण्णीहम श्रीला प्रभुपाद के अंग हैं। उनकी पूर्ण संतुष्टि के लिए उनके साथ सफलतापूर्वक सहयोग करने के लिए हमें उनके साथ चेतना में एकजुट होना चाहिए। यह प्रेममयी एकता हमारी वाणी में पूरी तरह से लीन होने, आश्वस्त होने और अभ्यास करने से विकसित होगी। हमारी समग्र सफलता की रणनीति सभी को श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं को आत्मसात करके और उन्हें कृष्णभावनमृत आंदोलन के लिए किए गए प्रत्येक कार्य के केंद्र में निर्भीकता से रखने रखने के लिए है। इस तरह, श्रीला प्रभुपाद के भक्त व्यक्तिगत रूप से फल-फूल सकते हैं, और अपनी संबंधित सेवाओं में इस्कॉन को एक ठोस संस्था बनाने के लिए, जो श्रीला प्रभुपाद की दुनिया को पूर्ण आपदा से बचाने की इच्छा को पूरा कर सकता है। भक्त जीतेंगें, जीबीसी जीतेगी, इस्कॉन जीतेगी, दुनिया जीतेगी, श्रीला प्रभुपाद जीतेंगें, और भगवान चैतन्य जीतेंगें। कोई भी हारेगा नहीं। परम्परा के उपदेशों का वितरण१४८६ चैतन्य महाप्रभु का विश्व को कृष्णभावनामृत में शिक्षित करने के लिए प्रकट होना - ५३३ वर्ष पूर्व १४८८ सनातन गोस्वामी का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना - ५३१ वर्ष पूर्व १४८९ रूप गोस्वामी का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना - ५३० वर्ष पूर्व १४९५ रघुनाथ गोस्वामी का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना – ५२४ वर्ष पूर्व १५०० यांत्रिक छपाई मशीनों का पूरे यूरोप में किताबों के वितरण में क्रांति लाना - ५२० वर्ष पूर्व १५१३ जीवा गोस्वामी का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना – ५०६ वर्ष पूर्व १८३४ भक्तिविनोद ठाकुर का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना – १८५ वर्ष पूर्व १८७४ भक्तिसिद्धांत सरस्वती का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना – १४५ वर्ष पूर्व १८९६ श्रीला प्रभुपाद का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना – १२३ वर्ष पूर्व १९१४ भक्तिसिद्धांत सरस्वती ने "भृहत-मृदंगा" वाक्यांश का उल्लेख किया – १०५ वर्ष पूर्व १९२२ श्रीला प्रभुपाद पहली बार भक्तिसिद्धांत सरस्वती से मिले और उनसे तुरंत अंग्रेजी भाषा में उपदेश देने का अनुरोध किया - ९७ वर्ष पूर्व १९३५ श्रीला प्रभुपाद को किताबें छापने का निर्देश मिला – ८४ वर्ष पूर्व १९४४ श्रीला प्रभुपाद ने बैक टू गॉडहेड पत्रिका शुरू की – ७५ वर्ष पूर्व १९५६ श्रीला प्रभुपाद ने वृंदावन में किताबें लिखनी प्रारम्भ करि – ६३ वर्ष पूर्व १९६२ श्रीला प्रभुपाद ने श्रीमद-भागवतम का पहला खंड प्रकाशित किया – ५७ वर्ष पूर्व १९६५ श्रीला प्रभुपाद अपनी पुस्तकें वितरित करने के लिए पाश्चात्य देश में आये – ५४ वर्ष पूर्व १९६८ श्रीला प्रभुपाद ने भगवद-गीता यथारूप का संक्षिप्त संस्करण प्रकाशित किया – ५२ वर्ष पूर्व १९७२ श्रीला प्रभुपाद भगवद-गीता यथारूप का पूर्ण संस्करण प्रकाशित किया – ४७ वर्ष पूर्व १९७२ श्रीला प्रभुपाद ने अपनी पुस्तकों को प्रकाशित करने के लिए बीबीटी की स्थापना की – ४७ वर्ष पूर्व १९७४ श्रीला प्रभुपाद के शिष्यों ने किताबों का गंभीर वितरण शुरू किया – ४५ वर्ष पूर्व १९७५ श्रीला प्रभुपाद ने श्रीचैतन्य-चरितामृत को पूरा किया – ४४ वर्ष पूर्व १९७७ श्रीला प्रभुपाद ने बोलना बंद कर दिया और अपनी वाणी हमारी देखभाल में छोड़ दी – ४२ वर्ष पूर्व 1978 भक्तिवेदांत अभिलेखागार की स्थापना की गई – ४१ वर्ष पूर्व १९८६ दुनिया की डिजिटल रूप से संग्रहित सामग्री की मात्रा १ सीडी-रोम प्रति व्यक्ति थी – ३३ वर्ष पूर्व १९९१ द वर्ल्ड वाइड वेब (भृहत-भृहत-भृहत-मृदंगा) की स्थापना की गई – २८ वर्ष पूर्व १९९२ द भक्तिवेदांत वेदबेस संस्करण 1.0 बनाया गया – २७ वर्ष पूर्व २००२ डिजिटल युग आ गया - दुनिया भर में डिजिटल स्टोरेज एनालॉग से आगे निकल गया – १७ वर्ष पूर्व २००७ दुनिया की डिजिटली संग्रहित सामग्री की मात्रा प्रति व्यक्ति ६१ सीडी-रोम हो गई – १२ वर्ष पूर्व, कुल मिलाकर ४२७ अरब सीडी-रोम २००७ श्रीला प्रभुपाद वाणी-मंदिर, वाणिपीडिया का वेब में निर्माण शुरू होता है – १२ वर्ष पूर्व २०१० श्रीला प्रभुपाद वापू-मंदिर, वैदिक तारामंडल मंदिर का निर्माण कार्य श्रीधाम मायापुर में शुरू होता है – ९ वर्ष पूर्व २०१२ वाणिपीडिया १,९०६,७५३ उद्धरण, १,०८,९७१ पृष्ठ और १३,९४६ श्रेणियों तक पहुँचता है – ७ वर्ष पूर्व २०१३ श्रीला प्रभुपाद की ५००,०००,००० पुस्तकों का इस्कॉन भक्तों द्वारा ४८ वर्षों में वितरण - मतलब हर एक दिन में औसतन २८,५३८ पुस्तकें - ६ वर्ष पूर्व २०१९ २१ मार्च, गौरा पूर्णिमा के दिन, सुबह के ७.१५ मध्य यूरोपीय समय में, वाणिपीडिया भक्तों को आमंत्रित करने के लिए और श्रीला प्रभुपाद की वाणी-उपस्थिति को पूरी तरह से प्रकट और अभिव्यक्त करने के लिए एक साथ सहयोग मांगनें के ११ वर्ष मनाता है। वाणिपीडिया अब ४५,५८८ श्रेणियां, २,८२,२९७ पृष्ठ, २,१००,००० प्लस उद्धरण को ९३ भाषाओं में प्रस्तुत करती है। यह १,२२० से अधिक भक्तों द्वारा पूर्ण किया गया है, जिन्होंने २,९५,००० घंटो से अधिक वाणी-सेवा का प्रदर्शन किया है। हमें श्रीला प्रभुपाद के वाणी-मंदिर को पूरा करने के लिए अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है, इसलिए हम इस शानदार मिशन में भाग लेने के लिए भक्तों को आमंत्रित करते रहते हैं। टिप्पणीआधुनिक काल में कृष्णभावनामृत आंदोलन के बैनर तले श्री चैतन्य महाप्रभु के मिशन का खुलना, हमारे भक्ति-सेवा प्रयासों के अभ्यास के लिए एक बहुत ही रोमांचक समय है। इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ कृष्णा कॉन्शियसनेस यानी की अंतराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ के संस्थापक-आचार्य श्रीला प्रभुपाद ने अपने अनुवादों, भक्तिवेदांत अभिप्रायों, व्याख्यान, संभाषण, और पत्रों से जीवन-परिवर्तन घटना का दुनिया को साक्षात्कार कराया है। इसी के अन्दर संपूर्ण मानव समाज के पुनः अध्यात्मीकरण की कुंजी है। वाणी, व्यक्तिगत संघ और वियोग में सेवा - उद्धरण
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 टिप्पणीश्रीला प्रभुपाद के बयानों की इस श्रृंखला में कई चौकाने वाले सच प्रस्तुत किए हैं। 
 कृष्णा के संदेश को फैलाने के लिए मीडिया का उपयोग करना
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 टिप्पणीअपने गुरु महाराज के नक्शेकदम पर चलते हुए, श्रीला प्रभुपाद भगवान श्रीकृष्ण की सेवा में हर चीज़ को संलग्नित कर लेने की कला जानते थे। 
 आधुनिक-मीडिया, आधुनिक अवसरश्रीला प्रभुपाद के लिए, १९७० के दशक में, आधुनिक-मीडिया और मास-मीडिया का मतलब प्रिंटिंग प्रेस, रेडियो, टीवी और फिल्मों से था। उनके जाने के बाद से, मास मीडिया का परिदृश्य नाटकीय रूप परिवर्तित हो गया और इसमें ये साड़ी आधुनिक तकनीकियां शामिल हो गयीं - एंड्रॉइड फोन, क्लाउड कंप्यूटिंग और स्टोरेज, ई-बुक रीडर, ई-कॉमर्स, इंटरैक्टिव टीवी और गेमिंग, ऑनलाइन प्रकाशन, पॉडकास्ट और आरएसएस फीड, सोशल नेटवर्किंग साइट्स, स्ट्रीमिंग मीडिया, टच स्क्रीन प्रोद्योगिकाएँ, वेब आधारित संचार और वितरण सेवाएं और वायरलेस प्रोद्योगिकाएँ। श्रीला प्रभुपाद के उदाहरण के अनुरूप, हम २००७ से, श्रील प्रभुपाद की वाणी को संकलित, अनुक्रमणित, वर्गीकृत और वितरित करने के लिए आधुनिक जन मीडिया तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं। 
 
 टिपण्णीआज भी श्रीला प्रभुपाद के उपदेशों को विश्व में सुलभता से उपलब्ध कराने और प्रमुख बनाने के लिए और भी कुछ किया जाना बाकी है। सहयोगी वेब प्रौद्योगिकियां हमें अपनी पिछली सभी सफलताओं को पार करने का अवसर प्रदान करती हैं। वाणी-सेवा - श्रीला प्रभुपाद की वाणी की सेवा का पवित्र कार्यश्रीला प्रभुपाद ने १४ नवंबर, १९७७ को बोलना बंद कर दिया, लेकिन उनकी वाणी ने जो हमें दिया वह हमेशा ताजा बना रहा। हालाँकि, ये उपदेश अभी तक अपनी प्राचीन स्थिति में नहीं हैं, और ना ही ये सभी आसानी से अपने भक्तों के लिए उपलब्ध हैं। श्रीला प्रभुपाद के अनुयायियों का पवित्र कर्तव्य है कि वे श्रीला प्रभुपाद की वाणी को सभी तक पहुंचाएं। इसलिए हम आपको इस वाणी-सेवा को करने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। हमेशा याद रखें कि आप उन कुछ पुरुषों में से एक हैं जिन्हें मैंने दुनिया भर में अपने काम और आपके मिशन को आगे बढ़ाने के लिए नियुक्त किया है। इसलिए, श्रीकृष्ण से हमेशा प्रार्थना करें कि मैं जो कर रहा हूं, उसे करके इस मिशन को पूरा करने के लिए शक्ति प्रदान करें। मेरा पहला कर्त्तव्य भक्तों को उचित ज्ञान देना और उन्हें भक्ति सेवा में संलग्न करना है, इसलिए यह आपके लिए बहुत मुश्किल काम नहीं है, मैंने आपको सब कुछ दिया है, इसलिए किताबों से पढ़ें और उसीसे उदाहरण दें और बात करें तब ज्ञान का बड़ा प्रकाश होगा। हमारे पास बहुत सारी किताबें हैं, इसलिए यदि हम अगले १,००० वर्षों तक उनसे प्रचार करते रहें, तो यह पर्याप्त भण्डार है। – श्रीला प्रभुपाद का सत्स्वरुप दास (जीबीसी) को पत्र, १६ जून १९७२ १९७२ के जून में, श्रीला प्रभुपाद ने कहा कि "हमारे पास इतनी सारी किताबें हैं" कि "अगले १,००० वर्षों" तक प्रचार करने के लिए "पर्याप्त भण्डार है"। उस समय, केवल १० शीर्षक छपे थे, इसलिए जुलाई १९७२ से नवंबर १९७७ तक श्रीला प्रभुपाद द्वारा प्रकाशित सभी अतिरिक्त पुस्तकों के साथ, भण्डार के वर्षों की संख्या को आसानी से ५,००० तक बढ़ाया जा सकता था। यदि हम श्रीला प्रभुपाद के मौखिक निर्देशों और पत्रों को इसमें जोड़ते हैं, तो भंडार १०,००० साल तक फैल जाता है। हमें इन सभी शिक्षाओं को निपुणता से तैयार करने और उचित रूप से समझने के लिए तैयार करने की आवश्यकता है ताकि उसको इस पूरी अवधि के लिए "प्रचार के कार्य में इस्तेमाल" किया जा सके। इसमें कोई संदेह नहीं है कि श्रीला प्रभुपाद में भगवान चैतन्य महाप्रभु के संदेश का प्रचार करने का अपार उत्साह और दृढ़ संकल्प है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनका वापु स्वरुप हमें छोड़कर चला गया है। वह अपनी शिक्षाओं में रहतें हैं। शारीरिक रूप से मौजूदगी के बदले, डिजिटल मंच के माध्यम से वह अब और अधिक व्यापक रूप से प्रचार कर सकेंगें। भगवान चैतन्य की दया पर पूरी निर्भरता के साथ, आइए हम श्रीला प्रभुपाद के वाणी-मिशन को स्वीकार करें, और पहले से कहीं अधिक संकल्प के साथ, उनकी वाणी को १०,००० वर्षों के उपदेश के लिए तैयार करें। पिछले दस वर्षों में, मैंने रूपरेखा दी है और अब हम ब्रिटिश साम्राज्य से अधिक हो गए हैं। यहां तक कि ब्रिटिश साम्राज्य भी हमारे लिए उतना व्यापक नहीं था। उनके पास दुनिया का केवल एक हिस्सा था, और अभी हमने विस्तार पूरा नहीं किया है। हमें अधिक से अधिक असीमित रूप से विस्तार करना चाहिए। लेकिन मुझे अब आपको याद दिलाना होगा कि मुझे श्रीमद-भागवतम का अनुवाद पूरा करना है। यह सबसे बड़ा योगदान है; हमारी पुस्तकों ने हमें एक सम्मानजनक स्थान दिया है। लोगों को इस चर्च या मंदिर की पूजा में कोई विश्वास नहीं है। वो दिन चले गए। बेशक, हमें मंदिरों को बनाए रखना होगा क्योंकि हमारी आत्माओं को उच्च रखना आवश्यक है। बस बौद्धिकता नहीं चलेगी, व्यावहारिक शुद्धि होनी चाहिए। इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि आप मुझे प्रबंधन की जिम्मेदारियों से अधिक से अधिक राहत दें ताकि मैं श्रीमद-भागवतम का अनुवाद पूरा कर सकूं। अगर मुझे हमेशा प्रबंधन करना है, तो मैं पुस्तकों पर अपना काम नहीं कर सकता। यह प्रलेखित है, मुझे प्रत्येक शब्द को बहुत ही गंभीरता से चुनना है और अगर मुझे प्रबंधन के बारे में सोचना है तो मैं ऐसा नहीं कर सकता। मैं इन बदमाशों की तरह नहीं हो सकता, जो जनता को धोखा देने के लिए मानसिक रूप से कुछ भी पेश करते हैं। इसलिए यह कार्य मेरे नियुक्त सहायकों, जीबीसी, मंदिर अध्यक्षों और संन्यासियों के सहयोग के बिना पूरा नहीं होगा। मैंने अपने सर्वश्रेष्ठ पुरुषों को जीबीसी चुना है और मैं नहीं चाहता कि जीबीसी मंदिर के राष्ट्रपतियों के प्रति अपमानजनक हो। आप स्वाभाविक रूप से मुझसे परामर्श कर सकते हैं, लेकिन अगर मूल सिद्धांत कमजोर है, तो चीजें कैसे चलेंगी? इसलिए कृपया मुझे प्रबंधन में सहायता करें ताकि मैं श्रीमद-भागवतम को समाप्त करने के लिए स्वतंत्र हो सकूं जो दुनिया के लिए हमारा स्थायी योगदान होगा। – श्रीला प्रभुपाद का संचालक मंडल (जीबीसी - गवर्निंग बॉडी कमिशन) के सभी आयुक्तों को पत्र, १९ मई १९७६ यहाँ श्रीला प्रभुपाद यह कह रहे हैं कि "यह कार्य मेरे नियुक्त सहायकों के सहयोग के बिना समाप्त नहीं होगा", ताकि "वे दुनिया में हमारे स्थायी योगदान" के लिए मदद कर सकें। यह श्रीला प्रभुपाद की पुस्तकें हैं जिन्होंने "हमें एक सम्मानजनक स्थान दिया है" और "वे दुनिया के लिए सबसे बड़ा योगदान हैं"। वर्षों से, बीबीटी के भक्तों, पुस्तक वितरकों, उपदेशकों द्वारा बहुत अधिक वाणी-सेवा की गई है, जिन्होंने श्रीला प्रभुपाद के शब्दों को दृढ़ता से धारण किया है, और अन्य भक्तों द्वारा जो वाणी को एक या दूसरे तरीके से वितरित करने और संरक्षित करने के लिए समर्पित हैं। लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है। भृहत-भृहत-भृहत मृदंगा (वर्ल्ड वाइड वेब) की प्रौद्योगिकियों के माध्यम से एक साथ काम करके, अब हमारे पास बहुत कम समय में श्रीला प्रभुपाद की वाणी की एक अद्वितीय अभिव्यक्ति बनाने का अवसर है। हमारा प्रस्ताव है की हम सब वाणी-सेवा में एक साथ आएं और ४ नवंबर २०२७ तक पूरा होने वाले एक वाणी-मंदिर का निर्माण करें, जिस समय हम सभी अंतिम पचासवीं (५० वीं) वर्षगांठ मनाएंगे। वियोग में श्रीला प्रभुपाद की सेवा के ५० वर्ष। यह श्रीला प्रभुपाद के लिए प्यार की एक बहुत ही उपयुक्त और सुंदर भेंट होगी, और उनके भक्तों की आने वाली सभी पीढ़ियों के लिए एक शानदार उपहार होगा। मुझे खुशी है कि आपने अपने प्रिंटिंग प्रेस का नाम राधा प्रेस रखा है। यह बहुत संतुष्टिदायक है। आपकी राधा प्रेस को जर्मन भाषा में हमारी सभी पुस्तकों और साहित्य को प्रकाशित करने में समृद्ध होना चाहिए। बहुत अच्छा नाम है। राधारानी श्रीकृष्ण की सबसे अच्छी, सबसे बड़ी सेवादार हैं, और श्रीकृष्ण की सेवा के लिए प्रिंटिंग मशीन वर्तमान समय में सबसे बड़ा माध्यम है। इसलिए, यह वास्तव में श्रीमति राधारानी की प्रतिनिधि है। मुझे यह विचार बहुत पसंद है। – श्रीला प्रभुपाद का जया गोविंदा दास (पुस्तक उत्पादन प्रबंधक) को पत्र, ४ जुलाई १९६९ २० वीं शताब्दी के बचे हुए हिस्से के लिए, प्रिंटिंग प्रेस ने इतने सारे लोगों के द्वारा सफल प्रचार करने के लिए उपकरण प्रदान किए। श्रीला प्रभुपाद ने कहा कि कम्युनिस्ट लोग भारत में अपने द्वारा वितरित किए गए पर्चे और पुस्तकों के माध्यम से भारत में अपना प्रभाव फैलाने में बहुत माहिर थे। श्रीला प्रभुपाद ने इस उदाहरण का उपयोग कर यह व्यक्त किया कि किस तरह वे अपनी पुस्तकों को दुनिया भर में वितरित करके कृष्णभावनामृत के लिए एक बड़ा प्रचार कार्यक्रम बनाना चाहते हैं। अब, २१ वीं सदी में, श्रीला प्रभुपाद का कथन "श्रीकृष्ण की सेवा के लिए वर्तमान समय में सबसे बड़ा माध्यम है", निस्संदेह यह इंटरनेट प्रकाशन और वितरण की घातीय और अद्वितीय शक्ति पर लागू किया जा सकता है। वाणीपीडिया में, हम इस आधुनिक जन वितरण मंच पर उचित प्रतिनिधित्व के लिए श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं को तैयार कर रहे हैं। श्रील प्रभुपाद ने कहा कि जर्मनी में उनके भक्तों का राधा प्रेस "वास्तव में श्रीमति राधारानी का प्रतिनिधि था"। इसलिए हम निश्चित हैं कि वह वाणीपीडिया को भी श्रीमति राधारानी का प्रतिनिधि मानेंगे। इतने सारे सुंदर वापु-मंदिर पहले ही इस्कॉन भक्तों द्वारा बनाए गए हैं - आइए अब हम कम से कम एक शानदार वाणी-मंदिर का निर्माण करें। वापु-मंदिर भगवान के रूपों का पवित्र दर्शन प्रदान करते हैं, और एक वाणी-मंदिर भगवान और उनके शुद्ध भक्तों की शिक्षाओं का पवित्र दर्शन प्रदान करता है, जैसा कि श्रीला प्रभुपाद द्वारा उनकी किताबों में प्रस्तुत किया गया है। इस्कॉन भक्तों का काम स्वाभाविक रूप से अधिक सफल होगा जब श्रीला प्रभुपाद के उपदेश उनके सही, पूजनीय पद में स्थित होंगे। अब उनके सभी वर्तमान "नियुक्त सहायकों" के लिए उनके वाणी-मंदिर के निर्माण कार्य में और उनके वाणी-मिशन को अपनाने में और उनके पूरे आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित करने का यह एक सुनहरा और शानदार अवसर है। जिस प्रकार श्रीधाम मायापुर में गंगा के तट से उठने वाले विशाल और सुंदर वापु-मंदिर को भगवान चैतन्य की दया को पूरे विश्व में फैलाने के कार्य में मदद करने के लिए नियत किया जाता है, उसी प्रकार श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं का एक वाणी-मंदिर भी अपने इस्कॉन मिशन को मजबूत कर सभी ओर फैलाने में नियत होगा और दुनिया भर में आने वाले हजारों वर्षों के लिए श्रीला प्रभुपाद का स्वाभाविक पद भी स्थापित होगा। वाणी-सेवा - वास्तविक कार्यो से सहयोग देना और सेवा करना
 
 
 
 दान
 
 प्रायोजक: कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा अनुसार धनराशि का दान कर सकता है। सहायक संरक्षक: एक व्यक्ति या कानूनी संस्था जो कम से कम ८१ यूरो का दान करे। स्थायी संरक्षक: एक व्यक्ति या कानूनी संस्था जो ९० यूरो के ९ मासिक भुगतान करने की संभावना के साथ कम से कम ८१० यूरो का दान करे। वृद्धि संरक्षक: एक व्यक्ति या कानूनी संस्था जो ९०० यूरो के ९ वार्षिक भुगतान करने की संभावना के साथ ८,१०० यूरो का दान करे। बुनियादी संरक्षक: एक व्यक्ति या कानूनी संस्था जो ९,००० यूरो के वार्षिक भुगतान करने की संभावना के साथ ८१,००० यूरो का दान करे। 
 हम आभारी हैं - प्रार्थनाहम आभारी हैं 
 
 
 
 
 इन प्रार्थनाओं को स्वीकार करने के लिए धन्यवाद टिपण्णीकेवल श्रीला प्रभुपाद, श्री श्री पंच तत्वा, और श्री श्री राधा माधव की सशक्त कृपा से ही हम कभी इस अत्यंत कठिन कार्य को समाप्त करने की आशा कर सकते हैं। इस प्रकार हम लगातार उनकी दया के लिए प्रार्थना करते हैं। |