HI/610329 - डॉक्टर राधाकृष्णन को लिखित पत्र, दिल्ली

Revision as of 01:05, 1 February 2021 by Sahil (talk | contribs) (Created page with "Category:HI/1947 से 1964 - श्रील प्रभुपाद के पत्र‎ Category:HI/श्रील प्रभुपाद के पत्र...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)

HI/1947 से 1964 - श्रील प्रभुपाद के पत्र - मूल पृष्ठों के स्कैन सहित‎

डॉक्टर राधाकृष्णन को पत्र


दिनांक : २९ मार्च, १९६१


मेरे प्रिय डॉक्टर राधाकृष्णन,

मैंने २४वें के आपके तत्काल पत्र और मामलों को नोट किया है और इसके साथ धन्यवाद स्वीकार करने की विनती करता हूं । मैं २६ वीं रात को कटक से वापस आ गया हूं।

आप जानते हैं कि मैं एक संन्यासी हूं और मेरा बैंक से कोई संबंध नहीं है और न ही मैं वित्तपोषण संस्था से जुड़ा हुआ हूं। लेकिन जापानी आयोजकों ने मेरे साहित्य को पसंद किया है और वे चाहते हैं कि मैं वहां मौजूद रहूं।

जो कांग्रेस जापान में सम्मेलन में होने जा रही है, वह इस बात पर है कि हमें मानव अध्यात्म को कैसे संवर्धित करना चाहिए। जबकि भारतीय नेता मानव शरीर के भौतिक निर्माण पर अधिक महत्व दे रहे हैं, अन्य देशों के प्रबुद्ध लोग मानव अध्यात्म के बारे में सोच रहे हैं। दूसरे देशों के लोग जिन्होंने पहले से ही भौतिकवाद की कड़वाहट का परीक्षण किया है, वह अब इसके अलावा कुछ और मांग रहे हैं।

पहले के समय में भारत के ऋषि-मुनियों मानव अध्यात्म पर एक विस्तृत तरीके से विकास किया है । श्रीपाद शंकराचार्य, रामानुजचार्य, मध्वाचार्य और बाद में श्री चैतन्य इन सभी ने दुनिया के सभी मनुष्य के कल्याण के लिए इस विषय को सबसे अधिक वैज्ञानिक रूप से पेश किया। इसलिए मुझे लगता है कि भारत सरकार ने उपर्युक्त आचार्यो के सभी प्रतिनिधियों को आत्मीयता का संदेश देने के लिए वहाँ भेजना चाहिए।

एक ईश्वरविहीन सभ्यता (नास्तिक सभ्यता) शांति और समृद्धि नहीं ला सकती है और जब वे इसके बारे में चिंतित होते हैं तो हमें आवश्यक औषधि का प्रबंध करना चाहिए।

इसलिए मैं इस सम्मेलन में जाने के लिए बहुत उत्सुक हूं, हालांकि मेरे पास वहां जाने का कोई साधन नहीं है। वे भी मुझे वहां बुलाने के लिए बहुत उत्सुक हैं और अगर मैं कहता हूं कि आर्थिक साधनों की चाह के लिए मैं इस सम्मेलन में शामिल नहीं होना चाहता, तो मुझे लगता है कि यह मेरे देश का अपमान होगा।

पूर्व में जमींदार और प्रधान ऐसे प्रयासों के लिए मदद प्रदान करते थे। लेकिन वे अब समाप्त हो चुके हैं। इन स्थितियों में ऐसे महान मिशन में हमारी यात्रा की व्यवस्था करना सरकार का कर्तव्य है।

इसलिए मैं कामना करता हूं कि आप विशेष रूप से मेरे मामले की सिफारिश मंत्री हुमायूं कबीर को कर सकते हैं।

यदि यह पूरी तरह से असंभव है, तो व्यक्तिगत रूप से आप मुझे बिना किसी कठिनाई के वहां भेज सकते हैं। वे पहले से ही मेरे बोर्डिंग और रहने के लिए भुगतान करने के लिए सहमत हो गए हैं। मैं आपको यह भी सूचित कर सकता हूं कि अंतर्राष्ट्रीय कृषि विज्ञान सचिव ने पहले ही मेरे कुछ साहित्य प्रकाशित करने के लिए सहमति दे दी है। अगर आप कृपया किसी तरह मुझे वहां भेजते हैं, तो यह मेरे मिशन के लिए एक मौका होगा।

आपका धन्यवाद।

सादर,

ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी