BH/Prabhupada 1062 - प्रकृति पर मालिक बने के अधिकार जमावे के , हमनी के आदत बा: Difference between revisions

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इहे गलती बा. ब्रह्माण्ड में बहुत चीज, या घटना , अचरज से भरल बा , एह सब आश्चर्य के पीछे केहू मास्टर जरूर बा . बिना सिखवले या नियंता के , कुछ नईखे हो सकत. नियंता के बारे में ना सोचल त , बचपना ह. जईसे , खूब सुन्दर मोटर गाडी होखे, अच्छा स्पीड में चलत होखे , खूब अच्छा मशीन हो, सड़क पर चल रहल हो . त कवनो छोट बालक के अचरज होई " अरे ! इ कैसे सड़क पर चलता ?, एकरा के ना त घोड़ा खींचता , ना केहू आदमी ठेल रहल बा ?" लेकिन पढ़ल लिखल आदमी , का मालूम बा कि कार के भीतर के पार्ट पुर्जा , ड्राईवर का बिना, चल नईखे सकत . कार का भीतर के मशीन, चाहे बिजली के पावर हाउस में ..... आज काल त , मशीन के समय बा, मशीन का पीछे, इ जाने के चाहीं , मशीन के सब अचरज का पीछे , एक ठो , ड्राईवर होला . इ ड्राईवर भगवान हईं, अध्यक्ष .. भगवान के अधीन सब काम हो रहल बा . जीव लोग, चाहे प्राणी , भगवान एह लोग के गीता में कहले बानी , आगे वाला अध्याय में पता चली , कि सब जीव भगवान के अंग ह . ममैवांशो जीव-भूत: ([[Vanisource:BG 15.7|भ गी १५.७]]) . अंश के मतलब हिस्सा, अंग . जईसे सोना के टुकडी भी सोना ही होला , समुंद्र के एक बूँद भी, समुद्र जईसन नमकीन होला , ठीक ओही तरह से, हमनी के, सभे जीव , भगवान के अंश भइला के कारण , ईश्वर, भगवान , या भगवान श्रीकृष्ण , कहे के मतलब , जे , गुण का रूप से, भगवान के सब गुण से - छोट रूप में - जुड़ल बानी सन . एह गुण का चलते हमनी के भी छोट ईश्वर हो गईनी सन, अधीन ईश्वर . त कंट्रोल करे के बीमारी ध लेला . हमनी के आदत बा प्रकृति पर नियंत्रण करे के. आज काल त आकाश के ऊपर नियंत्रण के होड़ लागल बा . हमनीं के नकली ग्रह , उपग्रह छोडत बानी सन . त , इ कंट्रोल करे के , सिरिजना करे के आदत हमनी में बा काहे की इ गुण हमनी का मिलल बा . जाने के चाहीं जे, इ सब गुण के कवनो जरूरत नईखे . इ सब जे आदत मालिक बने के , प्रकृति का ऊपर दखल करे के , कि , हमनी के सर्वोच्च नियंता ना हईं सन. इ चीज भगवद गीता में कहल बा . त इ भौतिक प्रकृति का ह ? प्रकृति के बारे में भी कहल बा . प्रकृति, भौतिक प्रकृति - गीता में कहल बा - छोट , लघु प्रकृति ह . अपरा प्रकृति, आ जीव के कहल बा परा प्रकृति . प्रकृति के मतलब, जवना का ऊपर नियंत्रण हो , जे ... प्रकृति के असली मतलब ह, स्त्री , या नारी. जईसे पति अपना पत्नी के सब काम के नियंत्रण करे ला . ठीक ओही तरह से, प्रकृति भी अधीन रहेले , ओकरा ऊपर केहू के नियंत्रण रहे ला. भगवान , उ भगवान के नियंत्रण में रहे ले , आ प्रकृति , माने जीव आ भौतिक प्रकृति , उ अलगा अलगा प्रकृति ह, दूनो पर भगवान के कंट्रोल बा , नियंत्रण बा. प्राणी लोग भगवान के अंश ह - गीता के अनुसार- लेकिन ओह लोग के प्रकृति मानल गईल बा . इ बात गीता के सातवाँ अध्याय में कहल बा , अपरेयामितस्त्वन्याम प्रकृतिम विद्धि में अपराम ([[Vanisource:BG 7.5|भ गी ७.५]]) . इ भौतिक प्राकृत अपरा ह , छोट . इतस्तु , एकरा ओह पार, दोसर प्रकृति बा . अब उ कौन प्रकृति ह ? जीव भूत: , इ सब ..... इ प्रकृति तीन गुण से बनल बा : सात्विक , राजसिक, आ तामसिक . आ, एह तीनो गुण - सत्त्व , राज, तम - का ऊपर , शाश्वत काल बा. उहाँ पर शाश्वत समय बा . आ,प्रकृति के एही तीनो गुण का संयोग से आ, शाश्वत काल का देख रेख में सब काम, होखेला . ओही सब काम के कर्म कहल जाला . इ सब कर्म अनंत काल से चल आ रहल बा आ, हमनी के ओह के चलते दुःख चाहे सुख भोगत बानी सन .
इहे गलती बा. ब्रह्माण्ड में बहुत चीज, या घटना , अचरज से भरल बा , एह सब आश्चर्य के पीछे केहू मास्टर जरूर बा . बिना सिखवले या नियंता के , कुछ नईखे हो सकत. नियंता के बारे में ना सोचल त , बचपना ह. जईसे , खूब सुन्दर मोटर गाडी होखे, अच्छा स्पीड में चलत होखे , खूब अच्छा मशीन हो, सड़क पर चल रहल हो . त कवनो छोट बालक के अचरज होई " अरे ! इ कैसे सड़क पर चलता ?, एकरा के ना त घोड़ा खींचता , ना केहू आदमी ठेल रहल बा ?" लेकिन पढ़ल लिखल आदमी , का मालूम बा कि कार के भीतर के पार्ट पुर्जा , ड्राईवर का बिना, चल नईखे सकत . कार का भीतर के मशीन, चाहे बिजली के पावर हाउस में ..... आज काल त , मशीन के समय बा, मशीन का पीछे, इ जाने के चाहीं , मशीन के सब अचरज का पीछे , एक ठो , ड्राईवर होला . इ ड्राईवर भगवान हईं, अध्यक्ष .. भगवान के अधीन सब काम हो रहल बा . जीव लोग, चाहे प्राणी , भगवान एह लोग के गीता में कहले बानी , आगे वाला अध्याय में पता चली , कि सब जीव भगवान के अंग ह . ममैवांशो जीव-भूत: ([[Vanisource:BG 15.7 (1972)|भ गी १५.७]]) . अंश के मतलब हिस्सा, अंग . जईसे सोना के टुकडी भी सोना ही होला , समुंद्र के एक बूँद भी, समुद्र जईसन नमकीन होला , ठीक ओही तरह से, हमनी के, सभे जीव , भगवान के अंश भइला के कारण , ईश्वर, भगवान , या भगवान श्रीकृष्ण , कहे के मतलब , जे , गुण का रूप से, भगवान के सब गुण से - छोट रूप में - जुड़ल बानी सन . एह गुण का चलते हमनी के भी छोट ईश्वर हो गईनी सन, अधीन ईश्वर . त कंट्रोल करे के बीमारी ध लेला . हमनी के आदत बा प्रकृति पर नियंत्रण करे के. आज काल त आकाश के ऊपर नियंत्रण के होड़ लागल बा . हमनीं के नकली ग्रह , उपग्रह छोडत बानी सन . त , इ कंट्रोल करे के , सिरिजना करे के आदत हमनी में बा काहे की इ गुण हमनी का मिलल बा . जाने के चाहीं जे, इ सब गुण के कवनो जरूरत नईखे . इ सब जे आदत मालिक बने के , प्रकृति का ऊपर दखल करे के , कि , हमनी के सर्वोच्च नियंता ना हईं सन. इ चीज भगवद गीता में कहल बा . त इ भौतिक प्रकृति का ह ? प्रकृति के बारे में भी कहल बा . प्रकृति, भौतिक प्रकृति - गीता में कहल बा - छोट , लघु प्रकृति ह . अपरा प्रकृति, आ जीव के कहल बा परा प्रकृति . प्रकृति के मतलब, जवना का ऊपर नियंत्रण हो , जे ... प्रकृति के असली मतलब ह, स्त्री , या नारी. जईसे पति अपना पत्नी के सब काम के नियंत्रण करे ला . ठीक ओही तरह से, प्रकृति भी अधीन रहेले , ओकरा ऊपर केहू के नियंत्रण रहे ला. भगवान , उ भगवान के नियंत्रण में रहे ले , आ प्रकृति , माने जीव आ भौतिक प्रकृति , उ अलगा अलगा प्रकृति ह, दूनो पर भगवान के कंट्रोल बा , नियंत्रण बा. प्राणी लोग भगवान के अंश ह - गीता के अनुसार- लेकिन ओह लोग के प्रकृति मानल गईल बा . इ बात गीता के सातवाँ अध्याय में कहल बा , अपरेयामितस्त्वन्याम प्रकृतिम विद्धि में अपराम ([[Vanisource:BG 7.5 (1972)|भ गी ७.५]]) . इ भौतिक प्राकृत अपरा ह , छोट . इतस्तु , एकरा ओह पार, दोसर प्रकृति बा . अब उ कौन प्रकृति ह ? जीव भूत: , इ सब ..... इ प्रकृति तीन गुण से बनल बा : सात्विक , राजसिक, आ तामसिक . आ, एह तीनो गुण - सत्त्व , राज, तम - का ऊपर , शाश्वत काल बा. उहाँ पर शाश्वत समय बा . आ,प्रकृति के एही तीनो गुण का संयोग से आ, शाश्वत काल का देख रेख में सब काम, होखेला . ओही सब काम के कर्म कहल जाला . इ सब कर्म अनंत काल से चल आ रहल बा आ, हमनी के ओह के चलते दुःख चाहे सुख भोगत बानी सन .
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Latest revision as of 21:43, 8 June 2018



660219-20 - Lecture BG Introduction - New York

इहे गलती बा. ब्रह्माण्ड में बहुत चीज, या घटना , अचरज से भरल बा , एह सब आश्चर्य के पीछे केहू मास्टर जरूर बा . बिना सिखवले या नियंता के , कुछ नईखे हो सकत. नियंता के बारे में ना सोचल त , बचपना ह. जईसे , खूब सुन्दर मोटर गाडी होखे, अच्छा स्पीड में चलत होखे , खूब अच्छा मशीन हो, सड़क पर चल रहल हो . त कवनो छोट बालक के अचरज होई " अरे ! इ कैसे सड़क पर चलता ?, एकरा के ना त घोड़ा खींचता , ना केहू आदमी ठेल रहल बा ?" लेकिन पढ़ल लिखल आदमी , का मालूम बा कि कार के भीतर के पार्ट पुर्जा , ड्राईवर का बिना, चल नईखे सकत . कार का भीतर के मशीन, चाहे बिजली के पावर हाउस में ..... आज काल त , मशीन के समय बा, मशीन का पीछे, इ जाने के चाहीं , मशीन के सब अचरज का पीछे , एक ठो , ड्राईवर होला . इ ड्राईवर भगवान हईं, अध्यक्ष .. भगवान के अधीन सब काम हो रहल बा . जीव लोग, चाहे प्राणी , भगवान एह लोग के गीता में कहले बानी , आगे वाला अध्याय में पता चली , कि सब जीव भगवान के अंग ह . ममैवांशो जीव-भूत: (भ गी १५.७) . अंश के मतलब हिस्सा, अंग . जईसे सोना के टुकडी भी सोना ही होला , समुंद्र के एक बूँद भी, समुद्र जईसन नमकीन होला , ठीक ओही तरह से, हमनी के, सभे जीव , भगवान के अंश भइला के कारण , ईश्वर, भगवान , या भगवान श्रीकृष्ण , कहे के मतलब , जे , गुण का रूप से, भगवान के सब गुण से - छोट रूप में - जुड़ल बानी सन . एह गुण का चलते हमनी के भी छोट ईश्वर हो गईनी सन, अधीन ईश्वर . त कंट्रोल करे के बीमारी ध लेला . हमनी के आदत बा प्रकृति पर नियंत्रण करे के. आज काल त आकाश के ऊपर नियंत्रण के होड़ लागल बा . हमनीं के नकली ग्रह , उपग्रह छोडत बानी सन . त , इ कंट्रोल करे के , सिरिजना करे के आदत हमनी में बा काहे की इ गुण हमनी का मिलल बा . जाने के चाहीं जे, इ सब गुण के कवनो जरूरत नईखे . इ सब जे आदत मालिक बने के , प्रकृति का ऊपर दखल करे के , कि , हमनी के सर्वोच्च नियंता ना हईं सन. इ चीज भगवद गीता में कहल बा . त इ भौतिक प्रकृति का ह ? प्रकृति के बारे में भी कहल बा . प्रकृति, भौतिक प्रकृति - गीता में कहल बा - छोट , लघु प्रकृति ह . अपरा प्रकृति, आ जीव के कहल बा परा प्रकृति . प्रकृति के मतलब, जवना का ऊपर नियंत्रण हो , जे ... प्रकृति के असली मतलब ह, स्त्री , या नारी. जईसे पति अपना पत्नी के सब काम के नियंत्रण करे ला . ठीक ओही तरह से, प्रकृति भी अधीन रहेले , ओकरा ऊपर केहू के नियंत्रण रहे ला. भगवान , उ भगवान के नियंत्रण में रहे ले , आ प्रकृति , माने जीव आ भौतिक प्रकृति , उ अलगा अलगा प्रकृति ह, दूनो पर भगवान के कंट्रोल बा , नियंत्रण बा. प्राणी लोग भगवान के अंश ह - गीता के अनुसार- लेकिन ओह लोग के प्रकृति मानल गईल बा . इ बात गीता के सातवाँ अध्याय में कहल बा , अपरेयामितस्त्वन्याम प्रकृतिम विद्धि में अपराम (भ गी ७.५) . इ भौतिक प्राकृत अपरा ह , छोट . इतस्तु , एकरा ओह पार, दोसर प्रकृति बा . अब उ कौन प्रकृति ह ? जीव भूत: , इ सब ..... इ प्रकृति तीन गुण से बनल बा : सात्विक , राजसिक, आ तामसिक . आ, एह तीनो गुण - सत्त्व , राज, तम - का ऊपर , शाश्वत काल बा. उहाँ पर शाश्वत समय बा . आ,प्रकृति के एही तीनो गुण का संयोग से आ, शाश्वत काल का देख रेख में सब काम, होखेला . ओही सब काम के कर्म कहल जाला . इ सब कर्म अनंत काल से चल आ रहल बा आ, हमनी के ओह के चलते दुःख चाहे सुख भोगत बानी सन .