HI/670415 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
“धर्माविरुद्धो कामोस्मि अहम् (श्रीमद्भगवद्गीता ७.११) । कामेच्छा जो धर्मसम्मत है वह हूँ मैं ।” वह कृष्ण है । कामेच्छा को भोग करना - इसका अर्थ यह नहीं जैसे बिल्ली की तरह, हम स्वतन्त्र हैं । यह कैसी स्वत्नत्रता है ? वह स्वतंत्रता कुत्ते बिल्लिओं जैसे है । वे इतने स्वच्छंद हैं कि सड़क पर कामोपभोग करते हैं । तुम्हारे पास इतनी स्वतंत्रता नहीं है । तुमको एक कक्ष एक गृह खोजना पड़ता है । तो क्या तुम इस स्वतंत्रता को चाहते हो ? यह स्वत्नत्रता नहीं है । यह तो है, मेरा मतलब है, नर्क गमन । यह स्वत्नत्रता नहीं है । इसलिए वैदिक ग्रंथ प्रोत्साहित करते हैं कि यदि तुम कामोपभोग का जीवन चाहते हो, तो तुम गृहस्थ बनो । तुम एक अच्छी कन्या से विवाह करो, और फिर तुम्हें बहुत अच्छी ज़िम्मेदारी मिल जाएगी । यह, यह छूट, कामोपभोग के जीवन, की अनुमति है ताकि तुमको सब की सेवा करनी है । यह ज़िम्मेदारी है ।”
                       प्रवचन श्री चैतन्य चरितामृत आदिलीला ०७.१०८-१०९ - न्यूयार्क

670415 - प्रवचन CC Adi 07.108-109 - न्यूयार्क