HI/690411b बातचीत - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/690411R1-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|"वन में कुछ संकट था क्योंकि कंस कृष्ण को मारने के लिए आतुर था। वह अपने अनुयायिओं को भेज रहा था। इसलिए कुछ असुर जैसे बकासुर, अघासुर आते और कृष्ण उनका संहार कर देता । और लड़के घर लौटकर अपनी माताओं को घटित कहानी सुनाते थे। 'ओह, मेरी प्यारी माँ!  ऐसी-ऐसी घटना घटी और कृष्ण ने उस राक्षस का संहार कर दिया.' बहुत...' (हँसी) माँ बोली, 'ओह, हाँ, हमारा कृष्ण बहुत अद्भुत है!' (हँसी) तो कृष्ण उनके आनंद का केंद्र था। बस इतना ही। माँ कृष्ण की चर्चा कर रही है, लड़का कृष्ण की चर्चा कर रहा है। इसलिए वे कृष्ण के अलावा कुछ नहीं जानते थे। कृष्ण। जब भी कोई संकट होती है, तो 'ओह कृष्ण'। जब आग लगती है तो , 'ओह, कृष्ण'। यही वृंदावन की सुंदरता है। उनका मन कृष्ण में लीन है। तत्त्वज्ञान के माध्यम से नहीं। ज्ञान के माध्यम से नहीं, बल्कि  सहज प्रेम से। 'कृष्ण हमारे गांव का छोरा है, हमारा रिश्तेदार, हमारा दोस्त, हमारा मित्र, हमारा प्रेमी, हमारा स्वामी है।' किसी भी तरह, Kṛṣṇa।"|Vanisource:690411 - Conversation - New York|690411 - वार्तालाप - न्यूयार्क}}
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{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/690411 बातचीत - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|690411|HI/690413 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|690413}}
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Latest revision as of 06:13, 17 January 2021

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"वन में कुछ संकट था क्योंकि कंस कृष्ण को मारने के लिए आतुर था। वह अपने अनुयायिओं को भेज रहा था। इसलिए कुछ असुर जैसे बकासुर, अघासुर आते और कृष्ण उनका संहार कर देता। और लड़के घर लौटकर अपनी माताओं को घटित कहानी सुनाते थे। 'ओह, मेरी प्यारी माँ! ऐसी-ऐसी घटना घटी और कृष्ण ने उस राक्षस का संहार कर दिया.' बहुत...' (हँसी) माँ बोली, 'ओह, हाँ, हमारा कृष्ण बहुत अद्भुत है!' (हँसी) तो कृष्ण उनके आनंद का केंद्र था। बस इतना ही। माँ कृष्ण की चर्चा कर रही है, लड़का कृष्ण की चर्चा कर रहा है। इसलिए वे कृष्ण के अलावा कुछ नहीं जानते थे। कृष्ण। जब भी कोई संकट होती है, तो 'ओह कृष्ण'। जब आग लगती है तो, 'ओह, कृष्ण'। यही वृंदावन की सुंदरता है। उनका मन कृष्ण में लीन है। तत्त्वज्ञान के माध्यम से नहीं। ज्ञान के माध्यम से नहीं, बल्कि सहज प्रेम से। 'कृष्ण हमारे गांव का छोरा है, हमारा रिश्तेदार, हमारा दोस्त, हमारा मित्र, हमारा प्रेमी, हमारा स्वामी है।' किसी भी तरह, कृष्ण।"
690411 - वार्तालाप - न्यूयार्क