HI/690827 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद हैम्बर्ग में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
No edit summary
 
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६९‎]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६९‎]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - हैम्बर्ग]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - हैम्बर्ग]]
{{Audiobox_NDrops|Nectar Drops from Srila Prabhupada|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/690827IN-HAMBURG_ND_01.mp3</mp3player>|"तो कृष्ण का नाम और कृष्ण अलग नहीं है। इसलिए, जैसे ही मेरी जीभ कृष्ण के पवित्र नाम को छूती है, इसका मतलब है कि यह तुरंत कृष्ण से जुड़ा जाती है। इसलिए यदि आप लगातार इस मंत्र का जप करके हरे कृष्ण से जुड़े रहें, तो हरे कृष्ण, बस कल्पना करें कि इस प्रक्रिया से आप आसानी से शुद्ध कैसे हो रहे हैं, चिंतन करते हैं, जिहावाडो, चिल्लाते हुए जीभ को जोड़ते हैं। और आपकी जीभ स्वाद के लिए बहुत ही सुखद व्यंजन चाहता है। तो कृष्ण बहुत दयालु है। उसने आपको सैकड़ों और हजारों सुन्दर व्यंजन दिए हैं, उसके द्वारा खाए गए खाद्य पदार्थों के अवशेष। आप खाते हैं। इस तरह, यदि आप इसे दृढ़ संकल्प देते हैं कि 'मैं अपनी जीभ को किसी भी चीज का स्वाद लेने की इजाजत नहीं देता जो कि कृष्ण को नहीं दिया जाता है, और मैं हमेशा अपनी जिव्हा को हरे कृष्ण का जप करने मैं लगाऊंगा' , तो सभी सिद्धि आपके पकड़ में है।"|Vanisource:690827 - Lecture Initiation - Hamburg|690827 - Lecture Initiation - Hamburg}}
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/690716c प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|690716c|HI/690905 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद हैम्बर्ग में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|690905}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
{{Audiobox_NDrops|Nectar Drops from Srila Prabhupada|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/690827IN-HAMBURG_ND_01.mp3</mp3player>|तो कृष्ण का नाम और कृष्ण कृष्ण भिन्न नहीं है। तो जैसे ही मेरी जिह्वा कृष्ण के पवित्र नाम का स्पर्श करती है, इसका अर्थ है वह तुरंत कृष्ण का संग करती है। तो यदि तुम इस मन्त्र हरे कृष्ण का कीर्तन करके निरंतर स्वयं को कृष्ण से समबद्ध रखोगे, तब तनिक कल्पना करो किस प्रकार तुम इस विधि के द्वारा सरलता से शोधित हो रहे हो, कीर्तन, जिह्वादौ, जिह्वा को कीर्तन में नियुक्त करने से। और तुम्हारी जिह्वा बहुत स्वादिष्ट व्यंजनों का स्वाद लेना चाहती है। तो कृष्ण अति दयालु हैं। उन्होंने तुम्हें हज़ारों स्वादिष्ट व्यंजन प्रदान किये हैं, उनके द्वारा भोग लगाए हुए अवशिष्ट खाद्य पदार्थ। तुम (भी) पाओ। इस प्रकार से, यदि तुम बस यह दृढ संकल्प बनाते हो कि जो कुछ भी कृष्ण को अर्पित नहीं हुआ है उसे मैं अपनी जिह्वा को आस्वादन नहीं करने दूंगा, और मैं अपनी जिह्वा को सदैव हरे कृष्ण कीर्तन करने में नियुक्त करूँगा, तब सम्पूर्ण सिद्धि तुम्हारी पकड़ में है।|Vanisource:690827 - Lecture Initiation - Hamburg|690827 - दीक्षा प्रवचन - हैम्बर्ग}}

Latest revision as of 00:16, 27 November 2020

Nectar Drops from Srila Prabhupada
तो कृष्ण का नाम और कृष्ण कृष्ण भिन्न नहीं है। तो जैसे ही मेरी जिह्वा कृष्ण के पवित्र नाम का स्पर्श करती है, इसका अर्थ है वह तुरंत कृष्ण का संग करती है। तो यदि तुम इस मन्त्र हरे कृष्ण का कीर्तन करके निरंतर स्वयं को कृष्ण से समबद्ध रखोगे, तब तनिक कल्पना करो किस प्रकार तुम इस विधि के द्वारा सरलता से शोधित हो रहे हो, कीर्तन, जिह्वादौ, जिह्वा को कीर्तन में नियुक्त करने से। और तुम्हारी जिह्वा बहुत स्वादिष्ट व्यंजनों का स्वाद लेना चाहती है। तो कृष्ण अति दयालु हैं। उन्होंने तुम्हें हज़ारों स्वादिष्ट व्यंजन प्रदान किये हैं, उनके द्वारा भोग लगाए हुए अवशिष्ट खाद्य पदार्थ। तुम (भी) पाओ। इस प्रकार से, यदि तुम बस यह दृढ संकल्प बनाते हो कि जो कुछ भी कृष्ण को अर्पित नहीं हुआ है उसे मैं अपनी जिह्वा को आस्वादन नहीं करने दूंगा, और मैं अपनी जिह्वा को सदैव हरे कृष्ण कीर्तन करने में नियुक्त करूँगा, तब सम्पूर्ण सिद्धि तुम्हारी पकड़ में है।
690827 - दीक्षा प्रवचन - हैम्बर्ग