HI/700514 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
No edit summary
 
(One intermediate revision by one other user not shown)
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७०]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७०]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - लॉस एंजेलेस]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - लॉस एंजेलेस]]
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/700514LE-LOS_ANGELES_ND_01.mp3</mp3player>|"तुम इस शरीर को बारंबार जन्म मृत्यु से मुक्त नहीं कर सकते, और जब प्रकट होते हैं, व्याधि और वृद्धावस्था। तो लोग इस शरीर के ज्ञान को सुधारने में बहुत व्यस्त रहते हैं, यद्यपि वे देख रहे हैं कि प्रतिक्षण यह शरीर क्षय हो रहा है। शरीर कि मृत्यु निश्चित हो गयी थी जब इसका जन्म हुआ था। यह तथ्य है। तो तुम इस शरीर की प्राकृतिक गति को नहीं रोक सकते। तुम्हें अवश्य शरीर की क्रिया से सामना करना होगा, जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था, और व्याधि। "  |Vanisource:700514 - Lecture ISO 09-10 - Los Angeles|700514 - प्रवचन ISO 09-10 - लॉस एंजेलेस}}
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/700513b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|700513b|HI/700515 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|700515}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/700514LE-LOS_ANGELES_ND_01.mp3</mp3player>|"तुम इस शरीर को बारंबार जन्म मृत्यु से मुक्त नहीं कर सकते, और तब प्रकट होते हैं, व्याधि और वृद्धावस्था। लोग इस शरीर के ज्ञान को सुधारने में बहुत व्यस्त रहते हैं, यद्यपि वे देख रहे हैं कि प्रतिक्षण यह शरीर क्षय हो रहा है। शरीर की मृत्यु निश्चित हो गयी थी जब इसका जन्म हुआ था। यह तथ्य है। तुम इस शरीर की प्राकृतिक गति को नहीं रोक सकते। तुम्हें अवश्य शरीर की क्रिया से सामना करना होगा, जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था, और व्याधि।"  |Vanisource:700514 - Lecture ISO 09-10 - Los Angeles|700514 - प्रवचन ISO 09-10 - लॉस एंजेलेस}}

Latest revision as of 15:20, 9 January 2023

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तुम इस शरीर को बारंबार जन्म मृत्यु से मुक्त नहीं कर सकते, और तब प्रकट होते हैं, व्याधि और वृद्धावस्था। लोग इस शरीर के ज्ञान को सुधारने में बहुत व्यस्त रहते हैं, यद्यपि वे देख रहे हैं कि प्रतिक्षण यह शरीर क्षय हो रहा है। शरीर की मृत्यु निश्चित हो गयी थी जब इसका जन्म हुआ था। यह तथ्य है। तुम इस शरीर की प्राकृतिक गति को नहीं रोक सकते। तुम्हें अवश्य शरीर की क्रिया से सामना करना होगा, जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था, और व्याधि।"
700514 - प्रवचन ISO 09-10 - लॉस एंजेलेस