HI/710217c प्रवचन - श्रील प्रभुपाद गोरखपुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/710217SB-GORAKHPUR_ND_01.mp3</mp3player>|"अजामिल, वहां शुद्ध संकीर्तन नहीं था। जैसे मंत्र, महा-मंत्र गान करने के समय दस प्रकार के अपराधों के परिहार का हमें सुझाव दिया जाता है। तो अजामिल का ऐसा कोई विचार नहीं था। उसका आशय नारायण के पवित्र नाम के उच्चारण का कभी नहीं था। श्रीधर स्वामी द्वारा इस तथ्य पर बल दिया जा रहा है। उसने सिर्फ अपने पुत्र को बुलाया था, जिसका नाम नारायण था। वह व्यावहारिक रूप से कीर्तन नहीं था, किन्तु ठीक इसी (नारायण नाम के) स्पंदन, अतीन्द्रिय स्पंदन, में इतनी शक्ति है कि बिना नाम गान के नियमों का विधिवत पालन करे, वह तुरंत सभी पापमय प्रतिक्रिया से मुक्त हो गया। इस तथ्य पर यहाँ बल दिया गया है।  "|Vanisource:710217 - Lecture - Gorakhpur|710217 - प्रवचन - गोरखपुर}}
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Latest revision as of 23:14, 20 July 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"अजामिल, वहां शुद्ध संकीर्तन नहीं था। जैसे मंत्र, महा-मंत्र गान करने के समय दस प्रकार के अपराधों के परिहार का हमें सुझाव दिया जाता है। तो अजामिल का ऐसा कोई विचार नहीं था। उसका आशय नारायण के पवित्र नाम के उच्चारण का कभी नहीं था। श्रीधर स्वामी द्वारा इस तथ्य पर बल दिया जा रहा है। उसने सिर्फ अपने पुत्र को बुलाया था, जिसका नाम नारायण था। वह व्यावहारिक रूप से कीर्तन नहीं था, किन्तु ठीक इसी (नारायण नाम के) स्पंदन, अतीन्द्रिय स्पंदन, में इतनी शक्ति है कि बिना नाम गान के नियमों का विधिवत पालन करे, वह तुरंत सभी पापमय प्रतिक्रिया से मुक्त हो गया। इस तथ्य पर यहाँ बल दिया गया है। "
710217 - प्रवचन - गोरखपुर