HI/710724b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
(Vanibot #0025: NectarDropsConnector - add new navigation bars (prev/next))
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७१]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७१]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - न्यूयार्क]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - न्यूयार्क]]
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/710724 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|710724|HI/710725 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|710725}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/710724SB-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|"तो यस्यात्मा-बुद्धिं  कुनपे त्रि-धातुके। ... मल, मूत्र, रक्त, हड्डियों की यह थैली, यदि कोई यह समझता है कि बुद्धि इस मल, मूत्र और रक्त और हड्डी से निकलती है, तो वह मूर्ख है। क्या आप मल और मूत्र और हड्डियाँ और खून लेकर, इन्हे मिलाकर, प्रयोगशाला में बुद्धि पैदा कर सकते हैं , कुछ बुद्धि बना सकते हैं? क्या यह संभव है? लेकिन वे ऐसा सोच रहे हैं, 'मैं यह शरीर हूँ।'"|Vanisource:710724 - Lecture SB 06.01.08-13 - New York|710724 - प्रवचन श्री. भा. ०६.०१.०८-१३  - न्यूयार्क}}
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/710724SB-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|"तो यस्यात्मा-बुद्धिं  कुनपे त्रि-धातुके। ... मल, मूत्र, रक्त, हड्डियों की यह थैली, यदि कोई यह समझता है कि बुद्धि इस मल, मूत्र और रक्त और हड्डी से निकलती है, तो वह मूर्ख है। क्या आप मल और मूत्र और हड्डियाँ और खून लेकर, इन्हे मिलाकर, प्रयोगशाला में बुद्धि पैदा कर सकते हैं , कुछ बुद्धि बना सकते हैं? क्या यह संभव है? लेकिन वे ऐसा सोच रहे हैं, 'मैं यह शरीर हूँ।'"|Vanisource:710724 - Lecture SB 06.01.08-13 - New York|710724 - प्रवचन श्री. भा. ०६.०१.०८-१३  - न्यूयार्क}}

Revision as of 06:06, 17 January 2022

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तो यस्यात्मा-बुद्धिं कुनपे त्रि-धातुके। ... मल, मूत्र, रक्त, हड्डियों की यह थैली, यदि कोई यह समझता है कि बुद्धि इस मल, मूत्र और रक्त और हड्डी से निकलती है, तो वह मूर्ख है। क्या आप मल और मूत्र और हड्डियाँ और खून लेकर, इन्हे मिलाकर, प्रयोगशाला में बुद्धि पैदा कर सकते हैं , कुछ बुद्धि बना सकते हैं? क्या यह संभव है? लेकिन वे ऐसा सोच रहे हैं, 'मैं यह शरीर हूँ।'"
710724 - प्रवचन श्री. भा. ०६.०१.०८-१३ - न्यूयार्क