HI/721023 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
(Vanibot #0025: NectarDropsConnector - update old navigation bars (prev/next) to reflect new neighboring items)
 
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७२]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७२]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - वृंदावन]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - वृंदावन]]
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/721012 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मनिला में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|721012|HI/721024 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|721024}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/721023SB-VRNDAVAN_ND_01.mp3</mp3player>|"यह लक्षण है किस प्रकार व्यक्ति कृष्ण भावना में अग्रसर हो रहा है।  इसका मतलब सभी उत्तम गुण उसके चरित्र में दृष्टिगोचर हो जायेंगे। यह व्यवहारसिद्ध है। कोई भी जाँच सकता है। ठीक जैसे ये लड़के, ये लड़कियां, युरोपियन, अमेरिकन लड़के लड़कियां जिन्होनें कृष्ण भावना को स्वीकार करा है, जरा देखो कैसे इनकी बुरी प्रवृत्तियां पूर्णतः रुक गयी हैं। सर्वैर गुणैः तत्र समासते सुराः। सभी उत्तम गुण विकसित हो जायेंगे।  व्यावहारिक तरह से देखो। व्यावहारिक तरह से देखो।  ये युवा लड़के और लड़कियां, इन्होने मुझसे कभी नहीं पूछा कि 'मुझे कुछ धन दो। मैं सिनेमा जाऊंगा', या 'मैं सिगरेट का पैकेट खरीदूंगा। मैं मद्यपान करूँगा', नहीं। यह व्यावहारिक है। और सभी को ज्ञात है कि ये जन्म से ही, मांस खाने के अभ्यस्त हैं, और... मुझे नहीं मालूम शुरुआत से ही ये नशा करने के अभ्यस्त हैं (या नहीं)।  वास्तव में ये इन चीज़ों के आदी थे, किन्तु (अब) इन्होने पूर्णतः त्याग दिया है। ये चाय तक नहीं पीते, कॉफी, सिगरेट कुछ भी। सर्वैर गुणैः तत्र समासते... यह कसौटी है। एक व्यक्ति (यदि) भक्त बन गया है, उसी समय धूम्रपान (भी करे)-यह हास्यास्पद है।"|Vanisource:721023 - Lecture SB 01.02.12 - Vrndavana|721023 - प्रवचन SB 01.02.12 - वृंदावन}}
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/721023SB-VRNDAVAN_ND_01.mp3</mp3player>|"यह लक्षण है किस प्रकार व्यक्ति कृष्ण भावना में अग्रसर हो रहा है।  इसका मतलब सभी उत्तम गुण उसके चरित्र में दृष्टिगोचर हो जायेंगे। यह व्यवहारसिद्ध है। कोई भी जाँच सकता है। ठीक जैसे ये लड़के, ये लड़कियां, युरोपियन, अमेरिकन लड़के लड़कियां जिन्होनें कृष्ण भावना को स्वीकार करा है, जरा देखो कैसे इनकी बुरी प्रवृत्तियां पूर्णतः रुक गयी हैं। सर्वैर गुणैः तत्र समासते सुराः। सभी उत्तम गुण विकसित हो जायेंगे।  व्यावहारिक तरह से देखो। व्यावहारिक तरह से देखो।  ये युवा लड़के और लड़कियां, इन्होने मुझसे कभी नहीं पूछा कि 'मुझे कुछ धन दो। मैं सिनेमा जाऊंगा', या 'मैं सिगरेट का पैकेट खरीदूंगा। मैं मद्यपान करूँगा', नहीं। यह व्यावहारिक है। और सभी को ज्ञात है कि ये जन्म से ही, मांस खाने के अभ्यस्त हैं, और... मुझे नहीं मालूम शुरुआत से ही ये नशा करने के अभ्यस्त हैं (या नहीं)।  वास्तव में ये इन चीज़ों के आदी थे, किन्तु (अब) इन्होने पूर्णतः त्याग दिया है। ये चाय तक नहीं पीते, कॉफी, सिगरेट कुछ भी। सर्वैर गुणैः तत्र समासते... यह कसौटी है। एक व्यक्ति (यदि) भक्त बन गया है, उसी समय धूम्रपान (भी करे)-यह हास्यास्पद है।"|Vanisource:721023 - Lecture SB 01.02.12 - Vrndavana|721023 - प्रवचन SB 01.02.12 - वृंदावन}}

Latest revision as of 23:21, 31 August 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"यह लक्षण है किस प्रकार व्यक्ति कृष्ण भावना में अग्रसर हो रहा है। इसका मतलब सभी उत्तम गुण उसके चरित्र में दृष्टिगोचर हो जायेंगे। यह व्यवहारसिद्ध है। कोई भी जाँच सकता है। ठीक जैसे ये लड़के, ये लड़कियां, युरोपियन, अमेरिकन लड़के लड़कियां जिन्होनें कृष्ण भावना को स्वीकार करा है, जरा देखो कैसे इनकी बुरी प्रवृत्तियां पूर्णतः रुक गयी हैं। सर्वैर गुणैः तत्र समासते सुराः। सभी उत्तम गुण विकसित हो जायेंगे। व्यावहारिक तरह से देखो। व्यावहारिक तरह से देखो। ये युवा लड़के और लड़कियां, इन्होने मुझसे कभी नहीं पूछा कि 'मुझे कुछ धन दो। मैं सिनेमा जाऊंगा', या 'मैं सिगरेट का पैकेट खरीदूंगा। मैं मद्यपान करूँगा', नहीं। यह व्यावहारिक है। और सभी को ज्ञात है कि ये जन्म से ही, मांस खाने के अभ्यस्त हैं, और... मुझे नहीं मालूम शुरुआत से ही ये नशा करने के अभ्यस्त हैं (या नहीं)। वास्तव में ये इन चीज़ों के आदी थे, किन्तु (अब) इन्होने पूर्णतः त्याग दिया है। ये चाय तक नहीं पीते, कॉफी, सिगरेट कुछ भी। सर्वैर गुणैः तत्र समासते... यह कसौटी है। एक व्यक्ति (यदि) भक्त बन गया है, उसी समय धूम्रपान (भी करे)-यह हास्यास्पद है।"
721023 - प्रवचन SB 01.02.12 - वृंदावन