HI/731015 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तो हम स्थिति को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि आखिरकार, जैसे ही आपको यह भौतिक शरीर मिलता है, वह पीड़ा देता है। खुशी का कोई सवाल ही नहीं है। लेकिन भ्रान्तिजनक शक्ति से, भ्रम से हम सोच रहे हैं कि हम आनंद ले रहे हैं। इसे भ्रम कहा जाता है, माया। उसी उदाहरण की तरह: एक सूअर मल खा रहा है, लेकिन वह सोच रहा है कि वह आनंद ले रहा है। इसे प्रक्षेपात्मिका-शक्ति कहा जाता है। केवल सूअर ही नहीं; मानव समाज में भी, कोई व्यक्ति सबसे घृणित, सबसे सड़ी हुई मछली खाता है, फिर भी, वह सोच रहा है कि वह आनंद ले रहा है।"
731015 - प्रवचन भ.गी. १३.२१ - बॉम्बे