HI/751015 बातचीत - श्रील प्रभुपाद जोहानसबर्ग में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/751015R1-JOHANNESBURG_ND_01.mp3</mp3player>|"आपको यह समझना चाहिए कि जैसे ही आप इस भौतिक शरीर को प्राप्त करते हैं, केवल क्लेश होगा। इसलिए संपूर्ण वैदिक सभ्यता एक शिष्टता है इस भौतिक शरीर को रोकने का। मायावादी दार्शनिक, वे भी कोशिश कर रहे हैं। बौद्ध धर्म के अनुयायी, वे भी कोशिश कर रहे हैं। लेकिन वे सोच रहे हैं कि 'आत्मा नहीं है। इस शरीर को समाप्त करो' यह बौद्ध सिद्धांत है। लेकिन वे जानते हैं कि यह क्लेश है। इसी प्रकार, मायावादी, वे भी जानते हैं कि यह शरीर पीड़ित है, इसलिए वे इस शरीर को त्याग कर ईश्वर के अस्तित्व में विलीन होना चाहते हैं। इंद्रियां तो हैं ही, बौद्ध धर्म के अनुयायी हों या मायावाद। और वैष्णव तत्त्वज्ञान है, 'न केवल जीवन की इस दयनीय स्थिति से बाहर निकलें, बल्कि कृष्ण के परिवार में प्रवेश करें और शांतिपूर्वक जीवन व्यतीत करें'। लेकिन जब तक यह शरीर दूषित है, ये सभी तत्त्वों को स्वीकार है।"|Vanisource:751015 - Conversation - Johannesburg|751015 - वार्तालाप - जोहानसबर्ग}} | {{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/751015R1-JOHANNESBURG_ND_01.mp3</mp3player>|"आपको यह समझना चाहिए कि जैसे ही आप इस भौतिक शरीर को प्राप्त करते हैं, केवल क्लेश होगा। इसलिए संपूर्ण वैदिक सभ्यता एक शिष्टता है इस भौतिक शरीर को रोकने का। मायावादी दार्शनिक, वे भी कोशिश कर रहे हैं। बौद्ध धर्म के अनुयायी, वे भी कोशिश कर रहे हैं। लेकिन वे सोच रहे हैं कि 'आत्मा नहीं है। इस शरीर को समाप्त करो' यह बौद्ध सिद्धांत है। लेकिन वे जानते हैं कि यह क्लेश है। इसी प्रकार, मायावादी, वे भी जानते हैं कि यह शरीर पीड़ित है, इसलिए वे इस शरीर को त्याग कर ईश्वर के अस्तित्व में विलीन होना चाहते हैं। इंद्रियां तो हैं ही, बौद्ध धर्म के अनुयायी हों या मायावाद। और वैष्णव तत्त्वज्ञान है, 'न केवल जीवन की इस दयनीय स्थिति से बाहर निकलें, बल्कि कृष्ण के परिवार में प्रवेश करें और शांतिपूर्वक जीवन व्यतीत करें'। लेकिन जब तक यह शरीर दूषित है, ये सभी तत्त्वों को स्वीकार है।"|Vanisource:751015 - Conversation - Johannesburg|751015 - वार्तालाप - जोहानसबर्ग}} |
Latest revision as of 06:05, 25 January 2021
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"आपको यह समझना चाहिए कि जैसे ही आप इस भौतिक शरीर को प्राप्त करते हैं, केवल क्लेश होगा। इसलिए संपूर्ण वैदिक सभ्यता एक शिष्टता है इस भौतिक शरीर को रोकने का। मायावादी दार्शनिक, वे भी कोशिश कर रहे हैं। बौद्ध धर्म के अनुयायी, वे भी कोशिश कर रहे हैं। लेकिन वे सोच रहे हैं कि 'आत्मा नहीं है। इस शरीर को समाप्त करो' यह बौद्ध सिद्धांत है। लेकिन वे जानते हैं कि यह क्लेश है। इसी प्रकार, मायावादी, वे भी जानते हैं कि यह शरीर पीड़ित है, इसलिए वे इस शरीर को त्याग कर ईश्वर के अस्तित्व में विलीन होना चाहते हैं। इंद्रियां तो हैं ही, बौद्ध धर्म के अनुयायी हों या मायावाद। और वैष्णव तत्त्वज्ञान है, 'न केवल जीवन की इस दयनीय स्थिति से बाहर निकलें, बल्कि कृष्ण के परिवार में प्रवेश करें और शांतिपूर्वक जीवन व्यतीत करें'। लेकिन जब तक यह शरीर दूषित है, ये सभी तत्त्वों को स्वीकार है।" |
751015 - वार्तालाप - जोहानसबर्ग |