HI/BG 11.28: Difference between revisions
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:समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति । | |||
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:विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति ॥२८॥ | |||
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Latest revision as of 09:23, 8 August 2020
श्लोक 28
- यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः
- समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति ।
- तथा तवामी नरलोकवीरा
- विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति ॥२८॥
शब्दार्थ
यथा—जिस प्रकार; नदीनाम्—नदियों की; बहव:—अनेक; अम्बु-वेगा:—जल की तरंगें; समुद्रम्—समुद्र; एव—निश्चय ही; अभिमुखा:—की ओर; द्रवन्ति—दौती हैं; तथा—उसी प्रकार से; तव—आपके; अमी—ये सब; नर-लोक-वीरा:—मानव समाज के राजा; विशन्ति—प्रवेश कर रहे हैं; वक्त्राणि—मुखों में; अभिविज्वलन्ति—प्रज्ज्वलित हो रहे हैं।
अनुवाद
जिस प्रकार नदियों की अनेक तरंगें समुद्रमें प्रवेश करती हैं, उसीप्रकार ये समस्त महान योद्धा भी आपके प्रज्जवलितमुखों में प्रवेश कर रहे हैं |