HI/BG 11.50

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His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 50

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शब्दार्थ

सञ्जय: उवाच—संजय ने कहा; इति—इस प्रकार; अर्जुनम्—अर्जुन को; वासुदेव:—कृष्ण ने; तथा—उस प्रकार से; उक्त्वा—कहकर; स्वकम्—अपना, स्वीय; रूपम्—रूप को; दर्शयाम् आस—दिखलाया; भूय:—फिर; आश्वासयाम् आस—धीरज धराया; च—भी; भीतम्—भयभीत; एनम्—उसको; भूत्वा—होकर; पुन:—फिर; सौम्य-वपु:—सुन्दर रूप; महा-आत्मा—महापुरुष।

अनुवाद

संजय ने धृतराष्ट्र से कहा – अर्जुन से इस प्रकार कहने के बाद भगवान् कृष्णने अपना असली चतुर्भुज रूप प्रकट किया और अन्त में दो भुजाओं वाला रूपप्रदर्शित करके भयभीत अर्जुन को धैर्य बँधाया |

तात्पर्य

जब कृष्ण वासुदेव तथा देवकी के पुत्र के रूप में प्रकट हुए तो पहले वेचतुर्भुज नारायण रूप में ही प्रकट हुए, किन्तु जब उनके माता-पिता नेप्रार्थना की तो उन्होंने सामान्य बालक का रूप धारण कर लिया | उसी प्रकारकृष्ण को ज्ञात था कि अर्जुन उनके चतुर्भुज रूप को देखने का इच्छुक नहींहै, किन्तु चूँकि अर्जुन ने उनको इस रूप में देखने की प्रार्थना की थी, अतःकृष्ण ने पहले अपना चतुर्भुज रूप दिखलाया और फिर वे अपने दो भुजाओं वालेरूप में प्रकट हुए | सौम्यवपुः शब्द अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है | इसका अर्थहै अत्यन्त सुन्दर रूप | जब कृष्ण विद्यमान थे तो सारे लोग उनके रूप पर हीमोहित हो जाते थे और चूँकि कृष्ण इस विश्र्व के निर्देशक हैं, अतः उन्होंनेअपने भक्त अर्जुन का भय दूर किया और पुनः उसे अपना सुन्दर (सौम्य) रूपदिखलाया | ब्रह्मसंहिता में (५.३८) कहा गया है – प्रेमाञ्जनच्छुरितभक्तिविलोचनेन – जिस व्यक्ति की आँखों में प्रेमरूपी अंजन लगा है, वाहीकृष्ण के सौम्यरूप का दर्शन कर सकता है |