HI/BG 11.51: Difference between revisions

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==== श्लोक 51 ====
==== श्लोक 51 ====


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:अर्जुन उवाच
 
:दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तव सौम्यं जनार्दन ।
:इदानीमस्मि संवृत्तः सचेताः प्रकृतिं गतः ॥५१॥
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सञ्जय: उवाच—संजय ने कहा; इति—इस प्रकार; अर्जुनम्—अर्जुन को; वासुदेव:—कृष्ण ने; तथा—उस प्रकार से; उक्त्वा—कहकर; स्वकम्—अपना, स्वीय; रूपम्—रूप को; दर्शयाम् आस—दिखलाया; भूय:—फिर; आश्वासयाम् आस—धीरज धराया; च—भी; भीतम्—भयभीत; एनम्—उसको; भूत्वा—होकर; पुन:—फिर; सौम्य-वपु:—सुन्दर रूप; महा-आत्मा—महापुरुष।
अर्जुन: उवाच—अर्जुन ने कहा; ²ष्ट्वा—देखकर; इदम्—इस; मानुषम्—मानवी; रूपम्—रूप को; तव—आपके; सौम्यम्—अत्यन्त सुन्दर; जनार्दन—हे शत्रुओं को दण्डित करने वाले; इदानीम्—अब; अस्मि—हूँ; संवृत्त:—स्थिर; -चेता:—अपनी चेतना में; प्रकृतिम्—अपनी प्रकृति को; गत:—पुन: प्राह्रश्वत हूँ।
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संजय ने धृतराष्ट्र से कहा – अर्जुन से इस प्रकार कहने के बाद भगवान् कृष्णने अपना असली चतुर्भुज रूप प्रकट किया और अन्त में दो भुजाओं वाला रूपप्रदर्शित करके भयभीत अर्जुन को धैर्य बँधाया |
जब अर्जुन ने कृष्ण को उनके आदि रूप मेंदेखा तो कहा – हे जनार्दन! आपके इस अतीव सुन्दर मानवी रूप को देखकर मैं अबस्थिरचित्त हूँ और मैंने अपनी प्राकृत अवस्था प्राप्त कर ली है |
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जब कृष्ण वासुदेव तथा देवकी के पुत्र के रूप में प्रकट हुए तो पहले वेचतुर्भुज नारायण रूप में ही प्रकट हुए, किन्तु जब उनके माता-पिता नेप्रार्थना की तो उन्होंने सामान्य बालक का रूप धारण कर लिया | उसी प्रकारकृष्ण को ज्ञात था कि अर्जुन उनके चतुर्भुज रूप को देखने का इच्छुक नहींहै, किन्तु चूँकि अर्जुन ने उनको इस रूप में देखने की प्रार्थना की थी, अतःकृष्ण ने पहले अपना चतुर्भुज रूप दिखलाया और फिर वे अपने दो भुजाओं वालेरूप में प्रकट हुए | सौम्यवपुः शब्द अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है | इसका अर्थहै अत्यन्त सुन्दर रूप | जब कृष्ण विद्यमान थे तो सारे लोग उनके रूप पर हीमोहित हो जाते थे और चूँकि कृष्ण इस विश्र्व के निर्देशक हैं, अतः उन्होंनेअपने भक्त अर्जुन का भय दूर किया और पुनः उसे अपना सुन्दर (सौम्य) रूपदिखलाया | ब्रह्मसंहिता में (५.३८) कहा गया है – प्रेमाञ्जनच्छुरितभक्तिविलोचनेन – जिस व्यक्ति की आँखों में प्रेमरूपी अंजन लगा है, वाहीकृष्ण के सौम्यरूप का दर्शन कर सकता है |
यहाँ पर प्रयुक्त मानुषं रूपम् शब्द स्पष्ट सूचित करता हैं किभगवान् मूलतः दो भुजाओं वाले हैं | जो लोग कृष्ण को सामान्य व्यक्तिमानकरउनका उपहास करते हैं, उनको यहाँ पर भगवान् की दिव्य प्रकृति से अनभिज्ञबताया गया है | यदि कृष्ण मनुष्य होते तो उनके लिए पहले विश्र्वरूप और फिरचतुर्भुज नारायण रूप दिखा पाना कैसे सम्भव हो पाता? अतः भगवद्गीता में यहस्पष्ट उल्लेख है कि जो कृष्ण को सामान्य व्यक्ति मानता है और पाठक को यहकहकर भ्रान्त करता है कि कृष्ण के भीतर का निर्विशेष ब्रह्म बोल रहा है, वहसबसे बड़ा अन्याय करता है | कृष्ण ने सचमुच अपने विश्र्वरूप को तथाचतुर्भुज विष्णुरूप को प्रदर्शित किया | तो फिर वे किस तरह सामान्य पुरुषहो सकते हैं? शुद्ध भक्त कभी भी ऐसी गुमराह करने वाली टीकाओं से विचलितनहीं होता, क्योंकि वह वास्तविकता से अवगत रहता है | भगवद्गीता के मूलश्लोक सूर्य की भाँति स्पष्ट हैं, मूर्ख टीकाकारों को उन पर प्रकाश डालनेकी कोई आवश्यकता नहीं है |
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Latest revision as of 15:58, 9 August 2020

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 51

अर्जुन उवाच
दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तव सौम्यं जनार्दन ।
इदानीमस्मि संवृत्तः सचेताः प्रकृतिं गतः ॥५१॥

शब्दार्थ

अर्जुन: उवाच—अर्जुन ने कहा; ²ष्ट्वा—देखकर; इदम्—इस; मानुषम्—मानवी; रूपम्—रूप को; तव—आपके; सौम्यम्—अत्यन्त सुन्दर; जनार्दन—हे शत्रुओं को दण्डित करने वाले; इदानीम्—अब; अस्मि—हूँ; संवृत्त:—स्थिर; स-चेता:—अपनी चेतना में; प्रकृतिम्—अपनी प्रकृति को; गत:—पुन: प्राह्रश्वत हूँ।

अनुवाद

जब अर्जुन ने कृष्ण को उनके आदि रूप मेंदेखा तो कहा – हे जनार्दन! आपके इस अतीव सुन्दर मानवी रूप को देखकर मैं अबस्थिरचित्त हूँ और मैंने अपनी प्राकृत अवस्था प्राप्त कर ली है |

तात्पर्य

यहाँ पर प्रयुक्त मानुषं रूपम् शब्द स्पष्ट सूचित करता हैं किभगवान् मूलतः दो भुजाओं वाले हैं | जो लोग कृष्ण को सामान्य व्यक्तिमानकरउनका उपहास करते हैं, उनको यहाँ पर भगवान् की दिव्य प्रकृति से अनभिज्ञबताया गया है | यदि कृष्ण मनुष्य होते तो उनके लिए पहले विश्र्वरूप और फिरचतुर्भुज नारायण रूप दिखा पाना कैसे सम्भव हो पाता? अतः भगवद्गीता में यहस्पष्ट उल्लेख है कि जो कृष्ण को सामान्य व्यक्ति मानता है और पाठक को यहकहकर भ्रान्त करता है कि कृष्ण के भीतर का निर्विशेष ब्रह्म बोल रहा है, वहसबसे बड़ा अन्याय करता है | कृष्ण ने सचमुच अपने विश्र्वरूप को तथाचतुर्भुज विष्णुरूप को प्रदर्शित किया | तो फिर वे किस तरह सामान्य पुरुषहो सकते हैं? शुद्ध भक्त कभी भी ऐसी गुमराह करने वाली टीकाओं से विचलितनहीं होता, क्योंकि वह वास्तविकता से अवगत रहता है | भगवद्गीता के मूलश्लोक सूर्य की भाँति स्पष्ट हैं, मूर्ख टीकाकारों को उन पर प्रकाश डालनेकी कोई आवश्यकता नहीं है |