HI/Prabhupada 0778 - मानव समाज के लिए सबसे बड़ा योगदान ज्ञान है

Revision as of 19:16, 17 September 2020 by Vanibot (talk | contribs) (Vanibot #0019: LinkReviser - Revise links, localize and redirect them to the de facto address)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Lecture on SB 6.1.17 -- Denver, June 30, 1975

निताई: "इस भौतिक दुनिया में, शुद्ध भक्तों के मार्ग का अनुसरण करते हुए जो अच्छे व्यवहार के हैं और पूरी तरह से प्रथम श्रेणी की योग्यता के साथ संपन्न हैं पूरी तरह से नारायण की सेवा करने की वजह से अपने जीवन के एकमात्र लक्ष्य के रूप में, निश्चित रूप से सबसे शुभ है, बिना किसी डर के, और शास्त्र द्वारा प्राधिकृत ।"

प्रभुपाद:

सधृीचीनो हि अयम लोके
पंथा: क्षेमो अकुटो भय:

सुशीला: साधवो यत्र

नारायण परायणा:
(श्रीमद भागवतम ६.१.१७) ।

तो शास्त्र कहता है कि भक्तों का संग... नारायण-परायण: का मतलब है भक्त । नारायण पर: जिसने नारायण को अपने जीवन का अंतिम लक्ष्य चुना है । नारायण, कृष्ण, विष्णु - वे एक ही तत्त्व हैं, विष्णु-तत्त्व । तो लोगों को यह पता नहीं है, उस मंच तक पहुँचने के लिए, नारायण या विष्णु या कृष्ण की पूजा के मंच तक पहुँचने के लिए, यही सबसे ऊंचा है और क्या कहते हैं, आश्वासित मंच । जैसे हम बीमा लेते हैं, यह आश्वासित है । किसने आश्वासन दिया ? कृष्ण ने आश्वासन दिया । कृष्ण आश्वस्त करते हैं, अहम त्वाम सर्व पापेभ्यो मोक्षयिष्यामि (भ.गी. १८.६६) । कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्त: प्रणश्यति (भ.गी. ९.३१) | अपि चेत सुदुराचारो भजते माम अनन्य भाक, साधुर एव स मन... (भ.गी. ९.३०) | इतने सारे आश्वासन हैं । नारायण परा । कृष्ण व्यक्तिगत रूप से कहते हैं, कि "मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा ।" लोग पापी प्रतिक्रिया के कारण, अज्ञानता के कारण, पीड़ित है । अज्ञानता के कारण, वे पापी कर्म करते हैं, और पापी प्रतिक्रिया होती है ।

जैसे एक बच्चे की तरह, अज्ञानी, वह धधकती आग को छूता है, और यह हाथ जलता है, और वह भुगतता है । तुम नहीं कह सकते हो कि "बालक निर्दोष है, और आग नें जला दिया ।" नहीं, यह प्रकृति का नियम है । अज्ञानता । तो पापी गतिविधियॉ अज्ञानता के कारण होती हैं । इसलिए हमें ज्ञान में होना चाहिए । कानून की अनभिज्ञता कोई बहाना नहीं है । अगर तुम अदालत में जाते और याचना करते हो, "सर, मुझे पता नहीं था की मुझे भुगतना पड़ेगा, मुझे छह महीने के लिए कारावास में जाना होगा क्योंकि मैंने चोरी की है | यह मुझे पता नहीं था... " नहीं । पता हो या न हो, तुम्हे जेल जाना होगा ।

इसलिए मानव समाज के लिए सबसे बड़ा योगदान ज्ञान है । अज्ञानता में उन्हें रखना, अंधेरे में, यह मानव समाज नहीं है, वह है बिल्लियों और कुत्तो... क्योंकि वे अज्ञान में होते हैं, कोई भी उन्हें ज्ञान नहीं दे सकता है, न ही वे ले सकते हैं । इसलिए मानव समाज में ज्ञान देने के लिए संस्था है । यही सबसे बड़ा योगदान है । और वह ज्ञान, परम ज्ञान, वेदों में है। वेदैश च सर्वै: (भ.गी. १५.१५) । और यह सब वेद कहते हैं, की भगवान क्या हैं यह पता होना चाहिए । यह अावश्यक है । (एक तरफ:) वह अावाज़ मत करो । वेदैश च सर्वै: । लोगों को यह पता नहीं है ।

यह पूरी भौतिक दुनिया, उन्हे पता नहीं है कि वास्तविक ज्ञान क्या है । वे इन्द्रिय संतुष्टि की अस्थायी बातों में व्यस्त हैं, लेकिन उन्हे पता नहीं कि ज्ञान का वास्तविक लक्ष्य क्या है । न ते विदु: स्वार्थ गतिम हि विष्णुम (श्रीमद भागवतम ७.५.३१): ज्ञान का लक्ष्य है विष्णु, भगवान, को जानना । यही ज्ञान का लक्ष्य है । अथातो ब्रह्म जिज्ञासा, जीवस्य तत्व जिज्ञासा (श्रीमद भागवतम १.२.१०) | यह जीवन, मानव जीवन, निरपेक्ष सत्य को समझने के लिए है । यही जीवन है । और निरपेक्ष सत्य को समझने की कोशिश करे बिना, अगर हम बस व्यस्त हैं, कैसे आराम से खाना है, कैसे आराम से थोड़ा सोना है या कैसे थोड़ी आसानी से यौन संबंध करना है, ये जानवरों की गतिविधियॉ हैं । ये जानवरों की गतिविधियॉ हैं ।

मानवीय गतिविधि का मतलब है भगवान क्या हैं यह पता करना । यही मानवीय गतिविधि है । न ते विदु: स्वार्थ गतिम हि विष्णुम दुराशया ये बहिर अर्थ मानिन: (श्रीमद भागवतम ७.५.३१) | यह जाने बिना, वे अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं । वे खुश होना चाहते हैं बाहरी शक्ति के सामायोजन से, बहिर अर्थ मानिन: | और लोग, नेता, अंधा यथांधैर उपनीयमाना: (श्रीमद भागवतम ७.५.३१) | बड़े, बड़े वैज्ञानिक, तत्वज्ञानिओ, से पूछो "जीवन का लक्ष्य क्या है ?" वे नहीं जानते । वे केवल सिद्धांत कहते हैं बस । जीवन का वास्तविक लक्ष्य है भगवान को समझना ।