HI/Prabhupada 0779 - तुम उस जगह में सुखी नहीं हो सकते जो दुखों के लिए बनी है

The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.


Lecture on SB 6.1.19 -- Denver, July 2, 1975

तो यह कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति का लाभ है । कृष्ण इतने आकर्षक हैं की अगर कोई केवल एक बार पूरी तरह से अपने मन को ध्यान में लगाता है कृष्ण में अौर समर्पण करता है, तो वह तुरंत इस भौतिक जीवन के सभी दुखों से बच जाता है । तो यही हमारे जीवन की पूर्णता है । किसी तरह से, हम कृष्ण चरण कमलों में आत्मसमर्पण करते हैं । तो यहाँ पर जोर दिया गया है, सकृत । सकृत का मतलब है, "केवल एक बार ।"

तो अगर इतना लाभ है केवल एक बार कृष्ण के बारे में सोचने का, तो हम कल्पना कर सकते हैं कि जो निरंतर लगे हुए हैं कृष्ण के ध्यान में, हरे कृष्ण मंत्र के जप द्वारा, उनकी स्थिति क्या है । वे बहुत सुरक्षित हैं, इतना कि यह कहा जाता है, न ते यमम पाश भृतश च तद भटान स्वप्ने अपि पश्यन्ति (श्रीमद भागवतम ६.१.१९) | स्वप्न का मतलब है सपना देखना । सपना मिथ्या है । यमदूतों को देखना, या यमराज के आदेश के वाहकों को, मौत के अधीक्षक... आमने सामने... मृत्यु के समय, जब कोई बहुत ही पापी आदमी मर रहा है, वह यमराज या यमराज के आदेश वाहकों को देखता है । वे बहुत भयंकर-रूप के है ।

कभी कभी मृत्युशय्या पर आदमी बहुत ज्यादा भयभीत होता है, रोता है, "मुझे बचाओ, मुझे बचाओ ।" यही अजामिल के साथ भी हुआ था । और वही कहानी है जो हम बाद में वर्णन करेंगे । लेकिन वह बच गया । अपने अतीत की कृष्ण भावनामृत गतिविधियों के कारण, वह बच गया । वह कहानी हम बाद में देखेंगे । तो यह सबसे सुरक्षित स्थान है । अन्यथा, यह भौतिक जगत खतरे से भरा है । यह खतरनाक जगह है । यह भगवद गीता में कहा जाता है, दुःखालयम । यह दुःखो की जगह है ।

तुम उस जगह में सुखी नहीं हो सकते जो दुःखो के लिए बनी है । यह हमें समझना होगा । कृष्ण, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान, कहते हैं, की दुःखालयम अशाश्वतम (भ.गी. ८.१५): यह भौतिक जगत दयनीय हालत की जगह है । और वह भी स्थायी नहीं अशाश्वतम । तुम नहीं रह सकते । भले ही तुम एक समझौता करो की "यह दुःख की जगह है कोई बात नहीं । मैं समायोजन कर लूँगा और मैं यहाँ रहूँगा..." लोग इतने इस भौतिक दुनिया से अासक्त हैं । मेरा व्यावहारिक उदाहरण है, अनुभव है । १९५८ या '५७ में, जब मैंने पहली बार इस पुस्तक को प्रकाशित किया, अन्य ग्रह की आसान यात्रा, तो मैं एक सज्जन से मिला । वह बहुत उत्साहित था, "तो हम अन्य ग्रहों में जा सकते हैं ? आप इस तरह की जानकारी दे रहे हैं ?" "हाँ ।" "अगर तुम जाओ, तो तुम वापस नहीं आते हो ।" "नहीं, नहीं, तो मैं जाना नहीं चाहता ।" (हंसी)

उसने कहा की पूरा विचार यह है कि हम किसी अन्य ग्रह में जाऍ, जैसे कि वे मजाक बना रहे हैं: वे चंद्रमा ग्रह पर जा रहे हैं । लेकिन वे वहां नहीं रह सकते हैं । वे वापस आ रहे हैं । यही वैज्ञानिक प्रगति है । अौर अगर तुम वहाँ जातो हो, तो तुम वहाँ क्यों नहीं रहते ? और मैंने अखबार में पढ़ा कि जब रूसी वैमानिकी गए, वे नीचे देख रहे थे "कहाँ मास्को है ?" (हंसी)