HI/Prabhupada 0878 - भारत में वैदिक सभ्यता का पतन

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730412 - Lecture SB 01.08.20 - New York

प्रद्युम्न: अनुवाद: "आप स्वयं अवतरित होते हैं भक्ति सेवा के दिव्य विज्ञान का प्रचार करने के लिए उन्नत अात्मवादियों के ह्दय में, और भौतिक चिंतन करने वाले शूद्ध हो जाते हैं आत्मा तथा पदार्थ के बीच विभेद करने में सक्षम होने से । तो कैसे हम महिलाऍ अापको पूरी तरह से समझ सकती हैं? " प्रभुपाद: तो कुंतिदेवी, वे विनम्रता से ... यही वैश्णव का लक्षण है। भगवान श्री कृष्ण, कुंतिदेवि के पास अाए हैं उनकि चरण धुलि को लेने के लिए । क्योंकि श्री कृष्ण कुंतिदेवी को चाची मानते हैं, उन्हें सम्मान देने के लिए श्री कृष्ण कुंतिदेवी के पैर छूते थे । लेकिन कुंतिदेवी हालांकि वे इस ऊंच्च स्थिति में है व्यावहारिक रूप से यशोदामाइ के स्तर पर, इतनी महान भक्त ... तो वह इतनी विनम्र है कि " कृष्ण, आप परमहंसो के लिए हैं, और हम क्या देखेंगी अापको ? हम महिलाएं हैं । " तो जैसा कि यह भगवद गीता में कहा जाता है, स्त्रियो तथा शूद्रा: ( भ गी ९।३२) भागवत में एक और जगह में यह कहा जाता है, स्त्री शूद्र द्विजबंधुनाम शूद्र, स्त्री अौर द्विजबंधु द्विजबंधु मतलब जो ब्राह्मण परिवार या क्षत्रिय परिवार, उच्च जाति में जन्मे हैं.. वैदिक प्रणाली के अनुसार, चार विभाग हैं: चातुर वर्ण्यम मया सृष्टम गुण कर्म ( भ गी ४।१३) गुणवत्ता और कर्म के अनुसार, प्रथम श्रेणी का आदमी ब्राह्मण है, बुद्धिमान । अगला, क्षत्रिय; अगला, वैश्य और अगला, शूद्र। तो इस वर्गीकरण के अनुसार, महिलाऍ, शूद्र और द्विजबंधु, द्विजबंधु, वे एक ही श्रेणी में रखते जाते हैं । द्विजबंधु मतलब ब्राह्मण परिवार में जन्म, क्षत्रिय परिवार में जन्म, लेकिन कोई योग्यता नहीं है। योग्यता से विचार किया जाना चाहिए । यह बहुत व्यावहारिक है। मान लो एक आदमी एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बेटे के रूप में जन्म लेता है । तो इसका यह मतलब नहीं है कि क्योंकि वह एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का बेटा है, वह भी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश है । यह चल रहा है। क्योंकि कोई एक ब्राह्मण परिवार में जन्म लेता है, किसी भी योग्यता के बिना, वह एक ब्राह्मण होने का दावा करता है। यही वैदिक सभ्यता के पतन है भारत में । एक पहले दर्जे का धूर्त, वह ब्राह्मण होने का दावा करता है - किसी भी योग्यता के बिना । उसकी योग्यता एक शूद्र से कम है; फिर भी वह दावा कर रहा है। और यह स्वीकार किया जा रहा है। तो यह स्पष्ट रूप से कहा गया है: गुण-कर्म-विभागश: ( भ गी ४।१३) । बिना किसी योग्यता के.... ब्राह्मण का मतलब है योग्यता । यह शरीर नहीं । बहुत सारे तर्क हैं, लेकिन वे नहीं सुनेंगे । वे बहुत खिलाफ हैं, मेरे आंदोलन में, क्योंकि मैं ब्राह्मण बना रहा हूँ यूरोप और अमेरिका से । वे मेरे खिलाफ हैं। लेकिन परवाह नहीं है, हम उनकी परवाह नहीं करते हैं । न तो कोई भी उचित आदमी उनकी परवाह करेगा। लेकिन मेरे खिलाफ एक प्रचार है। यहां तक ​​कि मेरे गुरुभाई भी, वे कर रहे हैं.... क्योंकि वे ऐसा नहीं कर सके, तो कुछ गलती निकालना । तुम समझ रहे हो ।