BH/Prabhupada 1070 - सेवा करल, प्राणी के चिरंतन धरम ह



660219-20 - Lecture BG Introduction - New York

सनातन धरम के एह विचार से , संस्कृत भाषा के के आधार पर धर्मं के अरथ समझे के कोशिश कईल जा सकता. एकर अरथ ह ' जे आदमी के साथे सदा रहे' . पहिले कहल बा, जब 'आग' कहल जाता - त ओही समय बुझे के चाही, आग के साथ प्रकाश . गर्मी आ रोशनी का बिना, आग के कवनो मतलब नईखे. . ओही तरीका से , प्राणी के उ चीज खोजे के चाहीं जे , हरदम ओह के साथ रहे. ओह के हरदम साथ रहे वाला चीज ओकर शाश्वत गुण ह , आ प्राणी के ओह गुण के असली वाला भाग ओकर शाश्वत धरम हो जाई . "स्वरुप का होला ? " जब सनातन गोस्वामी चैतन्य महाप्रभु से पूछलन - सब प्राणी के स्वरुप के हमनीं चरचा कर चुकल बानी सन - स्वरुप चाहे असली प्राणी के असल रूप , त महाप्रभु जबाब दिहनीं , रचना के हिसाब से , सब जीव का भगवान के सेवा करे के चाहीं . भगवान् चैतन्य के एह बात पर विचार कईल जाव त , हमनीं का दिखाई देता कि सब प्राणी हर घरी काम में लागल बा आ दोसरा प्राणी के सेवा कर रहल बा . एक जीव दोसरा जीव के कई तरीका से सेवा कर सकता , आ, सेवा करला से , ऑफ़ जीव का सुख मिले ला . छोट पशु, आदमी के सेवा करे ला , नौकर मालिक के सेवा , एक आदमी दोसरा के, दोसर तीसरा मालिक के , तीसर चौथा मालिक के , आ एही तरह से . एक मित्र दोसरा मित्र के सेवा कर देला , माता , पुत्र के सेवा करत रहे ली , पत्नी पति के सेवा, चाहे पति ही पत्नी के सेवा . एही तरह से देखत जाईं त , पता लागी जे मानव समाज में केहू नईखे जे सेवा में नईखे लागल . नेता लोग जनता के आगे आपन सेवा के प्रोग्राम राखेला आ, अपना सेवा करे के बारे में वोटर के आश्वासन देला . वोटर भी सेवा का आशा में नेता के वोट देबे ला कि नेता जी समाज के सेवा करिहन . दूकानदार ग्राहक के सेवा करे में रहेला , कारीगर बनिया के . बनिया अपना परिवार के , आ परिवार अपना सबसे बड आदमी के - जेतना शक्ति होखे . एह तरह से दिखाई देता कि सेवा करे से केहू के छुट्टी नईखे , एही से हमनीं के कह सकत बानीं जे - सेवा करल प्राणी के सनातन काम ह , एह से पता चल जाई जे सेवा कईल, प्राणी के सनातन धरम ह . जब कवनो आदमी कहेला कि हमार एह धरम में विश्वास बा कवनो समय चाहे जनम के कारन , आ, एह कारने अपना के हिन्दू , मुसलमान , इसाई , बौद्ध , चाहे कवनो पंथ के कहे , चाहे ओकर भाग के , इ सब चीज सनातन-धरम ना ह . केहू हिन्दू से मुसलमान बन सकता , चाहे मुसलमान ही बदल के हिन्दू या इसाई बन सकता , एह सब हालत में विश्वास बदल लिहला के कारन कवनो आदमी का दोसरा के सेवा से मुक्ति नईखे . हिन्दू, या मुसलमान , इसाई हर हालत में केहू ना केहू के चाकर बा , कवनो धरम के मान लिहला से उ काम सनातन धरम ना हो जाई , लेकिन आदमी का साथे हरघरी सटल , सेवा के काम , इहे सनातन धरम ह . एही से हमनीं के असल में भगवान के साथे सेवा के सम्बन्ध बा . भगवान असल में परम भोक्ता हवीं , आ, हमनीं सभे प्राणी उनकर सनातन नौकर . हमनीं के सिरिजना उनका आनंद उपभोग खातिर भईल बा , आ, उनका शाश्वत आनंद में अगर सहायता करब सन भगवान के साथ , त हमनीं का भी सुख मिली , खुशी मिली , नाहीं त, ना . अलगा भईला से , पाहिले ही बतावल बा कि , अलगा भईला से , शरीर के कवनो अंग , हाथ, पैर , उंगली , चाहे शरीर के कवनो भाग , बिना पेट के सेवा कईले , अलगा अलगा सुख से नईखे रह सकत, ठीक ओसही , प्राणी का कबो सुख ना मिली जब तक ले , उ भगवान् का दिब्य सेवा में ना लाग जाव . भगवद गीता में केहू दोसरा देवता के पूजा के आज्ञा नईखे दिहल , नईखे दिहल गईल , काहे कि ... गीता के सातवाँ अध्याय बीसवां श्लोक में लिखल बा , भगवान कहत बानीं , कामैस्ते: अपहृत ज्ञाना: प्रपद्यन्ते अन्य देवता: . कामैस्ते: अपहृत ज्ञाना:. जेकर मन वासना से डोल गईल बा , उहे आदमी, भगवान कृष्ण के छोड़ के , दोसरा छोट देवता के पूजा करे लागेला .