HI/561121 - डॉ. राजेंद्र प्रसाद भारतीय संघ के राष्ट्रपति को लिखित पत्र, दिल्ली

डॉ. राजेंद्र प्रसाद महामहिम को पत्र (पृष्ठ १ - टंकित)
डॉ. राजेंद्र प्रसाद महामहिम को पत्र (पृष्ठ १ से ४ - हस्तलिखित )
डॉ. राजेंद्र प्रसाद महामहिम को पत्र (पृष्ठ २ से ४ - हस्तलिखित )
डॉ. राजेंद्र प्रसाद महामहिम को पत्र (पृष्ठ ३ से ४ - हस्तलिखित )
डॉ. राजेंद्र प्रसाद महामहिम को पत्र (पृष्ठ ४ से ४ - हस्तलिखित)


२१ नवंबर १९५६

राष्ट्रपति को पत्र
महामहिम डॉ. राजेंद्र प्रसाद
राष्ट्रपति भारतीय संघ,
राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली
( उनके निजी सचिव श्री विश्वनाथ वर्मा के माध्यम से )

यह महामहिम को पासन्न करे,

कृपया मेरा विनम्र दंडवत प्रणाम स्वीकार करें। यह प्राचीन समय से भारत का रिवाज है कि राज्य का एक नागरिक अपने कष्टों से छुटकारा पाने के लिए राजा से आग्रह करता है और राजा बहुत विनम्रता से उस मामले को कर्तव्य के रूप में मानते हैं और शाही फैसले से उसे आवश्यक राहत देते हैं:

वर्तमान समय में, महामहिम को प्रभु की इच्छा और कृपा से राजा के पद पर बैठाया गया है और एक सच्चे वैष्णव के रूप में मुझे परम पूज्य भगवान श्रीकृष्ण के प्रतिनिधि के रूप में महामहिम को स्वीकार करना चाहिए, जैसा कि उन्होंने स्वयं भगवद-गीता के पृष्ठो में व्यक्त किया है। मैं निम्नलिखित कुछ पंक्तियों को महामहिम के अनुकूल विचार के लिए पेश करना चाहता हूँ, और अनुरोध करता हूं कि आप जरूरतमंद लोगों के सामने शुद्ध चेतना से रखें।

महामहिम, अधिकार से श्रीकृष्ण के प्रतिनिधि हैं और मुझे आशा है कि श्रीकृष्ण मेरे प्रति आपकी सेवा के मामले में आपको भीतर से निर्देश देंगे।

मेरे आध्यात्मिक गुरु – जो कि श्री कृष्ण कृपा मूर्ति हैं - के माध्यम से मैंने यह जाना है कि “भगवान के धाम में वापस जाना” मानव जाति का सर्वोच्च विशेषाधिकार है और यही मानव जीवन की सर्वोच्च पूर्णता है।

दुर्भाग्य से, आज की मानव सभ्यता अपरा प्रकृति की मायावी भौतिक प्रकृति की सुंदरता से बहुत अधिक आकर्षित है और इस तरह वे इन्द्रिय तृप्ति के मामले में नास्तिक सभ्यता के रूप में स्थापित आसुरी प्रवृत्ति प्रबल हो रही है। यह प्रवृत्ति जीवन की वास्तविक प्रगति के लिए खतरनाक रूप से हानिकारक है।

“भगवान के धाम में वापस जाने” का ईमानदार प्रयास ही जीवन का उद्देश्य होना चाहिए, लेकिन इसके विपरीत, प्रवृत्ति वापस नरक में या विकासवादी पशु जीवन के चक्र में जाने की है जैसा कि भगवद गीता के १६वें अध्याय में वर्णित है।

इसलिए कृपया उन्हें बचायें बहुत ज्यादा निचे गिरने से। आप विश्वास माने या न माने, मुझे अपने वर्तमान भौतिक शरीर को छोड़ने के बाद “भगवान के धाम में वापस जाने” का सुराग मिला है और दुनिया के सभी समकालीन पुरुषों और महिलाओं को अपने साथ ले जाने के लिए, मैंने अपनी पत्रिका “बैक टू गॉडहेड” शुरू कर दिया है जो कि एक साधन है।

कृपया मुझे एक अद्भुत या पागल आदमी मत समझो जब मैं यह कहता हूं कि मैं अपने वर्तमान भौतिक शरीर को छोड़ने के बाद “भगवान के धाम में वापस जाऊंगा”! यह हम सभी के लिए काफी संभव है।

भगवद-गीता में यह बहुत स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जो कोई भी श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व को स्वीकार करने के विशिष्ट सिद्धांत को अपना सकता है, वह जीवन के उच्चतम दिव्य लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम होगा, चाहे वह जन्म से अछूत हो, एक पतित महिला, एक मजदूर या रुपयों का सौदा करने वाला एक आदमी हो। फिर “भगवान के धाम में वापस” के लिए एक पवित्र “ब्राह्मण” और समर्पित राजा के लिए कठिनाई क्या है? इसलिए सभी को अस्थायी अस्तित्व के दुखों की दुनिया से मुक्त होने के लिए “भगवान के धाम में वापस जाने” के इस सिद्धांत को अपनाना चाहिए।

यह तथ्य श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा भगवद-गीता के व्यावहारिक प्रदर्शन कर्ता के रूप में और श्री कृष्ण के सबसे भव्य अवतार के रूप में माना जाता है- श्री कृष्ण चैतन्य के व्यक्तित्व ने “भगवान के धाम में वापस” जाने का रास्ता आसान बना दिया है। दुनिया का सामान्य लड़का धार्मिकता के सागर में तैर सकता है, हालांकि यह इतने खतरनाक जानवरों से भरा है जो उस महान विशाल पानी में एक पतित व्यक्ति को निगलने के लिए तैयार होते हैं। मैंने केवल सामान्य रूप से आधुनिक लोगों के लिए उपयुक्त श्री चैतन्य महाप्रभु की आसान विधि को अपनाया है। जैसा कि मैं अपने रात्रिभोज के बाद बिना किसी संदेह के महसूस करता हूं कि मैंने अपनी संतुष्टि के लिए खा लिया है वैसे ही मैं “भगवान के धाम में वापस जाने” के बारे में निश्चित महसूस कर रहा हूं। यह भावना श्री चैतन्य महाप्रभु की स्वीकृत पंक्ति में भक्ति सेवा के महान विज्ञान का एक आवश्यक सहवर्ती कारक है।

इसलिए मैं दुनिया के सभी पुरुषों और महिलाओं के लिए अपनी सफलता के रहस्य को एक प्राकृतिक परिणाम के रूप में प्रसारित करने के लिए बहुत उत्सुक हूं और मैं दिव्य सेवा के इस महान प्रयास में महामहिम की मदद और सहयोग की मांग कर रहा हूं।

मैं महामहिम के संदर्भ के लिए “बैक टू गॉडहेड” (I से XII) की १२ (बारह) प्रतियां संलग्न कर रहा हूं। यदि संभव हो तो कृपया उन सभी को परखें और मुझे यकीन है कि आप, माननीय महोदय, मेरे दावे को सही समझेंगे। यदि यह संभव नहीं है, तो महामहिम केवल शीर्षक की मुख्य बातें पर एक नज़र दे सकता हैं, और मुझे यकीन है कि यह महामहिम को मेरी निश्चित धारणा का भी एहसास दिलाएगा।

मानवजाति के इस सबसे आवश्यक सेवा में एक विश्व व्यापी प्रचार करने के लिए, यह आवश्यक है कि महामहिम इस मामले में आवश्यक मदद के लिए हाथ बढ़ाए, क्योंकि महामहिम व्यक्तिगत रूप से इस काम को करने के लिए उपयुक्त हैं। यद्यपि यह तरीका हरेक के अपनाने के लिए बहुत सरल है, मेरे लिए इस पत्र में उन सभी शब्दों को व्यक्त करना संभव नहीं है जो मैं महामहिम को बताना चाहता हूं। वैसे तो, मैं आपके महामहिम के साथ एक भेंटवार्ता की मांग कर रहा हूं। जब महामहिम व्यक्तिगत रूप से मेरे प्रामाणिकता का कागज़ात और काम के कार्यक्रम को देखेंगे, तो मुझे यकीन है कि महामहिम मेरा सहयोग करने में रुचि रखेंगे। भारत की आध्यात्मिक संपत्ति के संबंध में अभी बहुत काम किया जाना बाकी है और मुझे लगता है कि सरकार सभी लोगों की भलाई के लिए वैज्ञानिक रूप से इस मामले को उठा सकती है। भारत की विशिष्ट संस्कृति की मांग है कि “भारतवर्ष” की महान संस्कृति को बचाने के लिए आध्यात्मिक मामलों का एक मंत्रालय होना चाहिए।

मैं वर्तमान समय में जंगल में अकेला रो रहा हूं। तो कृपया मुझे इस नेक काम में मदद करें और उपकृत करें।

शीघ्र उत्तर की प्रत्याशा में धन्यवाद, मैं हूँ,

प्रभु की सेवा में आपका,

ए. सी. भक्तिवेदांत