HI/661119 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"इस समय हमारी आध्यात्मिक दृष्टिकोण इस प्रकार से है कि, हम इस भौतिक शरीर और भौतिक इन्द्रियों के आवरण में हैं, इस कारण हम अध्यात्मिक जगत् या कोई भी अध्यात्मिक वास्तु को समझने में असमर्थ हैं। किन्तु, हम यह अनुभव कर सकते हैं कि, कहीं कुछ आध्यात्मिक है। वह संभव है। यद्यपि हम अध्यात्मिक तत्व के विषय में पूर्ण रूप से अज्ञान हैं, फिर भी, हम अनुभव कर सकते हैं। यदि आप शांत मन से स्वयं का विश्लेषण करें की "मैं कौन हूँ? क्या मैं यह ऊँगली हूँ? क्या मैं यह शरीर हूँ? क्या मैं यह बाल (केश) हूँ?" आप इन बातों को नकार देंगे; "नहीं मैं यह नहीं हूँ।" तो इस शरीर के परे, जो है, वह अध्यात्मिक है।" ।
661119 - प्रवचन भ.गी. ८.२१-२२ - न्यूयार्क