HI/661220 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"मान लो कि जीवन के प्रारंभ से ही मेरा चरित्र दोषपूर्ण है, परन्तु अब मुझे ज्ञात हो गया है कि, "कृष्णभावनामृत बहुत अच्छा है। मुझे इसे ग्रहण करना चाहिए।" इसलिए मैं प्रयास कर रहा हूँ, अपना सम्पूर्ण प्रयास। परन्तु चूँकि इन आदतों का मैं इतना आदि हो चुका हूँ कि, मैं उनसे मुक्त नहीं हो पा रहा हूँ। हाँलाकि मैं जानता हूँ कि मेरी यह आदत अच्छी नहीं है, लेकिन यह मेरा स्वभाव बन चुकी है। मैं इसे छोड़ नहीं सकता। अत: भगवान् श्री कृष्ण अनुरोध करते हैं कि, "वह फिर भी अच्छा है। ऐसा प्रश्न ही नहीं उठता कि वह साधु नहीं है, या ईमानदार नहीं है, वह धार्मिक व्यक्ति नहीं है। केवल एक गुण जो की वह कृष्णभावनाभावित है और निष्ठा से कर्म करने का प्रयास करता है, परन्तु कभी-कभी गिर जाता है, लेकिन तब भी उसे साधु ही मानो। साधु का अर्थ है धार्मिक, ईमानदार और पवित्र होना।"
661220 - प्रवचन भ.गी. ९.२९-३२ - न्यूयार्क