HI/680202 - पुरुषोत्तम को लिखित पत्र, लॉस एंजिलस

Letter to Purushottam


त्रिदंडी गोस्वामी

ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी
आचार्य:अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ


शिविर:इस्कॉन राधा कृष्ण मंदिर
5364 डब्ल्यू. पिको बुलेवार
लॉस एंजेल्स कैल 90019

दिनांक: 2 फरवरी, 1968


मेरे प्रिय पुरुषोत्तम,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मैं तुम्हारा पत्र प्राप्त कर प्रसन्न हूँ और मैंने उसे ध्यानपूर्वक पढ़ा है। कृष्ण इतने उत्कृष्ट और दिव्य हैं कि उन्हें मानसिक अटकलों, व्यक्तिगत प्रयत्नों, शिक्षा अथवा भौतिक ऐश्वर्य द्वारा नहीं जाना जा सकता। उनकी ओर केवल सेवाभाव से, अपनी समस्त इन्द्रियों को उनकी सेवा में लगाकर, आया जा सकता है और इसी प्रकार उन्हें स्पष्टतः जाना जा सकता है। सेवा का प्रारंभ श्रवणशक्ति के द्वारा दिव्य संदेश को ग्रहण करके होता है। और जब हम प्रामाणिक गुरु के पारदर्शी माध्यम से, भगवद्गीता एवं श्रीमद् भागवतम् के दिव्य संदेश को ग्रहण करने में परिपक्व हो जाएं, तब हम कीर्तन अर्थात अपनी जिह्वा को भगवान की सेवा में संलग्न करने में सक्षम हो जाते हैं। हमारी इन्द्रियों की भौतिक परत शिथिल पड़ जाती है और गतिविधियों का वास्तविक, आध्यात्मिक स्वरूप प्रकट हो जाता है। मैं तुम्हारी इस आध्यात्मिक अनुभूति के उदय की बहुत सराहना करता हूँ और कृष्ण ने यू.एन. के साथ तुम्हारे प्रस्तावित संबंध के रूप में तुम्हें एक स्वर्णिम अवसर प्रदान किया है। कृपया तुरन्त हमारे संघ को यू.एन. का सदस्य बनवाने का यह कार्य पूरा कर लो। यह एक बहुत अच्छा अवसर है। ब्रह्मानन्द से सलाह लेकर, यह तुरन्त करो। भविष्य में हमें, सभी देशों के नेताओं के समक्ष, कृष्णभावनामृत प्रस्तुत करने का विस्तृत कार्यक्षेत्र प्राप्त होगा। मैं सोचता हूँ कि यह एक बहुत बड़ा अवसर है, और हमें इसका लाभ उठाना चाहिए।

जहां तक तुम्हारे बफालो जाने की बात है, वह ब्रह्मानन्द देख लेंगे, और यदि उसमें पहले ही परिवर्तन किया जा चुका है, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। हमें हर पद और परिस्थिति में रहते हुए कृष्ण की सेवा करनी है। यही हमारी जीवन शैली होनी चाहिए। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम कहां रहते हैं और कि हम कहां सेवा करते हैं।

यदि संभव हो तो, “इलस्ट्रेटिड वीकली ऑफ द टाइम्स ऑफ इंडिया”, बम्बई, की एक प्रति प्राप्त करलो। उसमें तुम्हें पृष्ठसंख्या 28 पर, हमारे संदर्भ में एक सुन्दर लेख मिलेगा। मेरा विचार है कि यह तुम्हें किसी भी पत्रिकाओं की दुकान पर प्राप्त हो जाएगा। वह 21 जनवरी, 1968 को प्रकाशित किया गया था।

मैं कोई अतिश्रम नहीं कर रहा हूँ। मैं भौतिक स्तर पर कार्य नहीं कर रहा हूँ। तुम्हारे संवेदनापूर्ण पत्र के लिए, फिरसे धन्यवाद।


सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,

(हस्ताक्षर)

इस्कॉन
26 सेकेण्ड ऐवेन्यू
न्यू यॉर्क, एन.वाई


न्यू यॉर्क