HI/680819 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Nectar Drops from Srila Prabhupada
जो भी व्यक्ति बिना किसी इच्छा के भगवान् की अहेतुकी भक्ति में लीन है, अव्यभिचारिणी, अमिश्रित भक्ति, जो केवल और केवल भगवान् के प्रेम से युक्त हो, आनुकुल्येन कृष्णानुशीलनम (चै.च. मध्य १९.१६७), की कैसे भगवान् प्रसन्न होंगे । यदि ऐसी भक्ति से कोई व्यक्ति भक्ति में जुड़ा है, मां च यो अव्यभिचारिणी भक्ति योगेन यः सेवते... अगर व्यक्ति इस तरह से जुड़ा हुआ है, तो उसकी क्या स्थिति है ? स गुणान् समतीत्यैतान (भ.गी. १४.२६) । भौतिक प्रकृति के तीनो गुण, सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण से वो तुरंत ही परे हो जाता है । स गुणान् समतीत्यैतान ब्रह्मभूयाय कल्पते । तुरन्त ही वह अध्यात्मिक अर्थात ब्रह्म के स्तर पर पहुँच जाता है । तो यदि हम हरे कृष्ण का नाम जप बहुत अच्छे से करते हैं... बहुत अच्छे से उसका अर्थ यह नहीं कि हमें कोई बहुत अच्छा संगीतकार या गायक बनना है । नहीं । अच्छे प्रकार का अर्थ है, प्रामाणिकता से और पूर्ण ध्यान लगाकर हरिनाम जप करना है । ये क्रिया सर्वश्रेष्ठ योग पद्धति है । यदि तुम केवल हरे कृष्ण के दिव्य कंपन पर अपना मन स्थिर करो, तो यह यह सब से उत्तम विधि है ।
680819 - प्रवचन श्री.भा. ७.९.१२ - मॉन्ट्रियल