HI/681007 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सिएटल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"भगवद्गीता में कहा गया है कि एक और, आध्यात्मिक अंतरिक्ष है, जहाँ सूर्य की रौशनी की जरूरत नहीं है, न यत्र भास्यते सूर्यो। सूर्य मायने सन (सूरज), और भास्यते मायने सूर्य की रौशनी को वितरित करना। तो (वहां) सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता नहीं है। न यत्र भास्यते सूर्यो न शशांको। शशांक मायने मून (चन्द्रमा)। न ही चांदनी की आवश्यकता है। न शशांको न पावकः। न ही बिजली की आवश्यकता है। इसका अर्थ है प्रकाश का साम्राज्य। यहाँ, यह भौतिक जगत अंधकार का साम्राज्य है। यह तुम जानते हो, सभी लोग। यह वास्तव में अंधकार है। जैसे ही इस पृथ्वी की दूसरी तरफ सूर्य (जाता) है, (तब यहाँ) अंधकार है। इसका अर्थ है स्वरूपतः यह अंधकारमय है। केवल सूर्य की रौशनी, चांदनी और बिजली से हम इसे प्रकाशमय रख रहे हैं। दरअसल, यह अंधकार मय है। और अंधकार मायने अज्ञानता भी है।"
681007 - प्रवचन - सिएटल