HI/681222b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"भौतिक प्रकृति में, यद्यपि अशारीरिक आत्मा शाश्वत है, जैसा कि हमने पहले समझाया है, गतिविधियां अस्थायी हैं। कृष्ण भावनामृत आंदोलन लक्ष्य लगा रहा है आत्मा को उसके नित्य कर्मों में स्थापित करने में। नित्य कर्मों का अभ्यास भौतिक (प्रकृति से) बाधित होने पर भी करा जा सकता है। इसके लिए महज़ निर्देशन की आवश्यकता है। किन्तु यह संभव है, निर्धारित विधियों और नियमों के तहत आत्मकेंद्रित रूप से क्रियाशील रहना। कृष्ण भावनामृत आंदोलन इन आत्मकेंद्रित विधि-विधानों को सिखाता है, और यदि व्यक्ति इस प्रकार की आत्मकेंद्रित गतिविधियों में प्रशिक्षित कर दिया जाता है, व्यक्ति आध्यात्मिक जगत को स्थानांतरित हो जाता है, जिसके बारे में हमें वैदिक साहित्यों से प्रचुर साक्ष्य मिलते हैं और भगवद्गीता से भी। और अध्यात्म प्रशिक्षित व्यक्ति चेतना परिवर्तन के द्वारा सरलता से आध्यात्मिक जगत को स्थानांतरित हो सकता है।"
681222 - प्रवचन Press Release - लॉस एंजेलेस