HI/681230e बातचीत - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"भगवद गीता, यह दुनिया भर में व्यावहारिक रूप से नित्य पढ़ा जाता है, लेकिन वे इसे नहीं समझते हैं। बस वे भगवद गीता के छात्र बन जाते हैं, या भ्रम में आ जाते हैं कि "मैं भगवान हूँ।" बस इतना ही। वे किसी भी विशेष जानकारी को नहीं लेते हैं। आठवें अध्याय में एक श्लोक है, परस तस्मात् तू भावो 'नयो 'व्यक्तो 'व्यक्तात सनातनः (भ.गी ८.२०): एक और प्रकृति है, इस भौतिक प्रकृति से परे, जो शाश्वत है। यह प्रकृति अस्तित्व में आ रही है, फिर से विघटन, विघटन। लेकिन यह प्रकृति शाश्वत है। ये सब तत्त्व शास्त्र में हैं।"
681230 - भेंटवार्ता - लॉस एंजेलेस