HI/690115 - कृष्ण दास को लिखित पत्र, लॉस एंजिलस

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


जनवरी १५,१९६९

मेरे प्रिय कृष्ण दास,
कृपया मेरा आशीर्वाद स्वीकार करें। मैं ८ जनवरी १९६९ के आपके पत्र की यथोचित प्राप्ति में हूँ, और मैंने विषय को ध्यान से नोट कर लिया है।

जो प्रतिमा आपको मिली है, वह विष्णु मूर्ति नहीं है। विष्णु मूर्ति को कभी भी किसी के साथ लड़ाई की भावना से नहीं पाया जाता है। जब भगवान इस भौतिक दुनिया में अवतार लेते हैं, तो वे विष्णु मूर्ति में नहीं आते हैं। भगवान नृसिंहदेव यद्यपि विष्णु स्वयं, हिरण्यकश्यपु से युद्ध कर रहे थे ,यद्यपि वह कृष्ण हैं, वे विष्णु मूर्ति से भिन्न हैं।इसलिए मुझे लगता है कि आपको जो मूर्ति मिली है, वह विष्णु मूर्ति नहीं है, बल्कि यह भगवान शिव की मूर्ति प्रतीत होती है। वैसे भी यह मूर्ति हमारे द्वारा पूजनीय नहीं है। हमारे मंदिर में हम हमेशा राधा कृष्ण मूर्ति की, या भगवान जगन्नाथ की पूजा करते हैं। यदि संभव हो, तो आप इस मूर्ति को कोई प्राचीन वस्तुओं की दुकान में बेच सकते हैं, और कुछ लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

मुद्रणालय के संबंध में , यह एक बहुत अच्छा कार्य है, बशर्ते आप इस पर ठीक से काम कर सकें। लेकिन अगर आप इस तरह की मुद्रणालय खरीदते हैं, और काम करने के लिए कोई नहीं है, तो यह बेकार हो जाएगा, और यह अच्छा नहीं है। इसलिए यदि आप मुद्रणालय पर काम करने के बारे में गंभीर हैं, तो मैं आपको इसे तुरंत करने की सलाह देता हूं। अन्यथा आपको अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए।

जय गोविंदा के बारे में, समानता द्वारा उनके साथ समझौता करें। मुझे लगता है कि यदि आप उसे पैसे भेजते हैं, तो बदले में वह भारत से कुछ सामान लाएगा। यह एक बुरा प्रस्ताव नहीं है, क्योंकि आदान प्रदान लूट नहीं है।

शिवानंद के बारे में, मुझे खुशी है कि वह कुशल से है, और स्वास्थ्य में सुधार कर रहा है। मैं उसे एक नोट भेज रहा हूं। मुझे खुशी है कि आपने पहले ही ब्रह्मानंद से भगवद-गीता की प्रतियाँ मंगवाई हैं। कृपया हमारी पुस्तकों और साहित्य को यथासंभव आगे बढ़ाने का प्रयास करें। कृपया मुझे अपनी गतिविधियों के बारे में सूचित करने के लिए सप्ताह में कम से कम एक बार लिखें। मुझे उम्मीद है कि आप लंदन से आने वाली खबरों के संपर्क में रहेंगे। वे बहुत उत्साहजनक और आशान्वित हैं।

मुझे आशा है कि यह आपको अच्छे स्वास्थ्य में मिलेगा।

आपका नित्य शुभचिंतक,
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी