HI/690222 - रायराम को लिखित पत्र, लॉस एंजिलस

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त्रिदंडी गोस्वामी

ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी

आचार्य:अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ

शिविर: 4501/2 एन. हायवर्थ एवे.
लॉस एंजिल्स, कैलिफ़ोर्निया। 90048

22 फरवरी, 1969


मेरे प्रिय रायराम,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे दिनांक 19 फरवरी, 1969 का तुम्हारा पत्र प्राप्त हुआ है और मैं यह जानकर अति प्रसन्न हूँ कि न्यु यॉर्क मन्दिर मेरे आग्रह के अनुसार 750 डॉलर प्रति माह अदा कर पाएगा। जहां तक दाई निप्पॉन द्वारा बताई गई, सुपुर्दगी से पहले साठ दिन की अवधि के साथ 2,100 डॉलर प्रति 20,000 पत्रिकाओं की दर की बात है, यदि तुम्हें कुछ प्राप्त हुआ हो तो मुझे उनका असली पत्र भेजो। पर मैंने जाना था कि ब्रह्मानन्द दर को कम करवा के $1,500 पर लाने के लिए बात चला रहा था। तुम्हारे पत्र से ज्ञात होता है कि तुम यह नहीं समझ पाए कि मेरे मतलब था कि इसी दर के भीतर, टाईपसेटिंग एवं लेआऊट कार्य भी दाई निप्पॉन द्वारा किया जाए। पर अब मैं समझ पा रहा हूँ कि इस कार्य के लिए वे और दाम मांगेंगे। यदि हमें टाईपसेटिंग एवं लेआऊट के लिए उन्हें और पैसै देने होंगे तो ऐसा कोई कारण नहीं रह जाता जिसकी वजह से हम अपने आदमियों को यह कार्य करने से रोकें। तो यह एक सीधी सीधी ग़लतफहमी थी।

अब हमारी नीति इस प्रकार से होनी चाहिए: 1. लेआऊट हमारे द्वारा किया जाना चाहिए, 2. कोई भी विज्ञापन नहीं होने चाहिएं, 3. विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत हमें भगवद्गीता यथारूप, श्रीमद् भागवतम्, ब्रह्म संहिता, भक्तिरसामृतसिन्धु, वेदान्त दर्शन, उपनिषद् आदि से लेख एवं यथासंभव हास्यप्रद चित्रों का प्रकाशन करना है। इसके अलावा यदि हमारे छात्र, हमारे दर्शन को उन्होंने जैसे समझा है, उसके अनुरूप लिखते हैं, तो उसका भी स्वागत होना चाहिए। तुम बताते हो कि रोहिणी कुमार कलाकार है, तो हास्यप्रद कार्य वह कर सकता है। अन्य कुछ युवतियां भी हैं, जैसे कि इन्दिरा, जो यह कार्य कर सकती हैं। तो हमें पृष्ठ मात्र वैदिक विचारों से भर देने हैं। अब सीधी नीति होनी चाहिए कि यह बैक टू गॉडहेड सभी पत्रिकाओं से पूर्णतः भिन्न है। जैसे विभिन्न विषयवस्तुओं के बारे में विभिन्न पत्रिकाऐं हैं, यह पत्रिका वैष्णव दर्शन अथवा कृष्ण भावनामृत आंदोलन मात्र को समर्पित होगी। हमारी यह नीति होनी चाहिए। तो तुम तुरन्त दो माह के लेआऊट का प्रबन्ध कर सकते हो। तुम निबन्धों का चयन कैसे करोगे? मैं जानना चाहुंगा। हमें इस बात की परवाह किए बग़ैर कि यह ग्राहकों को ज़रूर आकर्षित करे, अपनी बुद्धि और क्षमता के अनुरूप, विषयवस्तु को जितना हो सके उतनी अच्छी तरह प्रस्तुत करना है। वे आकर्षित हों या नहीं, कोई फ़र्क नहीं पड़ता। हम संकीर्तन मंडली के माध्यम से, बैक टू गॉडहेड को व्यक्तिगत तौर पर बेच रहे हैं। तो जैसा हमारा यहां अनुभव है, उसके आधार पर मुझे उम्मीद है कि प्रत्येक केन्द्र 50 प्रतियां औसत दर से प्रतिदिन बिक्री करेगा। तो इस प्रकार से, चार केन्द्र 200 प्रतियां प्रतिदिन की औसत से बिक्री करें तो हम 6,000 प्रतियां सीधे बेचने की स्थिति पर आ जाते हैं जिससे छपाई व अन्य खर्च पूरे किए जा सकते हैं। बची हुई 14,000 प्रतियां मन्दिर केवल मुनाफे पर बेच सकते हैं। और अगर उनकी बिक्री नहीं हुई तो हम उन्हें विभिन्न समाजों, पुस्तकालयों, सार्वजनिक संस्थानों, सम्माननीय सज्जनों, विद्यालयों इत्यादि में निःशुल्क वितरित कर सकते हैं। इस प्रकार से हम प्रसार कर सकते हैं। विचार कुछ भारत की एक बाईबल सोसाईटी सरीखा है, जो किसी लाभ की फिक्र किए बग़ैर, बाईबल संबंधी साहित्य के रूप में, लाखों डॉलर वितरित कर देती है। इसी तरह हमें प्रत्येक $750 इस सिद्धांत पर न्यौछावर करना है। यदि लाभ होता है, तो ठीक है, लेकिन फिर भी हमें यह प्रचारक की भावना से करना है। यह मेरा विचार है। तो इस कार्यक्रम पर विचार करने का प्रयत्न करो और आवश्यक कदम उठाओ।

मुझे लंदन के गौड़ीय मिशन द्वारा जारी, परमहंस सरस्वती गोस्वामी नामक पुस्तिका प्राप्त हुई है। मैं समझ सकता हूँ कि इसे मेरे गुरुभाई प्रोफेसर सान्याल ने लिखा था, किन्तु यह निबन्ध बहुत व्यावहारिक नहीं है। इसमें वैचारिक वाद-विवाद मात्र हैं और मैं जानता हूँ कि ये प्रोफेसर सान्याल व्यक्तिगत रूप से इन विचारों से भटक चुके हैं। तो मैं नहीं समझता कि बैक टू गॉडहेड में प्रकाशन हेतु यह बहुत महत्तवपूर्ण है।

तो मैं आशा करता हूँ कि मैंने तुम्हारे सारे प्रश्नों के उत्तर दे दिए हैं। कृपया मुझे सूचित करते रहना कि चीज़ों की कैसी प्रगति हो रही है और अपने स्वास्थ्य के बारे में भी।

सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,

ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी