HI/690330 - गोपाल कृष्ण को लिखित पत्र, हवाई

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


30 मार्च, 1969


मेरे प्रिय गोपाल कृष्ण,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मैं 21 मार्च के तुम्हारे पत्र और उसके साथ भेजे गए 25 डॉलर कनेडियन के चेक के लिए तुम्हारा धन्यवाद करता हूँ और विग्रह हेतु किए गए इस योगदान के लिए मैं तुम्हारा बहुत धन्यवाद करता हूँ। साथ ही मैं तुम्हारा बहुत अधिक आभारी हूँ कि तुम मेरे बुक फ़ंड हेतु और 250 डॉलर भेजने वाले हो। हां, मेरे गुरु महाराज ने मुझे प्रकाशन कार्य पर अधिक बल देने की सलाह दी थी और जहां तक है, बहुत जल्द मैं इसी विभाग में अपनी उर्जा को केन्द्रित करने वाला हूँ। शायद तुम्हें ज्ञात है कि हम प्रति माह बीटीजी की 20,000 प्रतियां छापने वाले हैं। और हो सकता है कि बहुत जल्दी हम 50,000 प्रतियों तक बढ़ा दें। यदि तुम कृपावश इन पुस्तकों व साहित्य के वितरण में मेरी सहायता करो तो यह मेरे प्रचार कार्य की गतिविधियों में एक बहुत ही बड़ी सहायता होगी। तुम एक विक्रय प्रबंधक के रूप में कार्यरत हो, तो तुम साथ ही इस विक्रय प्रबंधन के बारे मे विचार कर सकते हो, और यदि संभव हो तो सहायता करने का प्रयास करो। मेरी अगली योजना है, नव वृंदावन योजना का विकास और वहां पर मुझे लाखों डॉलरों की आवश्यकता है। इस क्षण मेरे पास में लगभग 25,000 डॉलर या अधिक के मूल्य की पुस्तकें हैं। यदि तुम सोचो कि विक्रय कैसे आयोजित करना है, तो हम अधिक से अधिक पुस्तकों को बढ़ावा दे सकते हैं, और उनसे मिलने वाले लाभ से अनेकों विभागों में व्यय कर सकते हैं। पाश्चात्य देशों के लोग पुस्तकें पढ़ने के शौकीन हैं और प्रचार द्वारा हमें उनके स्वाद को सांसारिक साहित्यों से मोड़ कर पराभौतिक साहित्य पर लाना है। कृपया इस पर ध्यानपूर्वक विचार करो और यदि सहायता कर सकते हो तो मुझे बताओ। तुम लिखते हो कि इन दिनों शिक्षित वर्ग ने भक्ति का त्याग कर दिया है --- और यह उनका दुर्भाग्य है। इसका अर्थ है कि वे शिक्षित नहीं हो रहे हैं, बल्कि उनका पतन हो रहा है। श्रीमद् भागवतम् के मतानुसार, यदि कोई व्यक्ति भक्त नहीं है तो उसमें कोई भी अच्छा गुण नहीं है। और यदि कोई व्यक्ति मात्र भक्त हैं तो, यह माना जाना चाहिए कि, उसमें सारे सद्गुण हैं। चूंकि तुम अभी पूर्णतः शाकाहारी नहीं हो, तो फिलहाल तुम्हें अपने घर के अंदर छोटा सा मन्दिर बनाने का प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है। मैं नहीं जानता कि तुम सख्ती से शाकाहारी हो या नहीं। लेकिन जब तक तुम ऐसे नहीं हो जाते तबतक, तुम्हारे प्रस्तावनुसार, तुम्हें अपने घर में छोटा मन्दिर बनाने का प्रयास नहीं करना चाहिए। जिन चार नियमों का पालन करने को हम अपने छात्रों से कहते हैं, अर्थात् अवैध यौन जीवन से बचना इत्यादि, अवश्य ही आध्यात्मिक जीवन के आधारभूत सिद्धांत हैं। मैं प्रसन्न हूँ कि तुम अपनी परीक्षा के लिए तैयारी कर रहे हो। और उसके बाद तुम भारतीय अखबारों को प्रभावित करने का प्रयास कर सकते हो कि, हालांकि भारतीय युवक-युवतियों नें इसे त्याग दिया है पर, किस प्रकार से कृष्णभावनामृत आंदोलन यहां अमरीका में उन्नति कर रहा है और फल फूल रहा है। इलस्ट्रेटिड वीकली ऑफ इंडिया ने कुछ समय पहले(शायद 21 दिसम्बर, 1967) हमारा लेख छापा था। तो यदि तुम उन्हें स्मरण कराओगे और उन्हें और भी लेख व तस्वीरें भेजोगे तो निश्चय ही वे उनके प्राप्त होने पर उन्हें छापकर प्रसन्न होंगे।

यहां से मैं सैन फ्रांसिस्को जा रहा हूँ, फिर एल-ए और फिर 10 अप्रैल तक न्यू यॉर्क और तुम्हारी सुविधानुसार तुमसे सूचना पाकर मुझे प्रसन्नता होगी। और एक बार मैं तुम्हारे योगदान व सुन्दर पत्र के लिए तुम्हारा धन्यवाद करता हूँ। आशा है कि यह तुम्हें अच्छी अवस्था में प्राप्त हो।

सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,

ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी

P.S. कृपया पत्राचार के माध्यम से बाल समंत से संपर्क करो। उसका पता जयपताका ब्रह्मचारी के पास है। और उसका भारतीय पता मुझे भी सुझाओ।

एसीबी