HI/690724 - ब्रह्मानन्द को लिखित पत्र, लॉस एंजिलस

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त्रिदंडी गोस्वामी

ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी

संस्थापक-आचार्य:
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ
1975 सो ला सिएनेगा बुलेवर्ड बुलेवार्ड
लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया 90034

24 जुलाई, 1969


मेरे प्रिय ब्रह्मानन्द,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा दिनांक 21 जुलाई, 1969 का पत्र प्राप्त हुआ है और उसे पढ़कर मैं बहुत ही संतुष्ट हूँ। इस पत्र के साथ में तुम्हें मेरे हस्ताक्षर किए हुए तीन कार्ड संलग्न प्राप्त होंगे। कल सांय मन्दिर में दीक्षा प्रदान करते हुए मैं तमाल कृष्ण व गर्गमुनि से कह रहा था कि अब ब्रह्मानन्द तुम्हारे साथ प्रतिस्पर्धा कर रहा है। केन्द्रों के बीच इस दिव्य प्रतिस्पर्धा की चर्चा बहुत आनन्दमयी है और कृष्ण-कृपावश, इस सप्ताह के कारोबार में तुम प्रथम हो। कृष्ण बड़े दयालु हैं और अपने सेवकों को भरपूर पुरस्कार दे रहे हैं। हमें सदैव स्मरण रखना चाहिए कि कृष्ण अपने भक्तों के प्रति सर्वदा कृतज्ञ रहते हैं। यदि कोई साधारण व्यक्ति अपने सेवकों को पारिश्रमिक देता है, तो भला कृष्ण अपने सेवकों को उचित पारिश्रमिक क्यों नहीं देंगे। परन्तु हमें स्मरण रहना चाहिए कि जो कुछ भी कृष्ण हमें देते हैं, वह कभी भी हमारा नहीं हो जाता। वह कृष्ण का ही है। जितना कुछ भी हम कृष्ण से प्राप्त करते हैं, वह सब हम कृष्ण की सेवा में लगा देते हैं। एक सच्चे ब्राह्मण का यहि कर्तव्य है। एक कहावत है कि $100,000 प्राप्त कर लेने पर भी, एक ब्राह्मण भिक्षुक ही रहता है। अर्थात्, चूंकि एक ब्राह्मण अपना धन कृष्ण से ही प्राप्त करता है, इसलिए वह उस पूरे धन को कृष्ण की सेवा में ही लगा देता है।

मैं यह जानकर बहुत ही प्रसन्न हूँ कि तुमने बीटीजी की छपाई की मात्रा बढ़वा दी है। बस आज सुबह ही मैं पुरुषोत्तम से कह रहा था कि तुमसे संख्या # 26 की प्रकाशन मात्रा बढ़वाने को कहे, चूंकि “ब्रहमाण्ड के परे” नामक निबन्ध बहुत रोचक है। अंतरिक्ष खोज के वर्तमान वातावरण में इस प्रकार का निबन्ध बहुत सराहा जाएगा, और लोग यह जान जाएंगे कि हम भावुकतावादी नहीं हैं। हमारी नींव ठोस, वैज्ञानिक व मान्यता प्राप्त है। दरअसल, आधुनिक वैज्ञानिक चंद्रमा पर जाने का प्रयास कर रहे हैं। और यदि वे वहां पंहुच भी जाएं, तो भी वहां पर रह नहीं पाएंगे। और यदि रह भी जाएं, तो भी वह भी स्थायी तौर पर नहीं होगा। लेकिन हमारी आकांक्षा तो इन अंतरिक्षयात्रियों के लक्ष्य से भी कहीं अधिक ऊंची, महान, भद्र व उदात्त है, चूंकि हम सर्वोत्तम लोक-कृष्ण लोक-तक पंहुचने एवं वहां अनन्तकाल तक कृष्ण के सान्निध्य में रहने को प्रयासरत हैं। भगवद्गीता में कृष्ण ने भी सुझाया है कि, यदि हम सर्वोच्च ग्रह ब्रह्मलोक तक पंहुच भी जाएं, तब भी हमें पुनः लौट कर आना ही होगा। किन्तु यदि हम कृष्ण लोक पंहुच जाएं, तो वहां से भौतिक जगत में कोई वापसी नहीं है।

भगवद्गीता के तीसरे अध्याय पर रखे गए प्रश्न बहुत बुद्धिमत्तापूर्ण हैं और मुझे अत्यन्त पसंद आए। मैं रायराम के बारे में कोई जानकारी प्राप्त करने को बहुत उत्सुक हूँ। मेरी तुम्हें गोपनीय सलाह है कि, यदि वह धन को लेकर कोई कठिनाई महसूस कर रहा है तो तुम, अपने हिसाब से, उसकी सहायता कर सकते हो। और उसे प्रबंधक संपादक बने रहना चाहिए। स्वयं तुम्हारे और उसके बीच में संपूर्ण रूप से आपसी सहयोग होना चाहिए। हम मात्र किसी बेहतर कार्य में उपयोग करने के लिए धन बचाना चाह रहे थे। अन्यथा हमें किसी से कोई शत्रुता नहीं है।

न्यु यॉर्क विश्व का सबसे बड़ा नगर है। और इसीलिए बीटीजी की बिक्री व उससे हमें योगदान देने में न्यु यॉर्क का स्तर बनाए रखा जाना चाहिए। हमारा प्रारंभिक पग न्यु यॉर्क था। कृपया अन्य सभी को मेरे आशीर्वाद देना। मैं आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त होगा।

सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,

(हस्ताक्षर)

ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी