HI/700825 - बलि मर्दन को लिखित पत्र, टोक्यो

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त्रिदंडी गोस्वामी

ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी

संस्थापक-आचार्य:
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ
6-16; 2-चोम, ओहाशी
मेगरो-कू, टोक्यो, जापान

25 अगस्त, 1970


मेरे प्रिय बलि मर्दन,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा बिना दिनांक का पत्र प्राप्त हुआ और तुम्हारा इस व्यास पूजा दिवस पर श्रील व्यासदेव का उल्लेख करना बहुत महत्त्वपूर्ण है। जो कोई भी आध्यात्मिक साक्षात्कार के वैदिक पथ का अनुसरण कर रहा है, उसके लिए श्रील व्यासदेव आदि-गुरु हैं।

आध्यात्मिक गुरु व्यासदेव के प्रतिनिधि होते हैं, चूंकि वे पूरे विश्व में व्यासदेव के संदेश का वहन करते हैं। जैसा कि तुम अच्छी तरह से जानते हो, व्यासदेव ने वैदिक साहित्य का संकलन बहुत आश्चर्यजनक शैली में किया। कभी-कभी तथाकथित यथार्थवादी दार्शनिक यह नहीं स्वीकार करते कि व्यासदेव नामक को व्यक्ति कभी थे भी। उनका मत है कि वैदिक ज्ञान का प्रसार करने वाला कोई भी व्यक्ति व्यासदेव कहलाता है। दार्शनिकों का यह गुट, चूंकि अधिकांशतः निराकारवादी होता है, इस बात को नहीं समझ सकते कि भला एक व्यक्ति इतनी सारी पुस्तकों को कैसे लिख सकता है। वास्तव में यह हतप्रभ करने वाली बात है।

व्यासदेव से पहले, सभी वैदिक शास्त्र, गुरु परम्परा में मौखिक रूप से सिखाए व ग्रहण किए जाते थे। उन दिनों शिष्यों व गुरुओं, दोनों कि ही स्मरण शक्ति इतनी तीक्ष्ण थी कि, एक बार अपने गुरुदेव के मुख से दिव्य संदेश सुनते ही वह उनके मस्तिष्क में तत्काल ही इतनी सुस्पष्टता से छप जाता था, जैसे कि लिखत अक्षरों में इंगित हो। उदाहरणार्थ, शुकदेव गोस्वामी बिना किसी प्रकार की तैयारी किए, श्रीमद्भागवतम् का वर्णन कर रहे थे। पूरा श्रीमद्भागवतम्, अठारह हज़ार श्लोक, का तो उच्चारण करना ही कठिन है और फिर उसे कण्ठस्थ करने की तो बात ही क्या है। और इसे उन्होंने इतनी सहजता के साथ सुनाया जैसे किसी पुस्तक से पढ़ रहे हों। उन्होंने पूरी विषयवस्तु को निरन्तर सात दिनों तक सुनाया। और महाराज परीक्षित भी पूरी विषयवस्तु को बहुत स्पष्ट रूप से समझ गए। वे दोनों इतने मेधावी थे कि उन्होंने जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य, अर्थात् भगवान श्री कृष्ण के चरण कमलों, को मात्र सुनाने व सुनने से प्राप्त कर लिया।

अवश्य ही यह ठीक वह समय था जब कलि, वर्तमान काल का मूर्त्तिमान विग्रह, वैश्विक कार्यकलापों में हस्तक्षेप कर पाने को प्रयास कर रहा था। और फिर एक उच्छृंखल ब्राह्मण बालक की जल्दबाज़ी से वह इसमें सफल हो गया। तो व्यासदेव एक वास्तविक व्यक्ति थे, जो सभी प्रमाणिक व्यक्तित्वों द्वारा मान्य हैं। और कोई भी इस बात से उनकी महानता को समझ सकता है कि कैसे उन्होंने वैदिक साहित्य का संकलन किया। इसी कारणवश वे महामुनि कहलाते हैं। मुनि का अर्थ है विचारपूर्ण या महान विचारक या महान कवि। और महा का अर्थ है और भी प्रकाण्ड। तो व्यासदेव के साथ तो अन्य किसी भी लेखक या विचारक या दार्शनिक की तुलना ही नहीं की जा सकती। कोई भी श्रील व्यासदेव की विद्वत्ता का अनुमान नहीं लगा सकता है। उन्होंने लाखों संस्कृत श्लोकों की रचना की और हम तो, अपने क्षुद्र प्रयासों द्वारा, बस उनमें से कुछ अल्प ज्ञान प्राप्त करने की चेषटा कर रहे हैं। इसीलिए श्रील व्यासदेव ने पूरे वैदिक ज्ञान को श्रीमद्भागवतम् के रूप में संक्षिप्त कर दिया, जिसे वैदिक ज्ञान रूपी कल्पतरु के पके हुए फल के रूप में जाना जाता है। यह पका हुआ फल, एक हाथ से दूसरे हाथ में, गुरु परम्परा के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। और जो कोई भी, गुरु परम्परा में स्थित, यह कार्य करता हो वह व्यासदेव का प्रतिनिधि माना जाता है। और वास्तव में प्रामाणिक आध्यात्मिक गुरुदेव के आविर्भाव दिवस को व्यास पूजा के रूप में पूजा जाता है। केवल यही नहीं, जिस उच्च आसन पर गुरुदेव विराजमान होते हैं उसे व्यासासन कहा जाता है।

मायावादी सम्प्रदाय में, वे गुरु पूर्णिमा दिवस को आध्यात्मिक गुरु को आदर देने के रूप में आयोजित करते हैं। आद्यात्मिक गुरुदेव को आदर देने की यह प्रणाली, वैदिक संस्कृति के सभी अनुयायियों में जारी है। परन्तु जहां तक हम गौड़ीय सम्प्रदाय की बात है, तो हम प्रतिवर्ष अपने गुरुदेव के आविर्भाव दिवस पर उन्हें हमारी दैन्यतापूर्ण पूजा अर्पण करते हैं। और यह शुभ समय व्यास पूजा कहलाता है।

मुझे मेरे गुरु महाराज की तस्वीर प्राप्त हुई है। यह बहुत सुन्दर शैली में बनाई गई है। कृपया उस युवती को मेरे धन्यवाद देना। मैंने तत्क्षण ही इस तस्वीर को मेरी पूजा वेदी पर रख लिया है।

हाँ, गुरुदेव के प्रति शरणागत होने का यह मनोभाव, भगवान चैतन्य के आंदोलन का प्रसार करने के लिए सर्वोत्तम योग्यता है। यही वैदिक पथ है। व्यक्ति को कृष्ण में सुदृढ़ विश्वास होना चाहिए और साथ ही वैसा ही गुरु में भी। कृष्णभावनामृत के गोपनीय तत्व को जानने का यही मार्ग है। दुर्भाग्यवश, हाल ही में हमारे संघ में से इस प्रणाली को डिगा देने की चेष्टा की गई है। इस दुष्टतापूर्ण चेष्टा से बहुत अधिक नुकसान हुआ है। किन्तु यदि गवर्निंग बॉडी कमीशन के तुम सदस्यगण इस दुष्टतापूर्ण चेष्टा को सुधार दो, तो बिना रुकावट के आगे प्रगति करने की आशा है। मैं आशा करता हूँ कि कृष्ण हमारी सहायता करेंगे।

चाणक्य श्लोकों में दो श्लोक हैं कि किस प्रकार मात्र एक व्यक्ति के कारण पूरा कुटुम्ब अथवा संस्था, या तो परिष्कृत हो जाते हैं या फिर जल कर भस्म। चाणक्य पंडित कहते हैं कि यदि किसी वन में कोई एक वृक्ष कोई मीठी सुगंध युक्त पुष्प उत्पन्न करता है, तो अपने पुष्प की तासीर से वह पूरे वन को प्रश्सनीय कर देता है। और इसी प्रकार से यदि किसी एक वृक्ष की खोखल में कुछ अग्नि हो, तो वह एक वृक्ष समूचे वन को जलाकर भस्म कर सकता है। तो यह उदाहरण प्रत्येक स्थान पर लागू हो सकता है। किसी परिवार में यदि एक सुपुत्र हो तो वह पूरे परिवार को ख्याति प्रदान करता है। और ऐसे ही, यदि कोई कपूत हो, तो वह पूरे परिवार को भस्म कर सकता है। इसी प्रकार से, इस संस्था में यदि कोई एक बुरा शिष्य हो, तो वह पूरी संस्था को जलाकर भस्म कर सकता है। इसलिए गवर्निंग बॉडी कमीशन का कर्त्तव्य है कि वे यह पक्का कर लें कि प्रत्येक सदस्य नियमों का पालन करें और नियमित रूप से सोलह माला का जप करते रहें। मैं आशा करता हूँ कि जीबीसी, पर्यटन कर रहे सन्न्यासियों के साथ मिलकर, एक सुव्यवस्थित ढ़ंग से इस बात की निगरानी रखेंगे, ताकि संस्था यथासंभव शुद्ध रहे।

मैं आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छे स्वामस्थ्य में प्राप्त हो।

सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,

(हस्ताक्षरित)

ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी

एसीबीएस:डी एस

श्रीमन् बली मर्दन दास ब्रह्मचारी
नव वृन्दावन
एचओ 3
मोउन्द्स्विल्ले, वी 26041
अमेरीका