HI/701224 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सूरत में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"कृष्ण भावनामृत आंदोलन का अर्थ है कृष्ण को समझना, कृष्ण के साथ संबंध में स्वयं की स्थिति को समझना, तथा उसके अनुसार कार्य करना तत्पश्चात जीवन की सर्वोच्च पूर्णता प्राप्त करना। यह ही प्रयोजन है। संस्कृत में इसे सम्बन्ध, अभिधेया और प्रयोजन कहा जाता है। हमें सबसे पहले यह जान लेना चाहिए कि हमारा संबंध कृष्ण या भगवान से क्या है; फिर अभिधेय - उस सम्बन्ध के अनुसार हमें कार्य करना चाहिए। और यदि हम ठीक से कार्य करतें हैं तो हम जीवन के सर्वोच्च ध्येय को पा सकते हैं। और जीवन का वह सर्वोच्च ध्येय क्या है? जीवन का सर्वोच्च ध्येय घर जाना है, भगवद्धाम वापस लौटना है, देवत्व प्राप्त करना है।"
701224 - ऍमपीवी महाविद्यालय में प्रवचन - सूरत