HI/710211 - त्राधीस एवं नागपत्नि को लिखित पत्र, गोरखपुर

Letter to Tradhis and Nagapatni


त्रिदंडी गोस्वामी

ए.सी.भक्तिवेदांत स्वामी

संस्थापक आचार्य केंद्र: C/O डॉ.रविंद्र पी. राव;
20K हीरापुरी
गोरखपुर विश्वविद्यालय
गोरखपुर, भारत

11 फरवरी, 1971


मेरे प्रिय श्रीमान् त्राधीश एवं मेरी प्रिय पुत्री नागपत्नि देवी दासी,

कृपया दोनों मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। हमारे लॉस ऐन्जेलेस न्यु द्वारिका मन्दिर से मुझे तुम्हारा बिना तिथि का पत्र मिला है और मुझे यह जानकर बहुत खुशी है कि तुम हमारे कृष्ण के परिवार का हिस्सा बनने के लिए आए हो। यह परिवार ही परम पुरुषोत्तम भगवान कृष्ण के अंश जीवात्माओं का मौलिक, शाश्वत एवं आनन्दमयी परिवार है। यह मेरे लिए अत्यन्त प्रसन्नता का विषय है कि तुम और अनेकोंनेक नवयुवक व युवतियां यह जान पा रहे हैं कि कृष्ण अथवा गोविन्द ही सभी जीवात्माओं के सन्तोष व आनन्द के एकमात्र स्रोत हैं। प्रत्येक व्यक्ति दीर्घायु व इन्द्रिय सुख के लिए आतुर है लेकिन वे भयभीत और कुण्ठित ही रहेंगे, जबतक वे भगवान चैतन्य महाप्रभु की कृपा से संकीर्तन आंदोलन में नहीं चले आते, जो कि सरलता से हमारे शाश्वत जीवन का पुनरुद्धार करने का एकमात्र मार्ग है।

मैं प्रसन्नता से तुम दोनों, पति और पत्नि, को अपने दीक्षित शिष्यों के रूप में स्वीकार करता हूँ। मैंने तुम्हारी मालाओं पर जप किया है और अब उन्हें तुमको लौटाता हूँ। तुम्हारे दीक्षित नाम हैं त्राधीश दास अधिकारी और नागपत्नि देवी दासी। तुम्हारी बेटी का नाम जन्माष्टमी ही रहेगा और उसकी दीक्षा के समय उसे नया नाम मिलेगा। मेरा तुमसे केवल आग्रह है कि तुम कृष्ण भावनामृत में ग्रहस्थ जीवन के आदर्श उदाहरण बनो और इस प्रकार तुम अपने साथ सम्पर्क में आने वाले अनेकों को इस महान प्रणाली के लिए अपने जीवन को समायोजित करने का प्रोत्साहन दोगे। यह अपने आप में सबसे बड़ी सेवा होगी। इसलिए कृपया प्रतिदिन सोलह माला जप, अनुशासनिक नियमों का सख्ती से पालन और नाम जप के संदर्भ में दस नामापराधों से बचते हुए, कृष्ण भक्ति में दृढ़ और दृढ़तम रहो। यदि तुम इस सरल प्रक्रिया का अपने गुरु की देखरेख में पालन और नियमित अध्ययन द्वारा हमारे दर्शन को समझने का प्रयास करते रहो तो तुम कृष्ण भावनामृत के अपने जीवन में प्रगति करते रहोगे और कृष्ण माया के आक्रमणों से तुम्हारी रक्षा करने के साथ-साथ उनकी सेवा के लिए सभी प्रकार की सुविधाएं भी दिलवाते रहेंगे।

आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त हो।

सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,

(अहस्ताक्षरित)

ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी

एसीबीएस:डी एस