HI/710223 - जयपताका को लिखित पत्र, गोरखपुर
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23 फरवरी, 1971
कलकत्ता
मेरे प्रिय जयपताका महाराज,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा 17 फरवरी, 1971 का पत्र प्राप्त हुआ है और मैंने इसपर ध्यान दिया है। तुमने कुछ आदमियों के लिए आग्रह किया है तो तत्काल ही दो लोगों का एक दल, रेवतीनन्दन एवं दुर्लभ दास अधिकारी, इस पत्र को लेकर आज ही यहां से रवाना हो रहे हैं। दुर्लभ दास के पास कुछ कैमरा फिल्में व यंत्र हैं तो यह वहां के तुम्हारे कार्य के लिए बहुत अच्छा है। और रेवतीनन्दन एक बहुत जाना माना संकीर्तन नेता है। इसके बाद 28 फरवरी, 1971 को हम सभी कलकत्ता जा रहे हैं और 82 डाउन ऐक्सप्रेस द्वारा 1 मार्च को सांय लगभग 4:30 बजे हावड़ा पंहुचेंगे। मेरी इच्छा है कि तुम सब कम से कम एक या दो दिन के लिए भगवान चैतन्य महाप्रभु के जन्मदिवस के दौरान मायापुर आओ। यदि हैमिल्टन हाउज़ उपलब्ध है तो मैं भी उनकी इच्छा अनुसार जाकर उन्हें पूरी राशि देने का काम निपटाने को तैयार हूँ। जब मैं जाऊंगा तो उन्हें देने को पूरे पैसे लेकर जाऊंगा, पर यदि सौदा नहीं पटा तो मैं कलकत्ता जाने के बजाए बम्बई जाऊंगा और तुम सब मेरे शिष्य मायापुर जा सकते हो और जितनी बार हो सके कीर्तन करके कलकत्ता लौट सकते हो। अधिकांशतः हंसदुत्त और उसकी मंडली 10 मार्च तक कलकत्ता पंहुच जाएंगे।
जहां तक मेरे गुरुभाईयों के साथ सहयोग करने की बात है, तो यह कोई बहुत जल्दी करने योग्य कार्य नहीं है। अभी आज तक मेरे गुरुभाईयों ने लगातार मेरे साथ असहयोग ही किया है, किन्तु फिर भी मेरे गुरु महाराज की कृपा से काम आगे बढ़ रहे हैं। तो सहयोग हो या असहयोग, यह भक्तिविनोद ठाकुर की इच्छा है कि चैतन्य पद्धति का प्रचार पूरे विश्व में हो और 1875 में उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि बहुत शीघ्र कोई आएगा जो अकेले ही इस पद्धति का प्रचार पूरे विश्व में कर देगा। तो यदि यह वरदान है और मेरे गुरु महाराज के आशीर्वाद हैं, तो हम बिना किसी रुकावट आगे बढ़ सकते हैं, लेकिन हम सभी को बिल्कुल निष्कपट व गंभीर रहना है। हम पर कुछ सार्वजनिक आलोचना की गई है कि हम गुरुभाई साथ मिलजुलकर कार्य नहीं करते। मेरे गुरु महाराज भी चाहते थे कि हम मिलकर कार्य करें पर किसी न किसी वजह से अभी तक यह संभव नहीं हो सका है। तो तुम्हारा माधव महाराज के साथ मिलकर कार्य करने का कार्यक्रम बहुत महत्तवपूर्ण नहीं है। सबसे अच्छा होगा कि हम सब गुरुभाई साथ में कार्य करें। तब आलोचना बंद होगी, वरना यदि हम मिल भी जाएं तो भी आलोचना चलती रहेगी। तो पिछले 24 वर्ष से यह चल रहा है, पर हममें से प्रत्येक भगवान चैतन्य को केन्द्र में रखकर अपनी ओर से अपना पूरा प्रयास कर रहा है। इतने से हमें सन्तुष्ट रहना चाहिए।
तुम्हारे पत्र से समझ पा रहा हूँ कि हैमिल्टन हाऊज़ के विषय में वे लोग 26 फरवरी, 1971 को निर्णय लेंगे। तो तुरन्त ही तुम मुझे वह निर्णय एक्सप्रेस टेलीग्राम द्वारा भेजोगे, चूंकि इस निर्णय पर निर्भर करेगा कि मैं कलकत्ता जाऊंगा या फिर बम्बई। तो कृपया इस कार्य को पूरी प्राथमिकता दो और ज़रूरी कदम उठाओ। मैं बहुत प्रसन्न हूँ कि तुम्हें अपने लिए बहुत अच्छे आरामदेह कमरे निःशुल्क मिले हैं। कृष्ण का धन्यवाद करो।
मैंने अपनी बैंक पासबुक बालाजी को भेज दी है। कृपया इसका नवीनिकरण करवा लो और यदि मैं कलकत्ता आया तो देखुंगा अथवा तुम इसे रजिस्टर्ड डाक द्वारा बम्बई भेज देना। इस बीच में इसे अपडेट करवा लो। यदि तुम्हारे पास 40 से 50 आदमियों के लिए ठहरने की जगह है तो बम्बई से सारे भक्त मायापुर जाने के लिए कलकत्ता आएंगे। अगर तुम्हारे पास जगह है तो तुम बम्बई के भक्तों को स्वयं यह समाचार पंहुचा सकते हो।
आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त हो।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी
एसीबीएस/एडीबी
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