HI/710723 - वृन्दावन चंद्र को लिखित पत्र, न्यू यॉर्क

Letter to Vrindavan Chandra


अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ इंक.

संस्थापक-आचार्य: कृष्णकृपामूर्ति - ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी

439 हेनरी स्ट्रीट; ब्रुकलिन, एन.वाई. 11231


23 जुलाई 1971

मेरे प्रिय वृंदावन चंद्र,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा दिनांक 20 जुलाई, 1971 का पत्र प्राप्त हुआ है और मैंने उसे ध्यानपूर्वक पढ़ा है। जहां तक समाज के साथ मेलेजोल रखने का प्रश्न है, हम मेलेजोल रख सकते हैं। वह सब तो ठीक है। लेकिन मात्र नौकरी के लिए हम ऐसा नहीं कर सकते। उनके साथ अंतरंग मेलेजोल अच्छा नहीं है। तो इससे बचना चाहिए। भगवान चैतन्य ने कभी भी नहीं कहा कि अभक्तों से मेलजोल मत रखो। वे स्वयं प्रचार मे रत थे। एक प्रचारक भला कैसे रुक सकता है? पूरा विश्व अभक्त है।

जहां तक इन नाटकों की बात है, ये आम व्यक्तियों के लिए नहीं हैं। और यदि वे लोग हंस पड़ंते हैं तो वह एक गंभीर अपराध होगा। उदाहरण के तौर पर तुम्हारे पूतना वध नामक नाटक में बहुत हसीं चल रही थी। यदि बहुत ही अच्छे ढ़ंग से न निभाए जा रहे हों, तो ये नाटक सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए नहीं हैं। श्रोताओं द्वारा गंभीरतापूर्वक ध्यान दिया जाना आवश्यक है। भगवान चैतन्य ने कभी भी किसी साधारण व्यक्ति के समक्ष प्रदर्शन नहीं किया। केवल भक्तों के समक्ष। किन्तु तुम्हारे द्वारा ऐसे नाटकों का आयोजन मात्र भक्तों के लिए किया जाना व्यावहारिक नहीं होगा। यदि बहुत ही गंभीरता पूर्वक न किए जा रहें हों, तो कृष्ण-लीला पर नाटक नहीं किए जाने चाहिएं। *

आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त हो।

सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,

(हस्ताक्षरित)

ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी

(हस्तलिखित)भागवतम की कुछ शिक्षाप्रद कथाएं जनसाधारण के समक्ष प्रदर्शित की जा सकतीं हैं।

एसीबीएस/एडीबी

श्रीमन वृन्दावन चंद्र c / o इस्कॉन एल.ए.